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Home » Class 10 » Hindi » Kshitij » यह दंतुरित मुसकान और फसल – पठन सामग्री और भावार्थ Chapter 6 Class 10 Hindi

यह दंतुरित मुसकान और फसल – पठन सामग्री और भावार्थ Chapter 6 Class 10 Hindi

Last Updated on February 16, 2023 By Mrs Shilpi Nagpal

Contents

  • 1 पाठ की रूपरेखा 
  • 2 कविताओं का भावार्थ
  • 3 यह दंतुरित मुसकान
    • 3.1 काव्यांश 1 
      • 3.1.1 शब्दार्थ
      • 3.1.2 भावार्थ
    • 3.2 काव्यांश 2
      • 3.2.1 शब्दार्थ 
      • 3.2.2 भावार्थ
    • 3.3 काव्यांश 3 
      • 3.3.1 शब्दार्थ
      • 3.3.2 भावार्थ 
  • 4 फसल
    • 4.1 काव्यांश 1 
      • 4.1.1 शब्दार्थ
      • 4.1.2 भावार्थ 
    • 4.2 काव्यांश 2 
      • 4.2.1 शब्दार्थ
      • 4.2.2 भावार्थ

पाठ की रूपरेखा 

‘यह दंतुरित मुसकान’ कविता के अंतर्गत कवि मे एक छोटे बालक की मुसकान का वर्णन किया है। बालक की मुसकान को अमूल्य माना गया है। बालक की मनोहारी मुसकान को देखकर उदासीन व्यक्ति के जीवन में भी रस भर जाता है साथ ही, कवि ने वात्सल्य भाव की भी अभिव्यक्ति कविता में की है। बच्चे की कोमल दंतुरित मुसकान कठोर-से-कठोर हृदय को भी पिघला देती है। ‘फसल’ कविता में कवि ने अनेक तत्त्वों का उल्लेख किया है, जिसके सहयोग से फसल का निर्माण होता है। कविता में फसल के निर्माण में किसान की भूमिका व  उसके परिश्रम को रेखांकित करने के साथ ही साथ मिट्टी, जल, सूर्य, हवा आदि सभी के योगदान को भी बताया है। प्रकृति व मनुष्य के परस्पर सहयोग का ही परिणाम ‘फसल’ है।

☛ NCERT Solutions For Class 10 Chapter 6 यह दंतुरित मुसकान और फसल

कवि-परिचय 

प्रगतिवादी विचारधारा के प्रतिनिधि कवि नागार्जुन का वास्तविक नाम वैद्यनाथ मिश्र था। साहित्य के क्षेत्र में वे नागार्जुन के नाम से प्रसिद्ध हुए। उनका जन्म वर्ष 1911 में बिहार के दरभंगा ज़िले के सतलखा गाँव में हुआ। उनकी प्रारंभिक शिक्षा संस्कृत पाठशाला में हुई।वर्ष  1936 में बे श्रीलंका जाकर बौद्ध धर्म में दीक्षित हो गए। वर्ष 1938 में वे स्वदेश लौट आए। 
नागार्जुन घुमक्कड़ और फ़क्कड़ स्वभाव के कारण प्रसिद्ध थे। नागार्जुन ने हिंदी और मैथिली भाषा में लेखन कार्य किया। युगधारा, सतरंगें पंखों वाली , हज़ार-हज़ार बाँहों वाली, तुमने कहा था, पुरानी जूतियों का कोरस आदि नागार्जुन की प्रमुख रचनाएँ हैं। बलचनमा, रतिनाथ की चाची, जमनिया का बाबा, उग्रतारा उनके प्रमुख उपन्यास हैं। मैथिली भाषा में काव्य रचना के लिए इन्हें साहित्य अकादमी पुरस्कार’ प्राप्त हुआ।नागार्जुन की भाषा सरल, सहज ब प्रवाहमयी है। उनकी भाषा में तत्सम शब्दावली के साथ-साथ देशी, विदेशी शब्द ब मुहावरों का भी प्रयोग हुआ है। नागार्जुन का देहांत वर्ष 1998 में हुआ था। 


कविताओं का भावार्थ

यह दंतुरित मुसकान

काव्यांश 1 

तुम्हारी यह दंतुरित मुसकान
मृतक में भी डाल देगी जान
धूलि-धूसर तुम्हारे ये गात…
छोड़कर तालाब मेरी झोपड़ी में खिल रहे जलजात
परस पाकर तुम्हारा ही प्राण,
पिघलकर जल बन गया होगा कठिन पाषाण
छ गया तुमसे कि झरने लग पड़े शेफालिका के फूल
बाँस था कि बबूल?

शब्दार्थ

 

दंतुरित-बच्चे के नए नए निकले दाँत मृतक-मरा हुआ (उदास हृदय वाला व्यक्ति) धूलि-धूसर-धूल मिट॒टी में सने हुए  गात-शरीर
जलजात-कमल का फूल परस-स्पर्श पाषाण-पत्थर शेफालिका-एक पौधे का नाम
 बबूल-काँटेदार पेड़

भावार्थ

कवि को बच्चे के नए-नए निकले दाँतों की मनमोहक मुसकान में जीवन का संदेश दिखाई देता है। इसलिए वह कहता है कि हे बालक! तुम्हारे नए-नए निकले दाँतों की मनमोहक मुसकान तो मरे हुए व्यक्ति में भी प्राणों का संचार कर देती है अर्थात्‌ इस मुसकान को देखकर तो जिंदगी से निराश और उदासीन लोगों के हृदय भी प्रसन्‍नता से खिल उठते हैं। कवि कहता है कि धूल से सने हुए तुम्हारे इस शरीर को देखकर ऐसा लग रहा है मानो कमल का सुंदर फूल तालाब को छोड़कर मेरी झोंपड़ी में आकर खिल गया हो। तुम्हें छूकर पत्थर भी पिघलकर जल बन गया होगा अर्थात पत्थर दिल वाले व्यक्ति ने जब तुम्हारा स्पर्श किया होगा, तो वह भी पत्थर के समान अपनी कठोरता को छोड़कर विनम्र बन गया होगा। तुम्हारा स्पर्श इतना कोमल है कि बाँस या बबूल से भी शेफालिका के फूल झड़ने लगे होंगे अर्थात्‌ तुम्हारे स्पर्श से कठोर हृदय वाला भी सहृदय बन गया होगा।


काव्यांश 2


तुम मुझे पाए नहीं पहचान? 
देखते ही रहोगे अनिमेष! 
थक गए हो? 
आँख लूँ मैं फेर? 
क्या हुआ यदि हो सके परिचित न पहली बार? 
यदि तुम्हारी माँ न माध्यम बनी होती आज 
मैं न सकता देख 
मैं न पाता जान 
तुम्हारी यह दंतुरित मुसकान

शब्दार्थ 

अनिमेष-बिना पलक झपकाए लगातार देखना  फेर लूँ-हटा लूँ परिचित-जाना पहचाना माध्यम-सहारा

भावार्थ

कवि को बच्चे की मुसकान मनमोहक लगती है। जब बच्चा पहली बार किसी को देखता है, तो वह अजनबी की तरह उसे घूरता रहता है। इसी कारण कवि बच्चे से कहता है कि तुम मुझे पहचान नहीं पाए हो, इसी कारण लगातार बिना पलक झपकाए अजनबियों की तरह मुझे देख रहे हो। कवि बच्चे से कहता है कि इस प्रकार लगातार देखते रहने से तुम थक गए होगे, इसलिए मैं ही तुम्हारी ओर से अपनी आँखें हटा लेता हूँ। यदि तुम मुझे पहली बार में नहीं पहचान सके तो कोई बात नहीं। यदि तुम्हारी माँ तुम्हारा परिचय मुझसे न कराती अर्थात्‌ यदि तुम्हारी माँ तुम्हारे और मेरे बीच माध्यम का काम न करती, तो तुम मुझे देखकर हँसते नहीं और मैं तुम्हारे इन नए-नए निकले दाँतों वाली मुसकान को देखने का सौभाग्य प्राप्त न कर पाता। 

काव्यांश 3 

धन्य तुम, माँ भी तुम्हारी धन्य! 
चिर प्रवासी मैं इतर, मैं अन्य! 
इस अतिथि से प्रिय तुम्हारा क्या रहा संपर्क 
उंगलियाँ माँ की कराती रही हैं मधुपर्क 
देखते तुम इधर कनखी मार 
और होतीं जब कि आँखें चार 
तब तुम्हारी दंतुरित मुसकान 
मुझे लगती बड़ी ही छविमान! 

शब्दार्थ

चिर-लंबे समय से प्रवासी-विदेश में रहने वाला मधुपर्क- शहद, घी, दही, जल और दूध को मिलाकर बनाया जाने वाला पदार्थ , जिसे कुछ लोग पंचामृत भी कहते हैं  कमखी-तिरछी नज़रों से देखना छविमान-सुंदर
इतर-दूसरा संपर्क-संबंध

भावार्थ 

 

कवि बच्चे की मधुर मुसकान देखकर कहता है कि तुम धन्य हो और तुम्हारी माँ भी धन्य है, जो तुम्हें एक-दूसरे का साथ मिला है। मैं तो सदैव बाहर ही रहा, तुम्हारे लिए मैं अपरिचित ही रहा। मैं एक अतिथि हूँ। हे प्रिय! मुझसे तुम्हारी आत्मीयता कैसे हो सकती है? अर्थात्‌ मेरा तुमसे कोई संपर्क नहीं रहा। तुम्हारे लिए तो तुम्हारी माँ की उँगलियों में ही आत्मीयता है, जिन्होंने तुम्हें पंचामृत पिलाया, इसलिए तुम उनका हाथ पकड़कर मुझे तिरछी नज़रों से देख रहे हो। जब तुम्हारी नज़रें मेरी न॒ज़र से मिल जाती हैं, तब तुम मुसकरा देते हो। उस समय तुम्हारे नए-नए निकले दाँतों वाली मधुर मुसकान मुझे बहुत ही प्रिय लगती है।

फसल

काव्यांश 1 


एक के नहीं, दो के नहीं,
ढेर सारी नदियों के पानी का जादू:
एक के नहीं, दो के नहीं,
लाख-लाख कोटि-कोटि हाथों के स्पर्श की गरिमा:
एक की नहीं दो की नहीं,
हज़ार-हज़ार खेतों की मिट॒टी का गुण धर्म:

 

शब्दार्थ

कोटि-कोटि-करोड़ों स्पर्श-छूना  गरिमा-महिमा  गुण-धर्म-स्वभाव

भावार्थ 

कवि ने इस बात को स्पष्ट किया है कि लहलहाती फसल को पैदा करने में प्रकृति और मनुष्य दोनों का ही पारस्परिक सहयोग होता है। इसलिए वह कहता है कि फसल को पैदा करने में केवल एक-दो नदियाँ ही नहीं, अपितु अनेक नदियाँ अपना जल देकर उसकी सिंचाई करती हैं। उसमें केवल एक-दो मनुष्यों का ही नहीं, अपितु लाखों-करोड़ों मनुष्यों का परिश्रम मिलता है और उसमें केवल एक-दो खेतों का ही नहीं, अपितु हज़ार-हज़ार खेतों की मिट्टी का गुण-धर्म मिलता है, तब खेतों में लहलहाती फसल पैदा होती है। इस प्रकार प्रकृति और मनुष्य दोनों के सहयोग से ही सृजन संभव होता है।

काव्यांश 2 

फसल कया है?
और तो कुछ नहीं है वह
नदियों के पानी का जादू है वह
हाथों के स्पर्श की महिमा है
भूरी-काली-संदली मिट्टी का गुण-धर्म है
रूपांतर है सूरज की किरणों का
सिमटा हुआ संकोच है हवा की थिरकन का!

शब्दार्थ

संदली-एक प्रकार की मिट्टी रूपांतर-बदला हुआ रूप संकोच-झिझक थिरकन-नृत्य

भावार्थ

कवि ने इस बात को स्पष्ट किया है कि फसल को पैदा करने में प्रकृति और मनुष्य दोनों का ही सहयोग होता है। इसी से सृजन संभव होता है, इसलिए कवि कहता है कि फसल का स्वयं कोई अस्तित्व नहीं है। वह तो नदियों द्वारा दिए गए उस पानी का जादू है, जिससे फसल की सिंचाई हुई थी। वह तो लाखों-करोड़ों मनुष्यों द्वारा किए गए परिश्रम की महिमा का फल है। वह तो भूरी-काली-संदली मिट्टी का गुण-धर्म है, जिसमें फसल को बोया गया था। वह तो सूरज की किरणों का बदला हुआ रूप है, जिसके द्वारा फसल को रोशनी मिली। साथ ही इसमें हवा का भी समान सहयोग है। इस प्रकार इन सबके सहयोग से ही खेतों में लहलहाती फसल खड़ी होती है।

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Filed Under: Class 10, Hindi, Kshitij

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Comments

  1. Surjeet says

    December 17, 2022 at 6:40 am

    It’s a right explained website

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