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पाठ की रूपरेखा
सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’ ने ‘उत्साह’ कविता के अंतर्गत बादलों को एक ओर तो लोगों की आकांक्षा (इच्छाओं) को पूरा करने बाला बताया है तथा दूसरी ओर उन्हें विध्वंस (ध्वस्त, नष्ट ), बिप्लब (विद्रोह) और क्रांति चेतना के प्रतीक के रूप में बताया है। कवि ‘निराला’ इस कविता के माध्यम से सामाजिक क्रांति और बदलाव लाना चाहते हैं। यह कविता एक आह्वान गीत है। ‘अट नहीं रही है’ कविता में कवि ने फागुन के सौंदर्य और उल्लास को दर्शाया है। फागुन मास की शोभा संपूर्ण वातावरण में बिखरी हुई है।
कवि-परिचय
काव्यांश 1
शब्दार्थ
घोर-भयंकर | गगन-आसमान | धाराधर-बादल | ललित-सुंदर |
विद्युत-बिजली | नवजीवन-नया जीवन | वज्न-कठोर | नूतन-नई |
भावार्थ
काव्यांश 2
शब्दार्थ
विकल-बेचैन | उन्मन -उदास | निदाघ-गर्मी | सकल-सारे |
अज्ञात-अनजान | अनंत-आकाश | तप्त-जलती | धरा-पृथ्वी |
भावार्थ
काव्यांश 3
शब्दार्थ
अट-समाना | आभा-सौंदर्य | पर-पंख | मंद-गंध-हल्की-हल्की खुशबू |
उर-हृदय | पुष्प-माल-फूलों की माला | पाट-पाट-जगह-जगह | शोभा-श्री-सौंदर्य |
Janvi Sharma says
Very helpful ☺️
LUCKY says
Thanku so much ☺
Trisha bajpai says
Thanku so much