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NCERT Solutions for Class 10 हिन्दी – क्षितिज – Chapter 16 – नौबतखाने में इबादत

Last Updated on July 22, 2021 By Mrs Shilpi Nagpal Leave a Comment

क्षितिज – गद्य खंड – नौबतखाने में इबादत  – यतींद्र मिश्र

पेज नम्बर : 122

प्रश्न अभ्यास

प्रश्न 1. शहनाई की दुनिया में डुमराँव को क्यों याद किया जाता है?

उत्तर
–
शहनाई की दुनिया में डुमराँव को याद किया जाता है क्योंकि विहार के डुमराँव गाँव के एक संगीत प्रेमी परिवार में बिस्मिल्ला खाँ जी का जन्म हुआ। शहनाई और डुमराँव एक-दूसरे के लिए उपयोगी हैं। शहनाई बजाने के लिए रीड का प्रयोग होता है। यह रीड एक प्रकार की घास से बनाई जाती है। यह घास डुमरॉँव की महत्ता है, जिसके कारण शहनाई जैसा वाद्य बजता है। उस्ताद बिस्मिल्ला खाँ का जन्म भी यहीं हुआ था। इनके परदादा उस्ताद सलार हुसैन खाँ भी डुमराँव निवासी थे।

प्रश्न 2. बिस्मिल्ला खाँ को शहनाई की मंगलध्वनि का नायक क्यों कहा गया है?

उत्तर
– बिस्मिल्ला खाँ को शहनाई की मंगलध्वनि का नायक कहा गया है क्योंकि इनकी शहनाई से सदा मंगलध्वनि ही निकली, कभी भी अमंगल स्वर नहीं निकले। इसके अतिरिक्त परंपरा से ही शहनाई को मांगलिक विधि-विधानों के अवसर पर बजाया जाने वाला यंत्र माना गया है।

प्रश्न 3. सुषिर- वाद्‌यों से क्या अभिप्राय है? शहनाई को “सुषिर-वाद्‌यों में शाह” की उपाधि क्यों दी गई होगी?

उत्तर – “सुषिर- वाद्‌य ” अर्थात्‌ वे वाद्य, जिनमें नाड़ी (नरकट या रीड) होती है और जिन्हें फूँककर बजाया जाता है। शहनाई को “शाहेनय” अर्थात्‌ ‘सुषिर वादयों में शाह” की उपाधि दी गई। मुरली, वंशी, मृदंग, श्रृंगी आदि में यह सबसे अधिक प्रचलित, प्रसिद्ध व मोहक वाद्‌य रहा है। अवधी के पारंपरिक लोकगीतों एवं चैती में शहनाई का उल्लेख बार-बार मिलता है। दक्षिण भारत के मंगल  वाद्‌य नागस्वरम की तरह शहनाई प्रभाती की मंगलध्वनि का संपूरक है।

प्रश्न 4. आशय स्पष्ट कीजिए –

“फटा सुर नबख्शें । लुंगिया का क्या है, आज फटी है, तो कल सी जाएगी।’
“मेरे मालिक सुर बख्श दे। सुर में वह तासीर पैदा कर कि आँखों से सच्चे मोती की तरह अनगढ़ आँसू निकल आएँ

उत्तर – ० कला प्रेमी बिस्मिल्ला खाँ खुदा से प्रार्थना करते हैं कि वह उन्हें धन-समृद्धि चाहे न दे, पर स्वर बेसुरा न करे। लुंगिया फटी होने पर उसे सिलकर पहना जा सकता है, पर स्वर बेताल होने से शहनाई वादन में कमी रह जाएगी, जिसे सुरों के सच्चे साधक बिस्मिल्ला खाँ सह नहीं सकेंगे।

० विस्मिल्ला खाँ पाँचों वक्‍त की नमाज़ अदायगी में खुदा से प्रार्थना करते हैं कि उन्हें ऐसा सच्चा तथा हृदय को छू लेने वाला सुर प्रदान करें, जिसे सुनकर श्रोताओं की आँखों से अश्रु ढुलक पड़ें। उस सुर में मन को करुणापूर्ण कर देने की शक्ति छिपी हो। वह सुनने वाले के हृदयतल की गहराइयों को छूकर उसे भाव-विभोर कर दे।

प्रश्न 5. काशी में हो रहे कौन-से परिवर्तन बिस्मिल्ला खाँ को व्यथित करते थे ?

उत्तर – सन् 2000 में पक्का महाल (काशी विश्वनाथ से लगा हुआ अधिकतम इलाका) से मलाई बरफ़ बेचने वाले जा चुके थे। खाँ साहब को इनकी कमी खलती थी। वे शिद्दत से यह महसूस करते थे कि देशी घी में भी शुद्धता नहीं रही। गायकों के मन में संगतियों के लिए कोई आदर नहीं रहा। कोई भी घंटों अभ्यास नहीं करता। सांप्रदायिक सद्भावना कम होती जा रही है। एक सच्चे सुर साधक और सामाजिक मान्यताओं को मानने वाले खाँ साहब को काशी में हो रहे यही परिवर्तन व्यथित करते थे।

प्रश्न 6.पाठ में आए किन प्रसंगों के आधार पर आप कह सकते हैं कि-

(क) बिस्मिल्ला खाँ मिली-जुली संस्कृति के प्रतीक वे।
(ख) वे वास्तविक अर्थों में एक सच्चे इंसान थे।

उत्तर – (क) खाँ साहब एक शिया मुसलमान के बेटे थे, जो सुबह उठकर विश्वनाथ मंदिर में शहनाई बजाते थे, गंगास्नान करते थे और बालाजी के सामने रियाज़् किया करते थे। ऐसा करके वे हिंदू नहीं हो गए थे, पाँच बार नमाज़ पढ़ने वाले मुसलमान ही थे। उनका मानना था कि बालाजी ने ही उन्हें शहनाई में सिदृधि दी है। खाँ साहब और शहनाई के साथ एक मुस्लिम पर्व मुहर्रम का नाम जुड़ा हुआ है। हनुमान जयंती के अवसर पर पाँच दिनों तक शास्त्रीय एवं उपशास्त्रीय गायन-वादन की उत्कृष्ट सभा होती, इसमें खाँ साहब अवश्य उपस्थित रहते। अपने मज़हब के प्रति पूर्णतः समर्पित उस्ताद खों की काशी विश्वनाथ जी के प्रति भी अपार श्रद्धा थी। जब भी काशी से बाहर रहते, तब विश्वनाथ व बालाजी मंदिर की दिशा की ओर मुँह करके बैठते। काशी में जिस तरह बाबा विश्वनाथ और बिस्मिल्ला खाँ एक-दूसरे के पूरक रहे हैं, उसी तरह मुहर्रम-ताजिया और होली-अबीर-गुलाल की गंगा-जमुनी संस्कृति भी एक-दूसरे की पूरक रहे हैं। खो साहब ने हमेशा दो कौमों को एक होने व आपस में भाईचारे के साथ रहने की प्रेरणा दी। इस प्रकार कह सकते हैं कि बिस्मिल्ला खाँ मिली-जुली संस्कृति के प्रतीक थे।

(ख) बिस्मिल्ला खाँ सच्चे इंसान थे, इतने श्रेष्ठ शहनाई वादक होकर भी उन्हें अहंकार न था। वे सादा जीवन व्यतीत करते थे। सभी धर्मों का आदर-सत्कार करते थे। भारतरत्न से सम्मानित होकर भी उन्हें कभी घमंड न हुआ। मुहर्रम की गर्मी में इमाम हुसैन तथा परिवार जनों की शहादत याद करके उनकी आंखें नम हो उठतीं। काशी की सभी परंपराओं का वे निर्वाह करते। खुदा से सर्च सुर की प्रार्थना करते। उन्होंने खुदा से धन-संपदा नहीं माँगी, केवल सच्चा सुर ही चाहा। उन्होंने हिंदू-मुसलमानों को एक होने तथा आपस में भाईचारे से रहने की प्रेरणा दी।

प्रश्न 7. बिस्मिल्ला खाँ के जीवन से जुड़ी उन घटनाओं और व्यक्तियों का उल्लेख करें, जिन्होंने उनकी संगीत साधना को समृद्ध किया।

उत्तर – विस्मिल्ला खाँ की संगीत-साधना को जिन व्यक्तियों ने समृद्ध किया, वे हैं

(i) बालाजी मंदिर के जाते हुए रास्ते में दो बहनों रसूलन और बतूलनबाई के गायन को सुनकर खाँ साहब की संगीत के प्रति आसक्ति उत्पन्न हुई।

(ii) खाँ साहब के नाना प्रसिद्ध शहनाई वादक थे। वे छिपकर उन्हें सुनते थे और बाद में शहनाइयों के ढेर में से उस शहनाई को ढूँढ़ते, जो नाना के बजाने पर मीठी धुन छेड़ती थी।

(iii) खाँ साहब के मामा अलीबख्श खाँ, जब शहनाई बजाते, तो वे जहाँ पर ‘सम” आता, तब एकदम से एक पत्थर ज़मीन पर मारते थे।

रचना और अभिव्यक्ति

प्रश्न 8. बिस्मिल्ला खाँ के व्यक्तित्व की कौन-कौन सी विशेषताओं ने आपको प्रभावित किया?

उत्तर – बिस्मिल्ला खाँ के व्यक्तित्व में अनेक ऐसी विशेषताएँ हैं, जिन्होंने हमें प्रभावित किया। उनमें से कुछ हैं – संगीत साधना के प्रति पूर्ण निष्ठा, सादा जीवन उच्च विचार, हिंदू-मुस्लिम एकता के समर्थक, भारतीय संस्कृति के प्रति गहरा लगाव, प्रदर्शन की भावना का न होना, शहनाई को उच्च स्थान दिलाना, शहनाई में जादू का-सा असर होना तथा तमाम तारीफ़ के लिए ईश्वर की कृपा मानना।

प्रश्न 9. मुहर्रम से बिस्मिल्ला खाँ के जुड़ाव को अपने शब्दों में लिखिए।

उत्तर – बिस्मिल्ला खाँ और शहनाई के साथ एक मुस्लिम पर्व मोहर्रम का नाम जुड़ा हुआ है। मुहर्रम वह महीना होता है, जिसमें शिया मुसलमान हज़रत इमाम हुसैन एवं उनके कुछ वंशजों के प्रति पूरे 10 दिन शोक मनाते हैं। इन दस दिनों में खा साहब के परिवार का कोई भी सदस्य न तो शहनाई बजाता है और न ही किसी संगीत के कार्यक्रम में हिस्सा लेता है। आठवीं तारीख इनके लिए खास महत्व की थी। इस दिन खाँ साहब खड़े होकर शहनाई बजाते व दालमंडी में तापमान के करीब आठ किलोमीटर की दूरी तक पैदल रोते हुए, नौहा बजाते। इस दिन कोई राग नहीं बजता था।

प्रश्न 10. बिस्मिल्ला खाँ कला के अनन्य उपासक थे, तर्क सहित उत्तर दीजिए।

उत्तर – बिस्मिल्ला खाँ शहनाई बजाने की कला में निपुण थे। वे कला को साधना मानते थे। वे गगा-घाट पर बैठकर घंटों रियाज़ करते रहते थे। वे सदा खुदा से सुर बख्शने की माँग करते रहते थे। उन्होंने अपनी कला को कभी कमाई का साधन नहीं बनाया। सर्वश्रेष्ठ कलाकार होने पर भी उन्होंने स्वयं को अधूरा माना। वे अभिमानी नहीं थे। शहनाई, वादन पर उनकी तारीफ़ की जाती थी, तो वे उसे अलहमदुलिल्लाह कहकर ख़ुदा को समर्पित कर देते थे। बचपन में नाना की मीठी शहनाई की खोज से शुरू हुआ सुरों का सफर आजीवन सच्चा सुर खोजने में ही निकला। इससे सिद्ध होता है कि वे कला के अनन्य उपासक थे।

भाषा-अध्ययन

प्रश्न 11. निम्नलिखित मिश्र वाक्यों के उपवाक्य छाँटकर भेद भी लिखिए

(क) यह जरूर है कि शहनाई और डुमराँव एक-दूसरे के लिए उपयोगी हैं।

(ख) रीड अंदर से पोली होती है जिसके सहारे शहनाई को फूँका जाता है।

(ग) रीड नरकट से बनाई जाती है जो डुमराँव में मुख्यतः सोन नदी के किनारों पर पाई जाती है।

(घ) उनको यकीन है, कभी खुदा यूँ ही उन पर मेहरबान होगा।

(ड़) हिरन अपनी ही महक से परेशान पूरे जंगल में उस वरदान को खोजता है, जिसकी गमक उसी में समाई है।

(च) खौं साहब की सबसे बड़ी देन हमें यही है कि पूरे अस्सी बरस उन्होंने संगीत को संपूर्णता व एकाडि फकार से सीखने की जिजीविषा को अपने भीतर जिंदा रखा।

उत्तर – (क) यह जरूर है प्रधान उपवाक्य

कि शहनाई और  डुमराँव एक-दूसरे के लिए उपयोगी हैं। (संज्ञा आश्रित उपवाक्य)

(ख) रीड अंदर से पोली होती है – प्रधान उपवाक्य

जिसके सहारे शहनाई को फूँका जाता है। (विशेषण आश्रित उपवाक्य)

(ग) रीड नरकट से बनाई जाती है – प्रधान उपवाक्य

जो  डुमराँव में मुख्यतः सोन नदी के किनारों पर पाई जाती है। (विशेषण आश्रित उपवाक्य)

(घ) उनको यकीन है – प्रधान उपवाक्य

कभी खुदा यूँ ही उन पर मेहरबान होगा। (संज्ञा आश्रित उपवाक्य)

(ड़) हिरन अपनी ही महक से परेशान पूरे जंगल में उस वरदान

को खोजता है – प्रधान उपवाक्य

जिसकी गमक उसी में समाई है। (विशेषण आश्रित उपवाक्य)

(च) ख़ाँ साहब की सबसे बड़ी देन हमें यही है – प्रधान उपवाक्य

कि पूरे अस्सी बरस उन्होंने संगीत को संपूर्णता व एकाधिकार से

सीखने की जिजीविषा को अपने भीतर ज़िंदा रखा। (संज्ञा आश्रित उपवाक्य)

प्रश्न 12. निम्नलिखित वाक्यों को मिश्रित वाक्यों में बदलिए

(क) इसी बालसुलभ हँसी में कई यादें बंद हैं।

(ख) काशी में संगीत आयोजन की एक प्राचीन एवं अद्भुत परंपरा है।

(ग)  धत् ! पगली ई भारतरत्न हमको शइनईया पे मिला है, लुंगिया पे नाहीं।

(घ) काशी का नायाब हीरा हमेशा से दो कौ्मों को एक होकर आपस में भाईचारे के साथ रहने की प्रेरणा देता रहा।

उत्तर

(क) यह वही बालसुलभ हँसी है, जिसमें कई यादें बंद हैं।

(ख) काशी में संगीत आयोजन की एक परंपरा है, जो प्राचीन एवं अद्भुत है।

(ग) धत्! पगली जो भारत रत्न हमको मिला है, वह शहनईया पे मिला है, लुंगिया पे नाहीं।

(घ) यह वही काशी का नायाब हीरा है, जो हमेशा से दो कौमों को एक होकर आपस में भाईचारे के साथ रहने की प्रेरणा देता रहा है।

Filed Under: Class 10, NCERT Solutions, हिन्दी

About Mrs Shilpi Nagpal

Author of this website, Mrs Shilpi Nagpal is MSc (Hons, Chemistry) and BSc (Hons, Chemistry) from Delhi University, B.Ed (I. P. University) and has many years of experience in teaching. She has started this educational website with the mindset of spreading Free Education to everyone.

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