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Home » NCERT Solutions » Class 10 » हिन्दी » NCERT Solutions for Class 10 हिन्दी – कृतिका – Chapter 3 – साना-साना हाथ जोड़ि

NCERT Solutions for Class 10 हिन्दी – कृतिका – Chapter 3 – साना-साना हाथ जोड़ि

Last Updated on July 3, 2023 By Mrs Shilpi Nagpal

कृतिका – साना-साना हाथ जोड़ि – मधु कांकरिया

पेज नम्बर : 29

प्रश्न अभ्यास

प्रश्न 1. झिलमिलाते सितारों की रोशनी में नहाया गंतोक लेखिका को किस तरह सम्मोहित कर रहा था?

उत्तर – ‘सम्मोहन” “वशीकरण की शक्ति” को कहते हैं। गंतोक का रात्रिकालीन सौंदर्य लेखिका को पूरी तरह अपने वश में कर रहा था। इसी कारण टिमटिमाते सितारों भरी रात उसे रहस्यमयी प्रतीत हो रही थी। लेखिका पर उसके नैसर्गिक सौंदर्य का जादुई प्रभाव इस कदर हो चुका था कि लेखिका, उनकी संपूर्ण चेतना तथा उनके आस-पास का अस्तित्व अर्थहीन हो गया था। उनके विचारों का क्रम जैसे ठहर-सा गया था। उनके अंतस में और बाहर केवल प्रकृति का वह अविस्मरणीय सौंदर्य समा गया था। वे अनिमेष ढलान लेती तराई पर सितारों के गुच्छों से बनी रोशनियों की झालर के उस रूप को निहार रही थी, जो लौकिक से अलौकिक हो रहा था।

प्रश्न 2 . गंतोक को “’मेहनतकश बादशाहों का शहर” क्‍यों कहा गया है?

उत्तर – गंतोक को मेहनतकश बादशाहों का शहर दो कारणों से कहा गया है –

यहाँ के लोग बहुत परिश्रमी हैं। घाटियों के बीच मार्ग निकालकर इसे टूरिस्ट स्पॉट बनाने में पुरुषों ने ही नहीं, स्त्रियों ने भी बहुत योगदान दिया है। लेखिका ने स्वयं देखा है कि कैसे स्त्रियाँ पीठ पर बँधी डोकों में बच्चों को बाँधकर, कुदाल को जमीन पर मारकर पत्थर तोड़कर पहाड़ी रास्तों को चौड़ा बनाती थीं, जिनसे होकर हिमशिखरों से टक्कर लेने जाया जा सकता था। रास्ता बनाने में इन्होंने मौत को भी झुठलाया था। पहाड़ी बच्चे पढ़ाई के साथ-साथ शाम को मवेशी चराने, पानी भरने, जंगल से लकड़ियाँ लाने का काम करते थे। स्त्रियाँ गाय चराने, लकड़ियों के गट्ठर ढोने और चाय बागान में चाय की पत्तियाँ तोड़ने का कार्य करने जैसी कठिन दिनचर्या बिताती थीं। भारत में मिलने से पूर्व सिक्किम स्वतंत्र रजवाड़ा था। इसलिए यह अनुमान लगाना सहज है कि उन बादशाहों की बुद्धिमत्ता एवं प्रजा के सहयोग से इस शहर को सुंदर बनाया गया होगा।

 

प्रश्न 3 . कभी श्वेत तो कभी रंगीन पताकाओं का फहराना किन अलग-अलग अवसरों की ओर संकेत करता है?

उत्तर – श्वेत पताकाएँ शोक के अवसर पर फहराई जाती हैं। किसी बुद्धिस्ट की मृत्यु होने पर उसकी आत्मा की शांति के लिए शहर से दूर किसी पवित्र स्थान पर मंत्र लिखी एक सौ आठ श्वेत पताकाएँ फहरा दी जाती हैं, जिन्हें शांति और अहिंसा का प्रतीक माना जाता है, जबकि रंगीन पताकाएँ किसी नए कार्य के शुभारंभ पर लगाई जाती हैं।

प्रश्न 4. जितेन नार्गे ने लेखिका को सिक्किम की प्रकृति, वहाँ की भौगोलिक स्थिति एवं जनजीवन के में क्या महत्वपूर्ण जानकारियाँ दीं, लिखिए।

उत्तर – जितेन नार्गे ने लेखिका को सिक्किम की प्रकृति, वहाँ की भौगोलिक स्थिति एवं जन-जीवन के बारे में अनेक महत्वपूर्ण जानकारियाँ दीं। उसने बताया कि सिक्किम बहुत ही सुंदर प्रदेश है। गैंगटॉक से 149 किलोमीटर की दूरी पर यूमथांग था। जितेन ने यूमथांग का मतलब बताया कि यूमथांग यानीघाटियाँ। सारे रास्ते हिमालय की गहनतम घाटियाँ और फूलों से लदी वादियाँ मिलती हैं। रास्ते में पाईन और धूपी के खूबसूरत नुकीले पेड़ों के दर्शन हुए। सिक्किम के लोग बौद्ध धर्म को मानते हैं। जब किसी बौद्ध धर्म के अनुयायी की मृत्यु होती है, तो उसकी आत्मा की शांति के लिए शहर से दूर किसी भी पवित्र स्थान पर एक सौ आठ श्वेत पताकाएँ फहरा दी जाती हैं। धीरे-धीरे ये अपने आप ही नष्ट हो जाती हैं। नए कार्य के आरंभ करने पर भी रंगीन पताकाएँ लगा दी जाती हैं। जगह-जगह दलाई लामा की तस्वीरें लगी हुई हैं। यहाँ के लोग परिश्रमी होते हैं, इसलिए सिक्किम राज्य की राजधानी गंतोक को मेहनतकश बादशाहों का जगमगाता शहर कहा जाता है। पहाड़ी औरतें बहुत परिश्रमी होती हैं। वे पत्थरों पर बैठी पत्थर तोड़ रही थीं। शरीर से कोमल, पर हाथों में कुदाल और हथौड़े। कई औरतों की पीठ पर बँधी टोकरी में उनके बच्चे बँधे हुए थे। पहाड़ी जीवन कठोर होता है। बच्चे स्कूल जाने के साथ-साथ शाम के समय अपनी मांओं के साथ मवेशी चराते हैं, पानी भरते हैं, जंगल से लकड़ियों के भारी-भारी गट्ठर ढोकर लाते हैं।

प्रश्न 5. लॉग स्टॉक में घूमते हुए चक्र को देखकर लेखिका को पूरे भारत की आत्मा एक-सी क्यों दिखाई दी?

उत्तर – लोंग स्टॉक में घूमते हुए चक्र के विषय में लोगों की धारणा है कि यह धर्मचक्र है। इसे घुमाने से सभी पाप धुल जाते हैं। यह सुनने पर जब लेखिका ने घूमते हुए चक्र को देखा तो उन्हें लगा कि धर्म के संबंध में इस देश के लोगों की आस्थाएँ, विश्वास, अंधविश्वास, पाप-पुण्य की अवधारणाएँ और कल्पनाएँ एक हैं। पहाड़ी लोग प्रेयर व्हील में आस्था रखते हैं, तो मैदानी लोग गंगा स्नान, तीर्थाटन, जप, व्रत आदि में विश्वास रखते हैं, अतः इस संबंध में पूरे भारत की आत्मा एक-सी ही प्रतीत होती है।

 

प्रश्न 6. जितेन नार्गे की गाइड की भूमिका के बारे में विचार करते हुए लिखिए कि एक कुशल गाइड में क्या गुण होते हैं?

उत्तर – जितेन नार्गे एक कुशल गाइड के साथ-साथ निपुण चालक भी था। एक कुशल गाइड को चालक भी होना चाहिए ताकि आवश्यकता पड़ने पर वह गाड़ी चला सके। जितेन को वहाँ की भौगोलिक स्थिति तथा विभिन्‍न स्थानों की जानकारी थी। एक कुशल गाइड को अपने क्षेत्र की भौगोलिक स्थिति तथा विभिन्‍न स्थानों के महत्त्व तथा उनसे जुड़ी रोचक जानकारियों का ज्ञान होना चाहिए, जिससे वह अपने पर्यटकों को संपूर्ण जानकारी दे सके। इससे पर्यटकों के मनोरंजन के साथ-साथ उनकी पर्यटन में रुचि भी बढ़ जाती है। जितेन नेपाली था, फिर भी उसे सिक्किप के जन-जीवन संस्कृति तथा धार्मिक मान्यताओं का पूरा ज्ञान था, उसे वहाँ के लोगों के कठोर जीवन की भी पूर्ण जानकारी थी। एक कुशल गाइड में ये गुण अवश्य होने चाहिए।

प्रश्न 7. इस यात्रा-वृत्तांत में लेखिका ने हिमालय के जिन-जिन रूपों का चित्र खींचा है, उन्हें अपने शब्दों में लिखिए।

उत्तर – ‘साना-साना हाथ जोड़ि’ यात्रा-वृत्तांत में लेखिका हिमालय के पल-पल परिवर्तित होते रूप को देखती हैं। लेखिका के अनुसार पर्यटन के उद्देश्य से निकले लोग सारे रास्ते हिमालय की गहनतम घाटियाँ और फूलों से लदी वादियों के साक्षी बनते हैं। जैसे-जैसे ऊँचाई पर चढ़ते जाते हैं, हिमालय छोटी-छोटी पहाड़ियों के रूप में नहीं, वरन अपने विशाल रूप तथा हर क्षण परिवर्तित सौंदर्य के साथ दिखाई देता है। हिमालय कहीं गहरे हरे रंग का मोटा कालीन ओढ़े, तो कहीं हल्का पीलापन लिए, तो कहीं पलास्तर उखड़ी दीवार की तरह पथरीला लगता है। ऐसा लगता है कि वहाँ किसी ने जादू की छड़ी घुमा दी हो। सब पर बादलों की एक मोटी चादर ओढ़ी नज़र आती है। चारों तरफ़ स्वर्ग-ही-स्वर्ग लगता है। जहाँ तक नज़र जाती है, सौंदर्य-ही-सौंदर्य दिखाई देता है! लगातार बहते झरने, नीचे तेज़ गति से बहती तीस्ता नदी, सामने उठती हुई धुंध। ऊपर आकाश में मँडराते आवारा बादल, धीमी-धीमी हवा में हिलते हुए प्रियुता और रूडोडेंड्रों के फूल मानों प्रकृति की सभी चीज़ें अपनी-अपनी लय, तान और प्रवाह में बह रही हों। ऐसा भी प्रतीत होता है कि मानों इस अद्भुत सौंदर्य में ईश्वर को निकट से देख लिया हो।

प्रश्न 8. प्रकृति के उस अनंत और विराट स्वरूप को देखकर लेखिका को कैसी अनुभूति होती है?

उत्तर – आँखों और आत्मा को सुख देने वाले हर क्षण परिवर्तित हिमालय के नज़ारे लेखिका को अभिभूत कर गए। हिमालय कहीं गहरे हरे रंग का मोटा कालीन ओढ़े, तो कहीं हल्का पीलापन लिए, तो कहीं पलास्तर उखड़ी दीवार की तरह पथरीला लग रहा था। ऐसा लगता था कि किसी ने जादू की छड़ी घुमा दी हो। सबपर बादलों की एक मोटी चादर ओढ़ी नजर आती थी। लेखिका चित्र लिखित-सी ‘माया’ और ‘छाया’ के इस अनूठे खेल को देखती जा रही थीं और प्रकृति उन्हें सयानी बनाने के लिए जीवन रहस्यों का उद्घाटन करने पर तुली हुई थी।

 

प्रश्न 9.  प्राकृतिक सौंदर्य के अलौकिक आनंद में डूबी लेखिका को कौन-कौन से दृश्य झकझोर गए?

उत्तर – प्राकृतिक सौंदर्य के अलौकिक आनंद में डूबी लेखिका के पैर अचानक रुक गए, उन्होंने देखा कि अद्वितीय सौंदर्य से बेखबर कुछ पहाड़ी औरतें पत्थरों पर बैठी पत्थर तोड़ रही थीं। वे शरीर से कोमल लग रही थीं, पर उनके हाथों में कुदाल और हथौड़े थे। कई औरतों की पीठ पर बँधी टोकरी में उनके बच्चे बँधे हुए थे। स्वर्गीय सौंदर्य के बीच भूख, मौत, दैन्य और ज़िंदा रहने के लिए यह जंग भी हो रही थी और वह भी मातृत्व और श्रम साधना के साथ-साथ। उनके फूले हुए पाँव और इन पत्थर तोड़ती पहाड़ियों के हाथों में पड़ी गाँठे एक ही कहानी कह रहे थे कि साधारण लोगों का जीवन हर जगह एक-सा है।

प्रश्न 10.  सैलानियों को प्रकृति की अलौकिक छटा का अनुभव करवाने में किन-किन लोगों का योगदान होता है, उल्लेख करें।

उत्तर – सैलानियों को प्रकृति की अलौकिक छटा का अनुभव करवाने में अनेक लोगों का योगदान होता है। आजकल ट्रेवल एजेंसियाँ सैलानियों को प्राकृतिक स्थलों की यात्रा करवाने के लिए वाहन तथा ठहरने के लिए स्थान संबंधी व्यवस्थाएँ करती हैं। वाहन चालक तथा परिचालक सैलानियों को प्रकृति के अद्भुत नज़ारों का दर्शन करवाते हैं। इन स्थलों की जानकारी रखने वाले गाइड महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हुए पर्यटन स्थलों की जानकारी प्रदान करते हैं। इसके साथ ही सरकार तथा पर्यटन विभाग भी अपनी भूमिका निभाते हैं। स्थानीय सरकार इन स्थलों के रखरखाव का ध्यान रखती है। स्थान-स्थान पर पर्यटन स्थलों की जानकारी हेतु नक्शे लगाना, खतरनाक मोड़ों पर चेतावनी लगाकर जान-माल की रक्षा करना जैसे कार्यों से सैलानियों की जीवन रक्षा का भार यह उठाती है। थोड़ी-बहुत जानकारी स्थानीय लोग तथा होटल के कर्मचारी आदि भी देते हैं, जिससे छोटे-बड़े सभी स्थलों का आनंद लिया जा सकता है।

प्रश्न 11. कितना कम लेकर ये समाज को कितना अधिक वापस लौटा देती हैं।” इस कथन के आधार पर स्पर करें कि आम जनता की देश की आर्थिक प्रगति में क्या भूमिका है?

उतर – प्राकृतिक सौंदर्य से अभिभूत हो, लेखिका अचानक चौंक उठती है, जब वह औरतों को शारीरिक श्रम करते देखती है। ये श्रम करने वाले अपने जीवन को संकट में डालते हैं तथा लोगों के लिए सुखों के साधन जुटाते हैं। मज़दूर, किसान, बड़ी-बड़ी सड़कें व पुल बनाने वाले, बड़े-बड़े भवन बनाने वाले कितना श्रम करते हैं और बदले में उन्हें कितना कम पैसा मिलता है। यदि ये न हों, तो हम जीवन के सुखों से वंचित हो जाएँ। ये श्रम करने वाले दिन-रात एक करके, भूखे रह, सुख-सुविधाओं से वंचित जीवन व्यतीत करते हैं। उनका श्रम देश की आर्थिक प्रगति में भी सहायक होता है। हमारे देश की जनता बहुत कम पारिश्रमिक लेकर देश की प्रगति में अहम भूमिका निभाती है।

 

प्रश्न 12. आज की पीढ़ी दवारा प्रकृति के साथ किस तरह का खिलवाड़ किया जा रहा है। इसे रोकने में आपकी क्या भूमिका होनी चाहिए?

उत्तर – आज की पीढ़ी आधुनिकता के रंग में रंगी हुई, प्रकृति को जाने-अनजाने नष्ट कर रही है। पर्वतीय स्थलों को गंदा कर, वहाँ के प्राकृतिक सौंदर्य को नष्ट कर रही है। आज की पीढ़ी चट्टानों पर नारे या विज्ञापन बनाकर उनके सौंदर्य को नष्ट कर देती है। लोग पर्यटन-स्थलों पर कूड़ा-करकट फेंककर उन्हें गंदा कर देते हैं। लोगों दवारा प्रकृति के अंधाधुंध शोषण से तापमान में वृद्धि हो रही है, पर्वत अपनी स्वाभाविक सुंदरता खो रहे हैं। इसे रोकना बहुत ज़रूरी है, वरना हम स्वर्गीय सौंदर्य से वंचित रह जाएँगे। हमें चाहिए कि हम सैर-सपाटा तो करें, किंतु पर्यटन-स्थलों को गंदा न करें। सफ़ाई का ध्यान रखें। कूड़े को इधर-उधर न फेंकें | पेड़-पौधों को नष्ट न करें। चट्टानों तथा दीवारों पर कुछ न लिखें। बहते पानी में कूड़ा न फेंकें। एक जागरूक नागरिक होने के नाते मैं पर्यावरण को स्वच्छ बनाए रखने के लिए लोगों को अधिक-से-अधिक वृक्षारोपण करने, पेड़ों को न काटने, प्रदूषण फैलाने वाले वाहनों एवं उपकरणों के कम-से-कम प्रयोग आदि के प्रति जागरूक करने का प्रयास करूँगा।

प्रश्न 13. प्रदूषण के कारण स्नोफॉल में कमी का जिक्र किया गया है, प्रदूषण के और कौन-कौन से दुष्परिणाम सामने आए हैं, लिखें।

उत्तर – पर्यावरण में बढ़ते प्रदूषण के दुष्प्रभाव के कारण अब पहाड़ों में बर्फ़ कम मात्रा में पड़ती है। प्रदूषण के और निम्नलिखित दुष्प्रभाव सामने आए हैं

(i) प्रदूषण से जल प्रदूषित होने लगा है, जिससे उसे सीधा पीने योग्य नहीं माना जाता। ऐसा करना बीमारियों को न्योता देना है।

(ii) प्रदूषण से वायु प्रदूषित होने लगी है, जिससे श्वास संबंधी रोग बढ़ने लगे हैं।

(iii) ध्वनि-प्रदूषण से उच्च रक्तचाप तथा हृदय रोग होने लगे हैं। यहाँ तक कि बहरेपन और मानसिक अस्थिरता जैसी बीमारियों भी सुनने को मिलती हैं।

(iv) प्रदूषण से भूमि की उपजाऊ क्षमता प्रभावित होने लगी है।

(v) प्रदूषण मौसम चक्र में परिवर्तन, ग्लोबल वार्मिंग का कारण तो बना ही है, साथ-ही-साथ यह अनेकानेक बीमारियों का कारण भी बन गया है।

 

प्रश्न 14. “कटाओ’ पर किसी भी दुकान का न होना उसके लिए वरदान है। इस कथन के पक्ष में अपनी राय व्यक्त कीजिए।

उत्तर – निःसंदेह ‘कटाओ’ पर किसी भी दुकान का न होना उसके लिए वरदान है। इसका सीधा अर्थ है इस स्थान को अभी “टूरिस्ट स्पॉट’ बनाने वालों की नजरें नहीं छुई हैं, वरना उसका नैसर्गिक सौंदर्य दब गया होता। यहाँ पहाड़ों को काटकर रास्ते बनाए जाते। पर्यटन विभाग इसे व्यापारिक दृष्टिकोण से उपयोगी बनाने हेतु इसके प्राकृतिक सौंदर्य से खिलवाड़ करता। धीरे-धीरे वहाँ सैलानियों की भीड़ बढ़ती, जिससे होटल, दुकानें आदि बढ़ने लगती | प्रदूषण अपने पाँव पसारकर “कटाओ” की सुंदरता का हरण करने लगता।

प्रश्न 15. प्रकृति ने जल-संचय की व्यवस्था किस प्रकार की है?

उत्तर – प्रकृति ने अत्यंत प्राकृतिक, किंतु वैज्ञानिक ढंग से जल-संचय की व्यवस्था की है। प्रकृति सर्दियों में हिम-खंडों पर बर्फ के रूप में जल-संग्रह कर लेती है। ग्रीष्म ऋतु में जल की आपूर्ति हेतु ये बर्फ-शिलाएँ पिघल-पिघल कर सूखे कंठों को तरावट पहुँचाने का कार्य करती हैं। झरनों तथा नदियों के रूप में ये पर्वतों से उतरकर मैदानों में आती हैं। नगरों तथा गाँवों में नहरों के रूप में बंधती हैं तथा नल द्वारा घर-घर पहुँचती हैं।

प्रश्न 16. देश की सीमा पर बैठे फ़ौजी किस तरह की कठिनाइयों से जूझते हैं? उनके प्रति हमारा क्या उत्तरदायित्व होना चाहिए?

उत्तर – देश की सीमा पर बैठे फ़ौजी अनेक तरह की कठिनाइयों से जूझते हैं। वे कड़कड़ाती ठंड में भी पहरा देते हैं, ताकि हम चैन की नींद सो सकें। बर्फ़ीले इलाकों में वैशाख के महीने में पाँच मिनट में लोग कॉपना शुरू कर देते हैं, लेकिन देश की रक्षा के लिए सीमा पर जवान पौष और माघ में भी तैनात रहते हैं। वे अपना वर्तमान देकर हमारा भविष्य सुधारते हैं। हमारे भी इनके प्रति उत्तरदायित्व हैं। हमें उनका उचित सम्मान करना चाहिए। इनके परिवार के सदस्यों की देखभाल तथा बच्चों की शिक्षा की ओर ध्यान देना चाहिए।

Filed Under: Class 10, NCERT Solutions, हिन्दी

About Mrs Shilpi Nagpal

Author of this website, Mrs. Shilpi Nagpal is MSc (Hons, Chemistry) and BSc (Hons, Chemistry) from Delhi University, B.Ed. (I. P. University) and has many years of experience in teaching. She has started this educational website with the mindset of spreading free education to everyone.

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