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Home » Class 10 » Hindi » Kshitij » संगतकार – पठन सामग्री और भावार्थ Chapter 9 Class 10 Hindi

संगतकार – पठन सामग्री और भावार्थ Chapter 9 Class 10 Hindi

Last Updated on April 5, 2023 By Mrs Shilpi Nagpal

Contents

  • 1 पाठ की रूपरेखा 
  • 2 कवि-परिचय 
  • 3 काव्यांशों का भावार्थ
    • 3.1 काव्यांश 1 
      • 3.1.1 शब्दार्थ 
      • 3.1.2 भावार्थ
    • 3.2 काव्यांश 2 
      • 3.2.1 शब्दार्थ
      • 3.2.2 भावार्थ
    • 3.3 काव्यांश 3 
      • 3.3.1 शब्दार्थ 
      • 3.3.2 भावार्थ

पाठ की रूपरेखा 

कविता में मुख्य गायक का साथ देने वाले संगीतकार की भूमिका के महत्त्व पर विचार किया गया है। संगीतकार न केवल दृश्य माध्यम की प्रस्तुतियों में साथ देता है, बल्कि समाज और राष्ट्र के निर्माण व विकास में संगीतकारों जैसे अनेक लोगों ने अहम भूमिका निभाई है। कविता इस बात पर भी प्रकाश डालती है कि सहयोगी की भूमिका और नायक के पीछे रहना उनकी कमज़ोरी नहीं, बल्कि मानवीयता है। कविता की दृश्यात्मकता कविता को ऐसी गति देती है, मानो हम सब कुछ अपने सामने घटते देख रहे हैं। 

कवि-परिचय 

मंगलेश डबराल का जन्म 16 मई, 1948 को उत्तराखंड स्थित टिहरी गढ़वाल के काफलपानी गाँव में हुआ। देहरादून से शिक्षा प्राप्त करने के पश्चात्‌ ये दिल्‍ली आकर हिंदी पेट्रियट, प्रतिपक्ष तथा आसपास से जुड़ गए। तत्पश्चात्‌ कला परिषद्‌, भारत भवन, भोपाल से प्रकाशित त्रैमासिक पूर्वाग्रह में सहायक संपादक का कार्यभार सँभाला । अमृत प्रभात, जनसत्ता और सहारा समय में संपादन कार्य करने के पश्चात्‌ इन दिनों ये नेशनल बुक ट्रस्ट में अपनी सेवा दे रहे है। पहाड़ पर लालटेन, घर का रास्ता, हम जो देखते हैं, आवाज़ भी एक जगह है तथा नए युग में शत्रु इनके प्रसिद्ध काव्य-संग्रह; लेखक की रोटी तथा कवि का अकेलापन गद्य संग्रह और एक बार आयोवा यात्रावृत्त है। इनकी कविताएँ कई विदेशी भाषाओं में भी अनूदित हैं। स्वयं डबराल भी एक ख्याति प्राप्त अनुवादक हैं। इन्हें साहित्य अकादमी पुरस्कार, साहित्यकार सम्मान, पहल सम्मान, कुमार विमल स्मृति पुरस्कार , श्रीकांत बर्मा पुरस्कार आदि से विभूषित किया गया है।

 

काव्यांशों का भावार्थ

काव्यांश 1 

मुख्य गायक के चट्टान जैसे भारी स्वर का साथ देती
वह आवाज़ सुंदर कमज़ोर काँपती हुई थी
वह मुख्य गायक का छोटा भाई है
या उसका शिष्य
या पैदल चलकर सीखने आने वाला दूर का कोई रिश्तेदार 
मुख्य गायक की गरज़ में 
वह अपनी गूँज मिलाता आया है प्राचीन काल से 


शब्दार्थ 

मुख्य गायक-वह गायक जिसकी आवाज़ सबसे अधिक और ज़ोर से सुनाई देती है कमज़ोर कांपती हुई-धीमी और पतली  शिष्य-सीखने वाला छात्र रिश्तेदार-संबंधी
गरज़-ऊँची-गंभीर आवाज़


भावार्थ

कवि कहता है कि मुख्य गायक की सफलता के पीछे संगीतकार का योगदान छिपा रहता है। जब मुख्य गायक चट्टान के समान गम्भीर, भारी भरकम आवाज़ में गाता था, तो उसका संगीतकार अपनी अत्यन्त सुन्दर काँपती हुई आवाज से उसका साथ देता था। ऐसा लगता था जैसे संगीतकार या तो मुख्य गायक का छोटा भाई है या उसका परम शिष्य। या फिर कोई दूर का रिश्तेदार, जो पैदल चलकर संगीत सीखने आया हो। अपनेपन से मुख्य गायक की में अप आवाज़ ना खूबसूरत स्वर मिलाने वाला निश्चय ही उसका कोई अपना ही हो सकता है। वह सदैव से ही मुख्य गायक की ऊँची गम्भीर आवाज़ में अपना आलाप लगाता चला आया है।

काव्यांश 2 

गायक जब अंतरे की जटिल तानों के जंगल में 
खो चुका होता है या अपने ही सरगम को लॉघकर 
चला जाता है भटकता हुआ एक अनहद में 
तब संगीतकार ही स्थायी को सँभाले रहता है 
जैसे समेटता हो मुख्य गायक का पीछे छूटा हुआ सामान 
जैसे उसे याद दिलाता हो उसका बचपन
जब वह नौसिखिया था 

शब्दार्थ

अंतरा-स्थायी या टेक को छोड़कर गीत का चरण जटिल-कठिन तान-संगीत में स्वर का विस्तार  सरगम-संगीत के सात स्वरों का समूह
 अनहद-बिना आघात की गूँज संगीतकार -गायन-वादन द्वारा मुख्य कलाकार का साथ देने वाला स्थायी-बार-बार प्रयोग किया जाने वाला गायन-वादन का प्रारंभिक चरण  नौसिखिया-जिसने अभी सीखना आरंभ किया हो

भावार्थ

जब मुख्य गायक स्थायी या टेक को छोड़कर अंतरे के रूप में बंदिश अर्थात्‌ गीत का अगला चरण पकड़ता है और कठिन तानों की सफलतापूर्ण प्रस्तुति करता है या अपने ही सरगम को लाँघकर एक ऊँचे स्वर में खो जाता है, तब संगीतकार ही गाने के स्थायी को पकड़े रहता है। यहाँ कवि ने गायन की उस स्थिति का वर्णन किया है, जहाँ मुख्य गायक गाते-गाते अलौकिक आनंद में डूब जाता है और उसे पास बैठे श्रोताओं की अनुभूति भी नहीं रहती। उस स्थिति में संगीतकार मुख्य गायक और श्रोतागण के मध्य सेतु का कार्य करता हुआ कार्यक्रम में चार चाँद लगा देता है। उस समय ऐसा लगता है, जैसे वह मुख्य गायक का पीछे छूटा हुआ सामान समेट रहा हो, जैसे वह उसे उसका बचपन याद दिला रहा हो, जब वह संगीत सीख रहा था।

काव्यांश 3 

तारसप्तक में जब बैठने लगता है उसका गला
प्रेणणा साथ छोड़ती हुई उत्साह अस्त होता हुआ
आवाज़ से राख जैसा कुछ गिरता हुआ
तभी मुख्य गायक को ढाँढ़स बँघाता
कहीं से चला आता है संगतकार का स्वर
कभी-कभी वह यों ही दे देता है उसका साथ
यह बताने के लिए कि वह अकेला नहीं है और यह कि फिर से गाया जा सकता है
गाया जा चुका राग
और उसकी आवाज़ में जो एक हिंचक साफ़ सुनाई देती है
या-अपने स्वर को ऊँचा न उठाने की जो कोशिश है
उसे विफलता नहीं
उसकी मनुष्यता समझी जानी चाहिए।


शब्दार्थ 

तारसप्तक-मध्य सप्तक से ऊपर का सप्तक अस्त होना-कम होना/छिप जाना राख जैसा कुछ गिरता हुआ-बुझता हुआ स्वर ढाँढस बाँधना -तसल्ली देना/सांत्वना देना
हिचक-रुकावट  विफलता–असफलता मनुष्यता- मानवीय गुणों से युक्त/मानवता

भावार्थ

कवि कहता है कि जब मुख्य गायक ऊँचे स्वर में गाता है तथा जब उसकी आवाज़ तारसप्तक में पहुँच जाती है, तो उच्च ध्वनि के कारण उसका गला बैठने लगता है। उस समय उसकी प्रेरणा उसका साथ छोड़ने लगती है, उसकी गाने की शक्ति समाप्त होने लगती है तथा उसका उत्साह भी शान्त पड़ने लगता है। उसका स्वर बुझ-सा जाता है तथा वह स्वयं को हतोत्साहित महसूस करने लगता है। उसे समझ में आने लगता है कि अब वह अच्छी तरह नहीं गा पायेगा। निराशा भरे उन्हीं क्षणों में संगीतकार उसका मनोबल बढ़ाता है। उसके डूबते स्वर में अपना स्वर जोड़ देता है। कभी-कभी संगीतकार अनावश्यक रूप से भी उसका साथ देकर मुख्य गायक को अकेलेपन का अहसास नहीं होने देता। वह अपने राग के माध्यम से मुख्य गायक को यह भी बता देता है कि पहले गाया गया राग फिर से भी गाया जा सकता है। यह सब आभास कराते समय संगीतकार के हृदय में संकोच का स्वर साफ़ -साफ़ सुनाई देता है। वह गाते समय यह कोशिश करता है कि उसका स्वर मुख्य गायक के स्वर से किसी भी हालत में ऊँचा न उठ पाये। कवि का कहना है कि संगीतकार की इस कोशिश को उसकी असफलता न समझकर उसकी इंसानियत समझना चाहिए। गुरु के प्रति समर्पण भाव के कारण वह शक्ति एवं सामर्थ्य होने पर भी स्वयं को ऊँचा उठाकर अपने कौशल का प्रदर्शन नहीं करता, बल्कि अपने गुरु की महानता को ही महत्व देने का प्रयत्न करता है।
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Filed Under: Class 10, Hindi, Kshitij

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