क्षितिज – काव्य खंड – छाया मत छूना – गिरिजाकुमार माथुर
पेज नम्बर : 47
प्रश्न अभ्यास
प्रश्न 1 . कवि ने कठिन यथार्थ के पूजन की बात क्यों कही है?
उत्तर – कठिन यथार्थ ही जीवन का सत्य है। विगत की मधुर स्मृतियाँ और भविष्य के सुनहरे स्वप्न तो मात्र छायाएँ हैं, इन्हें याद करने से केवल दुख मिलता है। वर्तमान की वास्तविकता को स्वीकार कर व्यक्ति कठिनाइयों को सहजता से झेल लेता है। इसी कारण कवि ने कठिन यथार्थ के पूजन की बात कही है।
प्रश्न 2. भाव स्पष्ट कीजिए
प्रभुता का शरण-बिंब केवल मृगतृष्णा है,
हर चंद्रिका में छिपी एक रात कृष्णा है।
उत्तर – उच्च पद पर प्रतिष्ठित होने पर बड़प्पन का अहसास तो अवश्य होता है, पर मानसिक सुख नहीं मिलता। यह तो मन का छलावा है। हर सुख के साथ दुख जुड़ा ही रहता है, जैसे हर पूर्णिमा के बाद अमावस्या आती ही है।
प्रश्न 3. छाया! शब्द यहाँ किस संदर्भ में प्रयुक्त हुआ है? कवि ने उसे छूने के लिए मना क्यों किया है?
उत्तर – यहाँ ‘छाया’ शब्द विगत की सुखद स्मृतियों के लिए प्रयुक्त हुआ है।
कवि उन्हें छूने से मना करता है, क्योंकि
(i) ये वर्तमान के दुख को बहुत गहरा कर देती हैं।
(ii) वह भावुक और कल्पनाप्रिय हो जाता है। उसमें वास्तविकताओं का सामना करने की शक्ति नहीं रह जाती।
(iii) व्यक्ति विगत के सुखद पलों की काल्पनिकता से चिपककर वर्तमान से विमुख होने लगता है। उसकी यह पलायनवादी वृत्ति उसके विनाश का कारण बन सकती है।
प्रश्न 4. कविता में विशेषण के प्रयोग से शब्दों के अर्थ में विशेष प्रभाव पड़ता है, जैसे कठिन यथार्थ। कविता में आए ऐसे अन्य उदाहरण छाँटकर लिखिए और यह भी लिखिए कि इससे शब्दों के अर्थ में क्या विशिष्टता पैदा हुई?
उत्तर – दुख दूना’, “सुरंग सुधियाँ’, ‘जीवित-क्षण’, ‘एक रात कृष्णा’
इन विशेषणों के प्रयोग से संज्ञा शब्दों के अर्थ विशिष्ट हो गए हैं। ‘दूना’ विशेषण दुख में अत्यधिक वृद्धि की ओर संकेत करता है। ‘सुरंग’ विशेषण “सुधियों’ की मोहकता और रंग बिरंगेपन को दर्शाता है। ‘जीवित’ विशेषण क्षण” की जीवंतता को दर्शाता है तथा ‘एक’ व “कृष्णा” विशेषण रात के गहरे अंधकार की ओर संकेत करते हैं।
प्रश्न 5. “मृगतृष्णा! किसे कहते हैं, कविता में इसका प्रयोग किस अर्थ में हुआ है?
उत्तर – रेगिस्तान में रेत के टीलों पर चिलचिलाती धूप को पानी समझकर हिरण प्यास बुझाने दौड़ता है। इसी को मृगतृष्णा कहते हैं। छलावे की यही दौड़ उसके अंत का कारण बनती है। कविता में इसका प्रयोग “भ्रम’ और ‘छलावे’ के अर्थों में ही किया गया है। कवि यह समझाना चाहता है कि बड़प्पन का सुख सच्चा सुत्र नहीं है। मन का भ्रम है, छलावा है। यह दूर से दिखने वाला सुख ही है। इसमें भ्रमित होकर व्यक्ति दुख ही पाता है।
प्रश्न 6. “बीती ताहि बिसार दे आगे की सुधि ले” यह भाव कविता की किस पंक्ति में झलकता है?
उत्तर – “बीती ताहि बिसार दे आगे की सुधि ले’ यह भाव कविता की इस पंक्ति में झलकता है-“जो न मिला भूल उसे कर तू भविष्य वरण’।
प्रश्न 7. कविता में व्यक्त दुख के कारणों को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर – कविता में व्यक्त दुख के कारण निम्नलिखित हैं
(i) जीवन की सच्चाई से मुख मोड़ सुख वैभव के पीछे भागते हैं।
(ii) अतीत के सुख को याद कर वर्तमान के दुख को अधिक कर लेते हैं।
(iii) बीती स्मृतियों से उत्पन्न दुख जीवन को विषादग्रस्त कर देता है।
(iv) मनुष्य के पास जो है और जो नहीं है, उसका तुलनात्मक अध्ययन करना।
(v) शारीरिक सुख के लिए अनेक सुख सुविधाएँ प्राप्त होने पर भी यदि मन में दुख है, तो दुखों का कोई अंत नहीं।
(vi) साहस होते हुए भी दुविधाग्रस्त रहते हैं, जिससे स्वयं पर विश्वास न कर पाने से वह दुखी होता है।
(vii) मनुष्य यश, वैभव, धन और प्रभुता की मृगतृष्णा में भटकता है इनके पीछे जितना दौड़ता है, उतना ही उलझकर दुखी होता है।
रचना और अभिव्यक्ति
प्रश्न 8. “जीवन में हैं सुरंग सुधियाँ सुहावनी, से कवि का अभिप्राय जीवन की मधुर स्मृतियों से है। आपने अपने जीवन की कौन-कौन-सी स्मृतियाँ संजो रखी हैं?
उत्तर – मैंने अपने जीवन की अनेक मधुर स्मृतियों को सँजो कर रखा है, उनमें से कुछ निम्नलिखित हैं
(क) जब मैं पाँचवीं कक्षा में पढ़ता था, तो घर पर मेरा जन्मदिन मनाया जा रहा था। उस दिन पार्टी में केवल मित्रों को बुलाया गया था। मेरे सभी मित्र आ गए थे। हम बैठकर हँसी-मज़ाक कर रहे थे, अचाज़्क घंटी बजी। मैं हैरान हुआ कि सभी मित्र तो आ गए हैं, अब कौन है? मम्मी ने दरवाज़ा खोला तो सामने लंदन वाले चाचा जी को देख हम सब हैरान हो गए। उन्हें मेरा जन्मदिन याद था। वे हमें सरप्राइज देना चाहते थे इसलिए अपने आने की सूचना नहीं दी थी। उनके साथ हमने खूब मज़े किए। चाचा जी के सरप्राइज के कारण वह दिन मैं कभी नहीं भूल सकता।
(ख) एक बार कक्षा अध्यापिका ने मुझे प्रार्थना सभा में भाषण देने के लिए कहा । पहले मैं बहुत घबराया, क्योंकि उस दिन से पहले तक मैंने कभी भी मंच पर खड़े हो भाषण नहीं दिया था। सबके सहयोग से मैंने तैयारी तो कर ली, पर मन में बहुत डर था। काँपते-कॉपते मैं मंच पर पहुँचा। भाषण बहुत अच्छा रहा। सभी ने प्रशंसा की। प्रधानाचार्य जी ने भी मेरी पीठ थपथपाते हुए कहा कि मैंने बहुत अच्छा भाषण दिया है।
(ग) मुझे खेलों का बहुत शौक है। जब मैंने टेबल टेनिस का मैच खेला तो अपने क्षेत्र का सबसे अच्छा खिलाड़ी घोषित हुआ । इससे मेरी खुशी की सीमा न रही।
प्रश्न 9. “क्या हुआ जो खिला फूल रस-बसंत जाने पर?” कवि का मानना है कि समय बीत जाने पर भी उपलब्धि मनुष्य को आनंद देती है। क्या आप ऐसा मानते हैं? तर्क सहित लिखिए।
उत्तर – समय बीत जाने पर भी उपलब्धि मनुष्य को आनंद देती है। मैं इससे बिलकुल सहमत हूँ। हमें यह मानकर चलना चाहिए कि जीवन में सुख-दुख दोनों ही आते हैं और इन्हें स्वीकार भी करना पड़ता है। कई बार समय बीत जाने के बाद कोई उपलब्धि मिलती है, तो खुश होना चाहिए कि जीवन में कुछ तो मिला। उचित समय वही है, जब हम कुछ प्राप्त करें, जीवन की इस सच्चाई को स्वीकार करना चाहिए। यह सच है कि समय बीत जाने के बाद उपलब्धि व्यक्ति को अधिक प्रसन्नता नहीं प्रदान करती, पर मनुष्य तो वही है, जो हर परिस्थिति में संतुष्ट रह सके।
पाठेतर सक्रियता
आप गर्मी की चिलचिलाती धूप में कभी सफ़र करें तो दूर सड़क पर आपको पानी जैसा दिखाई देगा पर पास पहुँचने पर वहाँ कुछ नहीं होता। अपने जीवन में भी कभी-कभी हम सोचते कुछ हैं, दिखता कुछ है लेकिन वास्तविकता कुछ और होती है। आपके जीवन में घटे ऐसे किसी अनुभव को अपने प्रिय मित्र को पतन्न लिखकर अभिव्यक्त कीजिए।
प्रिय मित्र अभिमन्यु
मधुर स्मृति।
मित्र, विश्वास है कि तुम सपरिवार सानंद होगे। तुम इस वास्तविकता से भली भाँति परिचित होगे कि इस समय मैं दसवीं कक्षा में अध्ययन कर रहा हूँ। गतवर्ष मैंने नवीं कक्षा की वार्षिक परीक्षा दी, किंतु उससे एक सप्ताह पूर्व मैं अस्वस्थ हो गया और परीक्षा काल में भी मैं अस्वस्थ रहा। मैंने अस्वस्थ होते हुए भी नवीं की परीक्षा दी। परीक्षा में मैं उत्तीर्ण तो हो गया, लेकिन मेरे अंक मात्र 68 प्रतिशत ही आए, जबकि मैंने सोचा यह था कि मैं नवीं कक्षा में कम-से-कम 90 प्रतिशत अंक लेकर उत्तीर्ण होऊँगा। मैंने सोचा कुछ, दिखाई कुछ और दिया और वास्तविकता कुछ और रही। इसे ही जीवन में मृगतृष्णा कहते हैं। अब मैं दसवीं में हूँ और मृगतृष्णा से बाहर निकलकर जी-तोड़ परिश्रम कर रहा हूँ। मित्र अंकल और आंटी को मेरा चरणस्पर्श और छोटे भाई-बहन को हार्दिक प्यार। संभव हो सके तो कभी मेरे पास घूमने आ जाना।
तुम्हारा मित्र
राजू
Leave a Reply