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Home » हिन्दी » व्याकरण » समास – परिभाषा, भेद और उदाहरण- Samas In Hindi

समास – परिभाषा, भेद और उदाहरण- Samas In Hindi

Last Updated on July 3, 2023 By Mrs Shilpi Nagpal

समास

“समास” शब्द का शाब्दिक अर्थ होता है छोटा – रूप

जब दो या दो से अधिक शब्दों से मिलकर जो नया और छोटा शब्द बनता है उस शब्द को समास कहते हैं।

या

जब दो या दो से अधिक शब्दों को पास-पास लाकर एक नया सार्थक शब्द बनाया जाता है तो शब्दों को इस तरह संक्षेप करने की प्रक्रिया को समास कहते हैं

 

उदाहरण :

1) हवन के लिए सामग्री = हवन सामग्री

2) कमल के समान नयन है जिसके अर्थात् श्रीराम = कमलनयन

3) नियम के अनुसार = नियमानुसार

4) गायों के लिए शाला = गौशाला

5) डाक के लिए खाना (घर) = डाकखाना

6) पुस्तक के लिए आलय = पुस्तकालय

7) पशुओं के लिए शाला = पशुशाला

8) नील और कमल = नीलकमल

9) राजा का पुत्र = राजपुत्र

10)  मन से चाहा हुआ = मनोवांछित

11) देश के लिए भक्ति = देशभक्ति

समास रचना में दो पद होते हैं । इन दोनों से जो नया शब्द बनता है वो समस्त पद कहलाता है।

1) पूर्वपद

2) उत्तरपद

जैसे – गंगाजल। इसमें गंगा पूर्वपद और जल उत्तरपद है।

वे शब्द जो लिंग, वचन, कारक, काल के अनुसार नहीँ बदलते, उन्हें अव्यय कहते है

समास छः प्रकार के होते है –

1. अव्ययीभाव समास
2. तत्पुरुष समास
3. द्वन्द्व समास
4. बहुब्रीहि समास
5. द्विगु समास
6. कर्म धारय समास

 

Contents

  • 1 (1) अव्ययीभाव समास
  • 2 (2) तत्पुरुष समास
    • 2.1 (1) कर्म तत्पुरुष
    • 2.2 (2) करण तत्पुरुष
    • 2.3 (3) संप्रदान तत्पुरुष
    • 2.4 (4) अपादान तत्पुरुष
    • 2.5 (5) संबंध तत्पुरुष
    • 2.6 (6) अधिकरण तत्पुरुष
  • 3 (3) द्वन्द्व समास
    • 3.1 (1)  इतरेतरद्वंद्व समास
    • 3.2 (2) समाहारद्वंद्व समास
    • 3.3 (3) वैकल्पिकद्वंद्व समास
  • 4 (4) बहुब्रीहि समास
      • 4.0.1 (1) समानाधिकरण बहुब्रीहि समास
      • 4.0.2 (2)  व्यधिकरण बहुब्रीहि समास 
      • 4.0.3 (3) तुल्ययोग बहुब्रीहि समास
      • 4.0.4 (4)  व्यतिहार बहुब्रीहि समास
  • 5 (5) द्विगु समास
    • 5.1 (1) समाहारद्विगु समास
    • 5.2 (2) उत्तरपदप्रधानद्विगु समास
  • 6 (6) कर्म धारय समास
    • 6.1 1) विशेषणपूर्वपद कर्मधारय समास
    • 6.2 2) विशेष्यपूर्वपद कर्मधारय समास
    • 6.3 3) विशेषणोंभयपद कर्मधारय समास
    • 6.4 4) विशेष्योभयपद कर्मधारय समास
      • 6.4.1 कर्मधारय समास के उपभेद 
        • 6.4.1.1 1) उपमानकर्मधारय समास
        • 6.4.1.2 2) उपमितकर्मधारय समास
        • 6.4.1.3 3)  रूपककर्मधारय समास
  • 7 हिन्दी व्याकरण

(1) अव्ययीभाव समास

जिस सामासिक पद का पूर्वपद (पहला पद ) प्रधान हो, तथा समासिक पद अव्यय हो, उसे अव्ययीभाव समास कहते हैं। इसी कारण से अव्ययीभाव का समस्तपद सदा लिंग, वचन और विभक्तिहीन रहता है। यदि एक शब्द की पुनरावृत्ति हो और दोनों शब्द मिलकर अव्यव की तरह प्रयुक्त हो, वहाँ भी अव्ययीभाव समास होता है। अव्ययीभाव समास को पहचानने के लिए  निम्नलिखित विधियाँ अपनायी जा सकती हैं-

(i) यदि समस्तपद के आरंभ में भर, निर्, प्रति, यथा, बे, आ, ब, उप, यावत्, अधि, अनु आदि उपसर्ग/अव्यय हों।
जैसे- यथाशक्ति, प्रत्येक, उपकूल, निर्विवाद अनुरूप, आजीवन आदि ।

(ii) यदि समस्तपद वाक्य में क्रियाविशेषण का काम करे।
यथाशक्ति = शक्ति के अनुसार

यथाशीघ्र  =  जितना शीघ्र हो


यथाक्रम  =  क्रम के अनुसार


प्रतिदिन  =  प्रत्येक दिन


प्रत्येक   =   हर एक


घर – घर  =   प्रत्येक घर


साफ-साफ =  बिल्कुल साफ


भरपेट     =   पेट भरकर


निर्विवाद   =   बिना विवाद के


बाकायदा   =  कायदे के अनुसार

यथाविधि = विधि के अनुसार

यथासंभव = संभावना के अनुसार

यथासाध्य = साध्य के अनुसार

आजन्म = जन्म तक

आमरण = मरण तक

यावज्जीवन = जब तक जीवन है

व्यर्थ = बिना अर्थ का

यथानियम = नियम के अनुसार

यथासाध्य = जितना साधा जा सके

(2) तत्पुरुष समास

जिस सामासिक शब्द का दूसरा पद प्रधान होता है तथा दोनों पदों के बीच लगी विभक्ति या विभक्ति चिह्नों का लोप हो उसे तत्पुरुष समास कहते हैं।

देश के लिए भक्ति = देशभक्ति

राजा का पुत्र = राजपुत्र

शर से आहत = शराहत

राह के लिए खर्च = राहखर्च

तुलसी द्वारा कृत = तुलसीदासकृत

राजा का महल = राजमहल

गंगा का जल = गंगाजल

 

तत्पुरुष समास के छः भेद हैं –

1) कर्म तत्पुरुष

2) करण तत्पुरुष

3) संप्रदान तत्पुरुष

4) अपादान तत्पुरुष

5) संबंध तत्पुरुष

6) अधिकरण तत्पुरुष

(1) कर्म तत्पुरुष

जिस समास के पूर्व पद में कर्म कारक के विभक्ति चिह्न ‘को’ का लोप हो, उसे ‘कर्म तत्पुरुष’ कहते हैं

कृष्णार्पण  = कृष्ण को अर्पण

नेत्र सुखद  =  नेत्रों को सुखद

वन – गमन = वन को गमन

रथचालक = रथ को चलने वाला

वनगमन = वन को गमन

जेब कतरा = जेब को कतरने वाला

प्राप्तोदक =  उदक को प्राप्त

ग्रामगत = ग्राम को गया हुआ

चिड़ीमार = चिड़िया को मारनेवाला

सिरतोड़ = सिर को तोड़नेवाला

स्वर्गप्राप्त =  स्वर्ग को प्राप्त

माखनचोर  = माखन को चुराने वाला

मुंहतोड़  = मुंह को तोड़ने वाला

स्वर्गप्राप्त = स्वर्ग को प्राप्त

गिरिधर = गिरी को धारण करने वाला

शत्रुघ्न = शत्रु को मारने वाला

मुंहतोड़ = मुंह को तोड़ने वाला


(2) करण तत्पुरुष

यह समास दो कारक चिन्हों ‘से’ और ‘के द्वारा’ के लोप से बनता है। जहाँ पर पहले पद में करण कारक का बोध होता है। इसमें दो पदों के बीच करण कारक छिपा होता है ।

करुणापूर्ण = करुणा से पूर्ण

शोकाकुल = शौक से आकुल

वाल्मीकिरचित = वाल्मीकि द्वारा रचित

शोकातुर = शोक से आतुर

कष्टसाध्य = कष्ट से साध्य

मनमाना = मन से माना हुआ

स्वरचित = स्व द्वारा रचित

शोकग्रस्त = शोक से ग्स्त

भुखमरी = भूख से मरी

धनहीन = धन से हीन

बाणाहत = बाण से आहत

ज्वरग्रस्त = ज्वर से ग्रस्त

मदांध = मद से अँधा

रसभरा = रस से भरा

भयाकुल = भय से आकुल

आँखोंदेखी = आँखों से देखी

सूररचित = सूर द्वारा रचित

करुणापूर्ण = करुणा से पूर्ण

शोकाकुल = शौक से आकुल

वाल्मीकिरचित = वाल्मीकि द्वारा रचित

शोकातुर = शोक से आतुर

कष्टसाध्य = कष्ट से साध्य

मनमाना = मन से माना हुआ

शराहत = शर से आहत

ईश्वर प्रदत्त = ईश्वर द्वारा प्रदत्त

तुलसी कृत = तुलसी द्वारा रचित

रोग पीड़ित = रोग से पीड़ित

मनगढ़ंत = मन से गढ़ा हुआ

रेखांकित = रेखा के द्वारा अंकित

 

(3) संप्रदान तत्पुरुष

इसमें दो पदों के बीच सम्प्रदान कारक छिपा होता है। सम्प्रदान कारक का चिन्ह या विभक्ति “के लिए” होती है।

विद्यालय =विद्या के लिए आलय

रसोईघर = रसोई के लिए घर

सभाभवन = सभा के लिए भवन

विश्रामगृह = विश्राम के लिए गृह

गुरुदक्षिणा = गुरु के लिए दक्षिणा

प्रयोगशाला = प्रयोग के लिए शाला

देशभक्ति = देश के लिए भक्ति

स्नानघर = स्नान के लिए घर

सत्यागृह = सत्य के लिए आग्रह

यज्ञशाला = यज्ञ के लिए शाला

डाकगाड़ी = डाक के लिए गाड़ी

देवालय = देव के लिए आलय

गौशाला = गौ के लिए शाला

देशार्पण = देश के लिए अर्पण

विद्यालय = विद्या के लिए आलय

हथकड़ी = हाथ के लिए कड़ी

सभाभवन = सभा के लिए भवन

लोकहितकारी = लोक के लिए हितकारी

(4) अपादान तत्पुरुष

अपादान तत्पुरुष समास मे अपादान कारक की विभक्ति “से-अलग होने” का लोप होता है।

यहां पर जो “से” का लोप होता है, वो एक चीज़ का दूसरे चीज़ से अलग होते हुए नज़र आता है।

देशनिकाला = देश से निकाला

पथभ्रष्ट = पथ से भ्रष्ट

पदच्युत =पद से च्युत

जन्मरोगी = जन्म से रोगी

कामचोर = काम से जी चुराने वाला

दूरागत =दूर से आगत

रणविमुख = रण से विमुख नेत्रहीन = नेत्र से हीन

पापमुक्त = पाप से मुक्त

देशनिकाला = देश से निकाला

रोगमुक्त = रोग से मुक्त

ऋणमुक्त = ऋण से मुक्त

धनहीन = धन से हीन

गुणहीन = गुण से हीन

विद्यारहित = विद्या से रहित

पथभ्रष्ट = पथ से भ्रष्ट

जीवनमुक्त = जीवन से मुक्त

बंधनमुक्त = बंधन से मुक्त

दूरागत = दूर से आगत

जन्मांध = जन्म से अँधा

नेत्रहीन = नेत्र से हीन

जलहीन = जल से हीन

जन्मांध = जन्म से मुक्त

आदिवासी = आदि से वास करने वाला

इन्द्रियातीत = इन्द्रियों से अतीत

नरक भय = नरक से भय

राजद्रोह = राज से द्रोह

हृदयहीन = हृदय से हीन

आशातीत = आशा से परे

 

(5) संबंध तत्पुरुष

इसमें दो पदों के बीच में सम्बन्ध कारक छिपा होता है। सम्बन्ध कारक के चिन्ह या विभक्ति “का, के, की” होती हैं। उसे सम्बन्ध तत्पुरुष समास कहते हैं।

सुखयोग = सुख का योग

शिवालय = शिव का आलय

देशरक्षा = देश की रक्षा

सीमारेखा = सीमा की रेखा

राजपुत्र = राजा का पुत्र

दुर्वादल =दुर्व का दल

देवपूजा = देव की पूजा

आमवृक्ष = आम का वृक्ष

राजकुमारी = राज की कुमारी

जलधारा = जल की धारा

भूदान = भू का दान

राष्ट्रगौरव = राष्ट्र का गौरव

राजसभा = राजा की सभा

जलधारा = जल की धारा

भारतरत्न = भारत का रत्न

पुष्पवर्षा = पुष्पों की वर्षा

उद्योगपति = उद्योग का पति

पराधीन = दूसरों के आधीन

सेनापति = सेना का पति

राजदरबार = राजा का दरबार

देशरक्षा = देश की रक्षा

गृहस्वामी = गृह का स्वामी

अक्षांश = अक्ष का अंश

स्वतंत्र = स्व का तंत्र

फुलवाड़ी = फूलों की बाड़ी

सौरमंडल = सूर्य का मण्डल

अमचूर = आम का चूर

सेनाध्यक्ष = सेना का अध्यक्ष

मंत्रिपरिषद = मंत्रियों की परिषद्

अश्वमेध = अश्व का यज्ञ

मनोविज्ञान = मन का विज्ञान

गंगाजल = गंगा का जल

लोकतंत्र = लोक का तंत्र

आमवृक्ष = आम का वृक्ष

राजकुमारी = राज की कुमारी

जलधारा = जल की धारा

राजनीति = राजा की नीति

सुखयोग = सुख का योग

मूर्तिपूजा = मूर्ति की पूजा

देशरक्षा = देश की रक्षा

सीमारेखा = सीमा की रेखा

(6) अधिकरण तत्पुरुष

इसमें दो पदों के बीच अधिकरण कारक छिपा होता है। अधिकरण कारक का चिन्ह या विभक्ति ‘ में ‘, ‘पर’ होता है। उसे अधिकरण तत्पुरुष समास कहते हैं।

कार्य कुशल =कार्य में कुशल

वनवास =वन में वास

ईस्वरभक्ति = ईस्वर में भक्ति

आत्मविश्वास = आत्मा पर विश्वास

दीनदयाल = दीनों पर दयाल

दानवीर = दान देने में वीर

आचारनिपुण = आचार में निपुण

जलमग्न =जल में मग्न

सिरदर्द = सिर में दर्द

क्लाकुशल = कला में कुशल

शरणागत = शरण में आगत

आनन्दमग्न = आनन्द में मग्न

आपबीती =आप पर बीती

गृहप्रवेश : गृह में प्रवेश

पर्वतारोहण  : पर्वत पर आरोहण

ग्रामवास : ग्राम में वास

आपबीती : आप पर बीती

जलसमाधि : जल में समाधि

जलज : जल में जन्मा

नीतिकुशल : नीति में कुशल

नरोत्तम : नारों में उत्तम

गृहप्रवेश : गृह में प्रवेश

 

(3) द्वन्द्व समास

द्वंद्व समास में दोनों पद ही प्रधान होते हैं इसमें किसी भी पद का गौण नहीं होता है।

ये दोनों पद एक-दूसरे पद के विलोम होते हैं लेकिन ये हमेशा नहीं होता है।

इसका विग्रह करने पर और, अथवा, या, एवं का प्रयोग होता है उसे द्वंद्व समास कहते हैं।

जलवायु = जल और वायु

अपना-पराया = अपना या पराया

पाप-पुण्य = पाप और पुण्य

राधा-कृष्ण = राधा और कृष्ण

नर-नारी =नर और नारी

देश-विदेश = देश और विदेश

अमीर-गरीब = अमीर और गरीब

अन्न-जल = अन्न और जल

गुण-दोष = गुण और दोष

अमीर-गरीब = अमीर और गरीब

नदी-नाले = नदी और नाले

धन-दौलत = धन और दौलत

सुख-दुःख = सुख और दुःख

आगे-पीछे = आगे और पीछे

ऊँच-नीच = ऊँच और नीच

आग-पानी = आग और पानी

मार-पीट = मारपीट

राजा-प्रजा = राजा और प्रजा

ठंडा-गर्म = ठंडा या गर्म

माता-पिता = माता और पिता

दिन-रात = दिन और रात

द्वन्द समास के भेद (प्रकार)

(1)  इतरेतरद्वंद्व समास

वो द्वंद्व जिसमें और शब्द से भी पद जुड़े होते हैं और अलग अस्तित्व रखते हों उसे इतरेतर द्वंद्व समास कहते हैं। इस समास से जो पद बनते हैं वो हमेशा बहुवचन में प्रयोग होते हैं क्योंकि वे दो या दो से अधिक पदों से मिलकर बने होते हैं।

राम और कृष्ण = राम-कृष्ण

माँ और बाप = माँ-बाप

अमीर और गरीब = अमीर-गरीब

गाय और बैल =गाय-बैल

ऋषि और मुनि = ऋषि-मुनि

बेटा और बेटी =बेटा-बेटी

(2) समाहारद्वंद्व समास

जब द्वंद्व समास के दोनों पद और समुच्चयबोधक से जुड़ा होने पर भी अलग-अलग अस्तिव नहीं रखकर समूह का बोध कराते हैं , तब वह समाहारद्वंद्व समास कहलाता है।

इस समास में दो पदों के अलावा तीसरा पद भी छुपा होता है और अपने अर्थ का बोध अप्रत्यक्ष रूप से कराते हैं।

दालरोटी = दाल और रोटी

हाथपॉंव = हाथ और पॉंव

आहारनिंद्रा = आहार और निंद्रा

(3) वैकल्पिकद्वंद्व समास

इस द्वंद्व समास में दो पदों के बीच में या,अथवा आदि विकल्पसूचक अव्यय छिपे होते हैं उसे वैकल्पिक द्वंद्व समास कहते हैं।

इस समास में ज्यादा से ज्यादा दो विपरीतार्थक शब्दों का योग होता है।

पाप-पुण्य =पाप या पुण्य

भला-बुरा =भला या बुरा

थोडा-बहुत =थोडा या बहुत

 

(4) बहुब्रीहि समास

इस समास में कोई भी पद प्रधान नहीं होता। जब दो पद मिलकर तीसरा पद बनाते हैं तब वह तीसरा पद प्रधान होता है।

इसका विग्रह करने पर “वाला है, जो, जिसका, जिसकी, जिसके, वह” आदि आते हैं वह बहुब्रीहि समास कहलाता है।

गजानन = गज का आनन है जिसका (गणेश)

त्रिनेत्र =तीन नेत्र हैं जिसके (शिव)

नीलकंठ =नीला है कंठ जिसका (शिव)

लम्बोदर = लम्बा है उदर जिसका (गणेश)

दशानन = दश हैं आनन जिसके (रावण)

चतुर्भुज = चार भुजाओं वाला (विष्णु)

पीताम्बर = पीले हैं वस्त्र जिसके (कृष्ण)

चक्रधर=चक्र को धारण करने वाला (विष्णु)

वीणापाणी = वीणा है जिसके हाथ में (सरस्वती)

स्वेताम्बर = सफेद वस्त्रों वाली (सरस्वती)

दुरात्मा = बुरी आत्मा वाला (दुष्ट)

घनश्याम = घन के समान है जो (श्री कृष्ण)

मृत्युंजय = मृत्यु को जीतने वाला (शिव)

निशाचर = निशा में विचरण करने वाला (राक्षस)

गिरिधर = गिरी को धारण करने वाला (कृष्ण)

पंकज = पंक में जो पैदा हुआ (कमल)

त्रिलोचन = तीन है लोचन जिसके (शिव)

विषधर = विष को धारण करने वाला (सर्प)

बहुव्रीहि समास के प्रकार/भेद

(1) समानाधिकरण बहुब्रीहि समास

इसमें सभी पद कर्ता कारक की विभक्ति के होते हैं लेकिन समस्त पद के द्वारा जो अन्य उक्त होता है ,वो कर्म, करण, सम्प्रदान, अपादान, सम्बन्ध, अधिकरण आदि विभक्तियों में भी उक्त हो जाता है उसे समानाधिकरण बहुब्रीहि समास कहते हैं। जैसे-

प्राप्त है उदक जिसको = प्रप्तोद्क

जीती गई इन्द्रियां हैं जिसके द्वारा = जितेंद्रियाँ

दत्त है भोजन जिसके लिए =दत्तभोजन

निर्गत है धन जिससे = निर्धन

नेक है नाम जिसका = नेकनाम

सात है खण्ड जिसमें = सतखंडा

(2)  व्यधिकरण बहुब्रीहि समास 

समानाधिकरण बहुब्रीहि समास में दोनों पद कर्ता कारक की विभक्ति के होते हैं लेकिन यहाँ पहला पद तो कर्ता कारक की विभक्ति का होता है लेकिन बाद वाला पद सम्बन्ध या फिर अधिकरण कारक का होता है उसे व्यधिकरण बहुब्रीहि समास कहते हैं। जैसे-

शूल है पाणी में जिसके = शूलपाणी

वीणा है पाणी में जिसके = वीणापाणी

(3) तुल्ययोग बहुब्रीहि समास

जिसमें पहला पद ‘सह’ होता है वह तुल्ययोग बहुब्रीहि समास कहलाता है। इसे सहबहुब्रीहि समास भी कहती हैं। सह का अर्थ होता है साथ और समास होने की वजह से सह के स्थान पर केवल स रह जाता है। इस समास में इस बात पर ध्यान दिया जाता है की विग्रह करते समय जो सह दूसरा वाला शब्द प्रतीत हो वो समास में पहला हो जाता है। जैसे –

जो बल के साथ है = सबल

जो देह के साथ है = सदेह

जो परिवार के साथ है = सपरिवार

(4)  व्यतिहार बहुब्रीहि समास

जिससे घात या प्रतिघात की सुचना मिले उसे व्यतिहार बहुब्रीहि समास कहते हैं। इस समास में यह प्रतीत होता है की ‘ इस चीज से और उस चीज से लड़ाई हुई। जैसे –

मुक्के-मुक्के से जो लड़ाई हुई = मुक्का-मुक्की

बातों-बातों से जो लड़ाई हुई = बाताबाती

५) प्रादी बहुब्रीहि समास :  जिस बहुब्रीहि समास पूर्वपद उपसर्ग हो वह प्रादी बहुब्रीहि समास कहलाता है। जैसे-

नहीं है रहम जिसमें = बेरहम

नहीं है जन जहाँ = निर्जन

(5) द्विगु समास

द्विगु समास में पूर्वपद संख्यावाचक होता है और कभी-कभी उत्तरपद भी संख्यावाचक होता हुआ देखा जा सकता है।

इस समास में प्रयुक्त संख्या किसी समूह को दर्शाती है किसी अर्थ को नहीं ।इससे समूह और समाहार का बोध होता है। उसे द्विगु समास कहते हैं।

नवग्रह = नौ ग्रहों का समूह

त्रिवेणी = तीन वेणियों का समूह

पंचतन्त्र = पांच तंत्रों का समूह

त्रिलोक =तीन लोकों का समाहार

शताब्दी = सौ अब्दों का समूह

पंसेरी = पांच सेरों का समूह

सतसई = सात सौ पदों का समूह

चौगुनी = चार गुनी

त्रिभुज = तीन भुजाओं का समाहार

दोपहर = दो पहरों का समाहार

चौमासा = चार मासों का समूह

नवरात्र = नौ रात्रियों का समूह

अठन्नी = आठ आनों का समूह

सप्तऋषि = सात ऋषियों का समूह

त्रिकोण = तीन कोणों का समाहार

सप्ताह = सात दिनों का समूह

 

द्विगु समास के भेद

(1) समाहारद्विगु समास

समाहार का मतलब होता है समुदाय , इकट्ठा होना , समेटना उसे समाहारद्विगु समास कहते हैं। जैसे :

तीन लोकों का समाहार = त्रिलोक

पाँचों वटों का समाहार = पंचवटी

तीन भुवनों का समाहार =त्रिभुवन

(2) उत्तरपदप्रधानद्विगु समास

उत्तरपदप्रधानद्विगु समास दो प्रकार के होते हैं।
(1) बेटा या फिर उत्पत्र के अर्थ में।

दो माँ का =दुमाता
दो सूतों के मेल का = दुसूती।

(2) जहाँ पर सच में उत्तरपद पर जोर दिया जाता है।

पांच प्रमाण = पंचप्रमाण
पांच हत्थड = पंचहत्थड

(6) कर्म धारय समास

इस समास में विशेषण -विशेष्य और उपमेय -उपमान से मिलकर बनते हैं उसे कर्मधारय समास कहते हैं।

नीलगगन = नीला है जो गगन

चन्द्रमुख = चन्द्र जैसा मुख

पीताम्बर = पीत है जो अम्बर

महात्मा = महान है जो आत्मा

लालमणि = लाल है जो मणि

महादेव = महान है जो देव

देहलता = देह रूपी लता

नवयुवक = नव है जो युवक

अधमरा = आधा है जो मरा

प्राणप्रिय = प्राणों से प्रिय

श्यामसुंदर = श्याम जो सुंदर है

नीलकंठ = नीला है जो कंठ

महापुरुष = महान है जो पुरुष

नरसिंह = नर में सिंह के समान

कनकलता = कनक की सी लता

नीलकमल = नीला है जो कमल

परमानन्द = परम है जो आनंद

कर्मधारय समास के भेद 

1) विशेषणपूर्वपद कर्मधारय समास

जहाँ पर पहला पद प्रधान होता है वहाँ पर विशेषणपूर्वपद कर्मधारय समास होता है।

नीलीगाय = नीलगाय

पीत अम्बर = पीताम्बर

प्रिय सखा = प्रियसखा

2) विशेष्यपूर्वपद कर्मधारय समास

इसमें पहला पद विशेष्य होता है और इस प्रकार के सामासिक पद ज्यादातर संस्कृत में मिलते हैं।

कुमारी श्रमणा = कुमारश्रमणा

3) विशेषणोंभयपद कर्मधारय समास

इसमें दोनों पद विशेषण होते हैं।

नील – पीत

सुनी – अनसुनी

कहनी – अनकहनी

4) विशेष्योभयपद कर्मधारय समास

इसमें दोनों पद विशेष्य होते है।

आमगाछ

वायस-दम्पति

कर्मधारय समास के उपभेद 

1) उपमानकर्मधारय समास

इसमें उपमानवाचक पद का उपमेयवाचक पद के साथ समास होता है। इस समास में दोनों शब्दों के बीच से ‘इव’ या ‘जैसा’ अव्यय का लोप हो जाता है और दोनों पद, चूँकि एक ही कर्ता विभक्ति, वचन और लिंग के होते हैं, इसलिए समस्त पद कर्मधारय लक्ष्ण का होता है। उसे उपमानकर्मधारय समास कहते हैं।

जैसे :- विद्युत् जैसी चंचला = विद्युचंचला

2) उपमितकर्मधारय समास

यह समास उपमानकर्मधारय का उल्टा होता है। इस समास में उपमेय पहला पद होता है और उपमान दूसरा पद होता है। उसे उपमितकर्मधारय समास कहते हैं।

जैसे :- अधरपल्लव के समान = अधर – पल्लव, नर सिंह के समान = नरसिंह

3)  रूपककर्मधारय समास

जहाँ पर एक का दूसरे पर आरोप होता है वहाँ पर रूपककर्मधारय समास होता है।

जैसे :- मुख ही है चन्द्रमा = मुखचन्द्र

 

हिन्दी व्याकरण

संज्ञा संधि लिंग
काल क्रिया धातु
वचन कारक समास
अलंकार विशेषण सर्वनाम
उपसर्ग प्रत्यय संस्कृत प्रत्यय

Filed Under: व्याकरण, हिन्दी

About Mrs Shilpi Nagpal

Author of this website, Mrs. Shilpi Nagpal is MSc (Hons, Chemistry) and BSc (Hons, Chemistry) from Delhi University, B.Ed. (I. P. University) and has many years of experience in teaching. She has started this educational website with the mindset of spreading free education to everyone.

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