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पाठ की रूपरेखा
‘यह दंतुरित मुसकान’ कविता के अंतर्गत कवि मे एक छोटे बालक की मुसकान का वर्णन किया है। बालक की मुसकान को अमूल्य माना गया है। बालक की मनोहारी मुसकान को देखकर उदासीन व्यक्ति के जीवन में भी रस भर जाता है साथ ही, कवि ने वात्सल्य भाव की भी अभिव्यक्ति कविता में की है। बच्चे की कोमल दंतुरित मुसकान कठोर-से-कठोर हृदय को भी पिघला देती है। ‘फसल’ कविता में कवि ने अनेक तत्त्वों का उल्लेख किया है, जिसके सहयोग से फसल का निर्माण होता है। कविता में फसल के निर्माण में किसान की भूमिका व उसके परिश्रम को रेखांकित करने के साथ ही साथ मिट्टी, जल, सूर्य, हवा आदि सभी के योगदान को भी बताया है। प्रकृति व मनुष्य के परस्पर सहयोग का ही परिणाम ‘फसल’ है।
कवि-परिचय
कविताओं का भावार्थ
यह दंतुरित मुसकान
काव्यांश 1
शब्दार्थ
दंतुरित-बच्चे के नए नए निकले दाँत | मृतक-मरा हुआ (उदास हृदय वाला व्यक्ति) | धूलि-धूसर-धूल मिट॒टी में सने हुए | गात-शरीर |
जलजात-कमल का फूल | परस-स्पर्श | पाषाण-पत्थर | शेफालिका-एक पौधे का नाम |
बबूल-काँटेदार पेड़ |
भावार्थ
काव्यांश 2
तुम मुझे पाए नहीं पहचान?
शब्दार्थ
अनिमेष-बिना पलक झपकाए लगातार देखना | फेर लूँ-हटा लूँ | परिचित-जाना पहचाना | माध्यम-सहारा |
भावार्थ
कवि को बच्चे की मुसकान मनमोहक लगती है। जब बच्चा पहली बार किसी को देखता है, तो वह अजनबी की तरह उसे घूरता रहता है। इसी कारण कवि बच्चे से कहता है कि तुम मुझे पहचान नहीं पाए हो, इसी कारण लगातार बिना पलक झपकाए अजनबियों की तरह मुझे देख रहे हो। कवि बच्चे से कहता है कि इस प्रकार लगातार देखते रहने से तुम थक गए होगे, इसलिए मैं ही तुम्हारी ओर से अपनी आँखें हटा लेता हूँ। यदि तुम मुझे पहली बार में नहीं पहचान सके तो कोई बात नहीं। यदि तुम्हारी माँ तुम्हारा परिचय मुझसे न कराती अर्थात् यदि तुम्हारी माँ तुम्हारे और मेरे बीच माध्यम का काम न करती, तो तुम मुझे देखकर हँसते नहीं और मैं तुम्हारे इन नए-नए निकले दाँतों वाली मुसकान को देखने का सौभाग्य प्राप्त न कर पाता।
काव्यांश 3
शब्दार्थ
चिर-लंबे समय से प्रवासी-विदेश में रहने वाला | मधुपर्क- शहद, घी, दही, जल और दूध को मिलाकर बनाया जाने वाला पदार्थ , जिसे कुछ लोग पंचामृत भी कहते हैं | कमखी-तिरछी नज़रों से देखना | छविमान-सुंदर |
इतर-दूसरा | संपर्क-संबंध |
भावार्थ
कवि बच्चे की मधुर मुसकान देखकर कहता है कि तुम धन्य हो और तुम्हारी माँ भी धन्य है, जो तुम्हें एक-दूसरे का साथ मिला है। मैं तो सदैव बाहर ही रहा, तुम्हारे लिए मैं अपरिचित ही रहा। मैं एक अतिथि हूँ। हे प्रिय! मुझसे तुम्हारी आत्मीयता कैसे हो सकती है? अर्थात् मेरा तुमसे कोई संपर्क नहीं रहा। तुम्हारे लिए तो तुम्हारी माँ की उँगलियों में ही आत्मीयता है, जिन्होंने तुम्हें पंचामृत पिलाया, इसलिए तुम उनका हाथ पकड़कर मुझे तिरछी नज़रों से देख रहे हो। जब तुम्हारी नज़रें मेरी न॒ज़र से मिल जाती हैं, तब तुम मुसकरा देते हो। उस समय तुम्हारे नए-नए निकले दाँतों वाली मधुर मुसकान मुझे बहुत ही प्रिय लगती है।
फसल
काव्यांश 1
एक के नहीं, दो के नहीं,
ढेर सारी नदियों के पानी का जादू:
एक के नहीं, दो के नहीं,
लाख-लाख कोटि-कोटि हाथों के स्पर्श की गरिमा:
एक की नहीं दो की नहीं,
हज़ार-हज़ार खेतों की मिट॒टी का गुण धर्म:
शब्दार्थ
कोटि-कोटि-करोड़ों | स्पर्श-छूना | गरिमा-महिमा | गुण-धर्म-स्वभाव |
भावार्थ
कवि ने इस बात को स्पष्ट किया है कि लहलहाती फसल को पैदा करने में प्रकृति और मनुष्य दोनों का ही पारस्परिक सहयोग होता है। इसलिए वह कहता है कि फसल को पैदा करने में केवल एक-दो नदियाँ ही नहीं, अपितु अनेक नदियाँ अपना जल देकर उसकी सिंचाई करती हैं। उसमें केवल एक-दो मनुष्यों का ही नहीं, अपितु लाखों-करोड़ों मनुष्यों का परिश्रम मिलता है और उसमें केवल एक-दो खेतों का ही नहीं, अपितु हज़ार-हज़ार खेतों की मिट्टी का गुण-धर्म मिलता है, तब खेतों में लहलहाती फसल पैदा होती है। इस प्रकार प्रकृति और मनुष्य दोनों के सहयोग से ही सृजन संभव होता है।
काव्यांश 2
फसल कया है?
और तो कुछ नहीं है वह
नदियों के पानी का जादू है वह
हाथों के स्पर्श की महिमा है
भूरी-काली-संदली मिट्टी का गुण-धर्म है
रूपांतर है सूरज की किरणों का
सिमटा हुआ संकोच है हवा की थिरकन का!
शब्दार्थ
संदली-एक प्रकार की मिट्टी | रूपांतर-बदला हुआ रूप | संकोच-झिझक | थिरकन-नृत्य |
भावार्थ
कवि ने इस बात को स्पष्ट किया है कि फसल को पैदा करने में प्रकृति और मनुष्य दोनों का ही सहयोग होता है। इसी से सृजन संभव होता है, इसलिए कवि कहता है कि फसल का स्वयं कोई अस्तित्व नहीं है। वह तो नदियों द्वारा दिए गए उस पानी का जादू है, जिससे फसल की सिंचाई हुई थी। वह तो लाखों-करोड़ों मनुष्यों द्वारा किए गए परिश्रम की महिमा का फल है। वह तो भूरी-काली-संदली मिट्टी का गुण-धर्म है, जिसमें फसल को बोया गया था। वह तो सूरज की किरणों का बदला हुआ रूप है, जिसके द्वारा फसल को रोशनी मिली। साथ ही इसमें हवा का भी समान सहयोग है। इस प्रकार इन सबके सहयोग से ही खेतों में लहलहाती फसल खड़ी होती है।
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