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पाठ की रूपरेखा
प्रस्तुत कविता में स्त्री जीवन के प्रति कवि की गहरी संवेदनशीलता प्रकट हुई है। कवि ने ‘स्त्री’ के लिए ‘कोमलता’ के गौरव में छिपी ‘कमज़ोरी’ के उपहास का विरोध किया है। कविता में कोरी भावुकता नहीं, बल्कि माँ के संचित अनुभवों की पीड़ा की प्रामाणिक अभिव्यक्ति है। माँ अपनी भोली- भाली, निश्छल हृदय और अनुभवशून्य बेटी को स्त्री जीवन में आने वाली कठिन परिस्थितियों के प्रति सचेत करती हुई आदर्शीकरण का प्रतिकार करने की सीख दे रही है। इस कविता में स्त्री जीवन को दु:खमय बनाने वाली कुरीतियों को भी उजागर किया गया है।
कवि-परिचय
काव्याशों का भावार्थ
काव्यांश 1
कुछ तुकों और कुछ लयबद्ध पंक्तियों की
शब्दार्थ
प्रामाणिक-सच्चा/वास्तविक | वक्त – समय | पूँजी–धन | सयानी-समझदार |
आभास-महसूस होना/ प्रतीत होना | बाँचना -कहना/पढ़ना/समझना | पाठिका-पढ़ने वाली | लयबद्ध-लय से भरी हुई |
धुँधला–अस्पष्ट/ठीक से न दिखाई देने वाला |
भावार्थ
प्रस्तुत कविता मैं कन्यादान के समय माँ अपनी बेटी को स्त्री के परंपरागत आदर्श रूप से हटकर सीख दे रही है। इसमें कोरी भावुकता नहीं, बल्कि माँ के संचित अनुभवों की पीड़ा की प्रामाणिक अभिव्यक्ति हुई है। जब माँ ने अपनी बेटी के विवाह के समय उसे विदा किया, तो उसे लगा कि वह अपनी अंतिम पूंजी किसी को सौंप रही है। उस समय उसका दु:ख स्वाभाविक था, क्योंकि बेटी माँ से ही अपने सुख-दु:ख की बात कहती है। माँ दुःखी इसलिए थी, क्योंकि उसकी पुत्री अभी बहुत सयानी नहीं हुई थी । उसमें संसार की चालाकी को समझने की समझ नहीं थी। उसे ससुराल पक्ष की कठोर सच्चाइयों का और उसमें पुरुष-प्रधान समाज के बंधनों का ज्ञान नहीं था। उसमें इतनी सरलता तथा भोलापन था कि उसे सुख क्या है यह तो पता था, किंतु दुःख किसे कहते हैं, यह नहीं पता। वह तुकों और लय से बँधी काव्य-पंक्तियों को पढ़ना जानती थी। आशय यह है कि उसे विवाह के केवल सुरीले और मोहक पक्ष का पता था और वह केवल काल्पनिक सुखों में जीती थी।
काव्यांश 2
शब्दार्थ
रिझाना – प्रसन्न होना | आभूषण – गहने | शाब्दिक भ्रम-शब्दों का भ्रम/शब्दों द्वारा फैलाया गया संदेह | धन- बेडियाँ/ रुकावटें |
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