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Home » Class 10 » Hindi » Kshitij » कन्यादान – पठन सामग्री और भावार्थ Chapter 8 Class 10 Hindi

कन्यादान – पठन सामग्री और भावार्थ Chapter 8 Class 10 Hindi

Last Updated on February 16, 2023 By Mrs Shilpi Nagpal

Contents

  • 1 पाठ की रूपरेखा 
  • 2
  • 3 कवि-परिचय 
  • 4 काव्याशों का भावार्थ
    • 4.1 काव्यांश 1 
      • 4.1.1 शब्दार्थ
      • 4.1.2 भावार्थ 
    • 4.2 काव्यांश 2
      • 4.2.1 शब्दार्थ 
      • 4.2.2 भावार्थ

पाठ की रूपरेखा 

प्रस्तुत कविता में स्त्री जीवन के प्रति कवि की गहरी संवेदनशीलता प्रकट हुई है। कवि ने ‘स्त्री’ के लिए ‘कोमलता’ के गौरव में छिपी ‘कमज़ोरी’ के उपहास का विरोध किया है। कविता में कोरी भावुकता नहीं, बल्कि माँ के संचित अनुभवों की पीड़ा की प्रामाणिक अभिव्यक्ति है। माँ अपनी भोली- भाली, निश्छल हृदय और अनुभवशून्य बेटी को स्त्री जीवन में आने वाली कठिन परिस्थितियों के प्रति सचेत करती हुई आदर्शीकरण का प्रतिकार करने की सीख दे रही है। इस कविता में स्त्री जीवन को दु:खमय बनाने वाली कुरीतियों को भी उजागर किया गया है।

☛ NCERT Solutions For Class 10 Chapter 8 कन्यादान

कवि-परिचय 

ऋतुराज का जन्म 10 फरवरी, 1940 को राजस्थान के भरतपुर में हुआ। जयपुर से अंग्रेजी में एम. ए. करने के पश्चात्‌ ये 40 वर्षों तक अध्यापन कार्य से जुड़े रहे। इससे सेवानिवृत्त होकर इन्होंने तीन वर्षों तक चायना रेडियो इंटरनेशनल में विदेशी-भाषा विशेषज्ञ का पद सँभाला। इनकी कविताओं में सामाजिक शोषण एवं बिडंबनाओं का यथार्थ चित्रण मिलता है। अब तक इनके दस काव्य संग्रह-मैं अंगारिस , पुल पर पानी, एक मरणधर्मा और अन्य, लीला मुखातविंद, सुरत निरत, आशा नाम नदी, कितना थोड़ा वक्‍त, अबेकस  प्रवोधचंद्रोदय एवं चुनी हुई कविताएँ प्रकाशित हो चुके हैं। लज़्जाराम मेहता इनकी आलोचनात्मक एवं कविता की बात, संपादित रचना है। इन्हें पहल सम्मान, बिहारी सम्मान ,परिमल सम्मान , मीरा पुरस्कार, सोमदत्त सम्मान, धुवरद्मण्यम्‌ भारती हिंदी सेवी सम्मान आदि से विभूषित किया जा चुका है।


काव्याशों का भावार्थ

काव्यांश 1 

कितना प्रामाणिक था उसका दुःख 
लड़की को दान में देते वक्‍त 
जैसे वही उसकी अंतिम पूँजी हो 
लड़की अभी सयानी नहीं थी 
अभी इतनी भोली सरल  थी.
कि उसे सुख का आभास तो होता था
लेकिन दु:ख बाँचना नहीं आता था
पाठिका थी वह धुँधले प्रकाश की
कुछ तुकों और कुछ लयबद्ध पंक्तियों की

शब्दार्थ

प्रामाणिक-सच्चा/वास्तविक  वक्त – समय  पूँजी–धन  सयानी-समझदार
आभास-महसूस होना/ प्रतीत होना बाँचना -कहना/पढ़ना/समझना पाठिका-पढ़ने वाली लयबद्ध-लय से भरी हुई
धुँधला–अस्पष्ट/ठीक से न दिखाई देने वाला

भावार्थ 

प्रस्तुत कविता मैं कन्यादान के समय माँ अपनी बेटी को स्त्री के परंपरागत आदर्श रूप से हटकर सीख दे रही है। इसमें कोरी भावुकता नहीं, बल्कि माँ के संचित अनुभवों की पीड़ा की प्रामाणिक अभिव्यक्ति हुई है। जब माँ ने अपनी बेटी के विवाह के समय उसे विदा किया, तो उसे लगा कि वह अपनी अंतिम पूंजी  किसी को सौंप रही है। उस समय उसका दु:ख स्वाभाविक था, क्‍योंकि बेटी माँ से ही अपने सुख-दु:ख की बात कहती है। माँ दुःखी इसलिए थी, क्‍योंकि उसकी पुत्री अभी बहुत सयानी नहीं हुई थी । उसमें संसार की चालाकी को समझने की समझ नहीं थी। उसे ससुराल पक्ष की कठोर सच्चाइयों का और उसमें पुरुष-प्रधान समाज के बंधनों का ज्ञान नहीं था। उसमें इतनी सरलता तथा भोलापन था कि उसे सुख क्या है यह तो पता था, किंतु दुःख किसे कहते हैं, यह नहीं पता। वह तुकों और लय से बँधी काव्य-पंक्तियों को पढ़ना जानती थी। आशय यह है कि उसे विवाह के केवल सुरीले और मोहक पक्ष का पता था और वह केवल काल्पनिक सुखों में जीती थी।

 

काव्यांश 2

माँ ने कहा पानी में झाँककर
अपने चेहरे पर मत रीझना
आग रोटियाँ सेंकने के लिए है
जलने के लिए नहीं
वस्त्र और आभूषण शाब्दिक भ्रमों की तरह
बंधन हैं स्त्री जीवन के
माँ ने कहा लड़की होना
पर लड़की जैसी दिखाई मत देना। 

शब्दार्थ 

रिझाना – प्रसन्न होना आभूषण – गहने  शाब्दिक भ्रम-शब्दों का भ्रम/शब्दों द्वारा फैलाया गया संदेह धन- बेडियाँ/ रुकावटें

भावार्थ

प्रस्तुत कविता में माँ अपनी बेटी को स्त्री के परंपरागत आदर्श रूप से हटकर सीख देते हुए कहती है कि बेटी जब तुम पानी में देखो तो अपने सौंदर्य पर प्रसन्न मत होने लगना, साथ ही आग से भी सावधान रहना। जिस आग से रोटियाँ सेंकी जाती हैं, वही आग जलाने का कार्य भी करती है। अतः अपने जीवन के प्रति सदा सचेत रहना। इतना ही नहीं, माँ अपनी बेटी को आभूषणों के प्रति स्त्री-मोह की कमज़ोरी की सच्चाई का ज्ञान कराते हुए यह भी कहती है कि तुम वस्त्रों और आभूषणों के मोह में मत पड़ना । ये तो दूसरों के द्वारा किए गए प्रशंसात्मक शब्दों की तरह हैं, जो स्नेह का आभास दिलाकर तुम्हें बंधन में जकड़ लेंगे। ससुराल में रहकर तुम लड़की की तरह मर्यादा भरा आचरण करना, लेकिन एक सामान्य और कमज़ोर लड़की की तरह किसी के अत्याचार को सहकर दुर्बल मत बनना। तुम हमेशा अपने प्रति होने वाले अत्याचार एवं शोषण का साहसपूर्वक विरोध करना, ताकि लड़की को कभी कमज़ोर न समझा जा सके। माँ ने अपनी लड़की को सलाह दी-तू मन से लड़की की तरह भोली सरल और निश्छल रहना, परंतु  लोक – व्यवहार  में सावधान रहना। अपनी सरलता प्रकट न होने देना, वरना लोग तुझे मूर्ख बनाकर तेरा शोषण करेंगे। 
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Filed Under: Class 10, Hindi, Kshitij

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