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Home » NCERT Solutions » Class 10 » हिन्दी » NCERT Solutions for Class 10 हिन्दी – क्षितिज – Chapter 15 – स्त्री-शिक्षा के विरोधी कुतकों का खंडन

NCERT Solutions for Class 10 हिन्दी – क्षितिज – Chapter 15 – स्त्री-शिक्षा के विरोधी कुतकों का खंडन

Last Updated on July 3, 2023 By Mrs Shilpi Nagpal

क्षितिज – गद्य खंड

स्त्री-शिक्षा के विरोधी कुतकों का खंडन – महावीरप्रसाद द्विवेदी

पेज नम्बर : 109

प्रश्न अभ्यास

प्रश्न 1. कुछ पुरातन पंथी लोग स्त्रियों की शिक्षा के विरोधी थे। द्विवेदी जी ने क्या-क्या तर्क देकर स्त्री-शिक्षा का समर्थन किया?

उत्तर  कुछ पुरातन पंथी लोग स्त्रियों की शिक्षा के विरोधी थे। द्विवेदी जी ने निम्नलिखित तर्क देकर स्त्री-शिक्षा का समर्थन किया –

– शीला और विज्जा आदि स्त्रियाँ बड़े-बड़े पुरुष कवियों से सम्मानित हुई। शारड्गधर-पद्धति में उनकी कविता के नमूने मिलते हैं। बौद्ध-ग्रंथ त्रिपिटक के अंतर्गत थेरीगाथा में अनेक स्त्रियों की पदूय रचनाएँ हैं।

– नाढकों में स्त्रियों का एक प्राचीन भाषा प्राकृत बोलना उनके अनपढ़ होने का सबूत नहीं है। प्राकृत भाषा बोलना और लिखना अनपढ़ या अशिक्षित होने की निशानी नहीं है। गाथा सप्तशती, सेतुबंध महाकाव्य और कुमारपालचरित आदि ग्रंथ प्राकृत में ही रचे हैं।

– प्राचीन समय में भारत की एक भी स्त्री पढ़ी-लिखी न थी। हो सकता है, उस समय स्त्रियों को पढ़ाने की ज़रूरत न समझी गई होगी, पर आज स्त्रियों को पढ़ाने की आवश्यकता है।

– पढ़ने-लिखने में स्वयं कोई ऐसी बात नहीं, जिससे अनर्थ हो सके। अनर्थ दुराचार और पापाचार के कारण भी हो सकते हैं इसलिए स्त्रियों को अवश्य पढ़ाना चाहिए।

– यदि वर्तमान शिक्षा प्रणाली अच्छी नहीं है, तो उसमें संशोधन करना चाहिए।

– स्त्रियों को निरक्षर रखने का उपदेश देना समाज की उन्नति में बाधा डालना है।

प्रश्न 2. “स्त्रियों को पढ़ाने से अनर्थ होते हैं?”कुतर्कवादियों की इस दलील का खंडन द्विवेदी जी ने कैसे किया है, अपने शब्दों में लिखिए।

उत्तर – स्त्रियों का किया हुआ अनर्थ यदि पढ़ाने का ही परिणाम है, तो पुरुषों का किया हुआ अनर्थ भी उनकी विद्या और शिक्षा का ही परिणाम समझना चाहिए। बम के गोले फेंकना, नरहत्या करना, डाके डालना, चोरियों करना, घूस लेना, व्यभिचार करना यह सब यदि पढ़ने-लिखने का ही परिणाम है, तो सारे कॉलेज, स्कूल और पाठशालाएँ बंद हो जानी चाहिए।

 

प्रश्न 3. द्विवेदी जी ने स्त्री-शिक्षा विरोधी कुतकों का खंडन करने के लिए व्यंग्य का सहारा लिया है जैसे’यह सर्व पापी पढ़ने का अपराध है। न वे पढ़ती, म वे पूजनीय पुरुषों का मुकाबला करतीं।” आप ऐसे अन्य अंशों को निबंध में से छाँटकर समझिए और लिखिए।

उत्तर – ऋषियों की वेदांतवादिनी पत्नियाँ कौन-सी भाषा बोलती थीं? उनकी संस्कृत क्या कोई गैंवारी संस्कृत थी?

० पुराणादि में विमानों और जहाज़ों द्वारा की गई यात्राओं के हवाले देकर उनका अस्तित्व तो हम बड़े गर्व से स्वीकार करते हैं, परंतु पुराने ग्रंथों में अनेक प्रगल्भ पंडिताओं के नामोल्लेख देखकर भी कुछ लोग भारत की तत्कालीन स्त्रियों को मूर्ख, अनपढ़ और गँवार बताते हैं। इस तर्कशास्त्रज्ञता और इस न्यायशीलता की बलिहारी!

० एम०ए०, बी०ए०, शास्त्री और आचार्य होकर पुरुष स्त्रियों पर जो हंटर फटकारते हैं और डंडों से उनकी खबर लेते हैं, वह सारा सदाचार पुरुषों की पढ़ाई का सुफल है! स्त्रियों के लिए पढ़ना कालकूट और पुरुषों के लिए पीयूष का घूँट! ऐसी ही दलीलों और दृष्टांतों के आधार पर कुछ लोग स्त्रियों को अपढ़ रखकर भारतवर्ष का गौरव बढ़ाना चाहते हैं।

प्रश्न 4 . पुराने समय में स्त्रियों दवारा प्राकृत भाषा में बोलना क्या उनके अपढ़ होने का सबूत है – पाठ के आधार पर स्पष्ट कीजिए।

उत्तर – पुराने समय में स्त्रियों द्वारा प्राकृत भाषा में बोलना उनके अपढ़ होने का सबूत नहीं है। उस समय प्राकृत भाषा ही प्रयोग होती थी। बौद्धों और जैनों के हज़ारों ग्रंथ प्राकृत में ही लिखे गए। भगवान शाक्य मुनि तथा उनके चेलों ने प्राकृत में ही धर्मोपदेश दिए। त्रिपिटक ग्रंथ की रचना प्राकृत भाषा में की गई। जिस समय आचार्यों ने नाट्यशास्त्र संबंधी नियम बनाए थे, उस समय सर्व-साधारण की भाषा संस्कृत नहीं थी। कुछ चुने हुए लोग ही संस्कृत बोलते थे इसलिए उन्होंने उनकी भाषा संस्कृत और दूसरे लोगों तथा स्त्रियों की भाषा प्राकृत रखने का नियम बना दिया।

 

प्रश्न 5 . परंपरा के उन्हीं पक्षों को स्वीकार किया जाना चाहिए, जो स्त्री-पुरुष समानता को बढ़ाते हों तर्क सहित उत्तर दीजिए।

उत्तर – परंपरा के उन्हीं पक्षों को स्वीकार किया जाना चाहिए जो स्त्री पुरुष समानता को बढ़ाते हों – यह कथन उचित है। प्राचीन काल से यह प्रथा चली आ रही है कि सड़ी-गली मान्यताओं को त्यागकर हम नए आदर्शों को अपनाते जा रहे हैं, जो हमें आगे बढ़ाने में सहायक सिद्ध हो रहे हैं। स्त्री-पुरुष समाज रूपी गाड़ी के दो पहिए हैं। दोनों के सहयोग से ही परिवार, समाज तथा देश तरक्की करता है। पुरुषों को पढ़ाना तथा स्त्रियों को न पढ़ाना दोनों में असमानता उपस्थित करता है। ऐसा होने से समाज का विकास प्रभावित होता है, अतः समाज की भलाई को ध्यान में रखते हुए दोनों को ही शिक्षित करना आवश्यक है ताकि परिवार, समाज और देश स्वस्थ बन सकें।

प्रश्न 6 . तब की शिक्षा प्रणाली और अब की शिक्षा प्रणाली में क्‍या अंतर है? स्पष्ट करें।

उत्तर – तब की शिक्षा प्रणाली और अब की शिक्षा प्रणाली में बहुत अंतर आ गया है। पहले स्त्रियों को शिक्षा प्रदान नहीं की जाती थी। शिक्षा प्राप्त करने के लिए शिष्य गुरुओं के आश्रम में और मंदिरों में जाया करते थे। लड़कियों को नृत्य, गान, श्रृंगार आदि की विद्या दी जाती थी। आज की शिक्षा-प्रणाली में भेदभाव नहीं किया जाता। अधिकतर स्कूलों में सह-शिक्षा दी जाती है। लड़कियों भी वे सब विषय पढ़ती हैं, जो लड़कों को पढ़ाए जाते हैं।

रचना और अभिव्यक्ति

प्रश्न 7. महावीरप्रसाद द्विवेदी का निबंध उनकी दूरगामी और खुली सोच का परिचायक है, कैसे?

उत्तर – महावीरप्रसाद द्विवेदी का निबंध उनकी दूरगामी और खुली सोच का परिचायक है। उन्होंने यह लेख पहली बार सितंबर 1914 की सरस्वती पत्रिका में ‘पढ़े लिखों का पांडित्य’ शीर्षक से प्रकाशित किया था। बाद में द्विवेदी जी ने इसे ‘महिला मोद’ पुस्तक में शामिल करते समय इसका शीर्षक ‘स्त्री शिक्षा के विरोधी कुतकों का खंडन’ रख दिया था। द्विवेदी जी का यह लेख उन सभी पुरातनपंथी विचारों से लोहा लेता है, जो स्त्री शिक्षा को व्यर्थ या समाज के विघटन का कारण मानते थे। इस लेख की विशेषता यह है कि इसमें परंपरा को ज्यों-का-त्यों नहीं स्वीकारा गया है, बल्कि विवेक से फैसला लेकर ग्रहण करने योग्य को लेने की बात की गई है और परंपरा का जो हिस्सा सड़ गल चुका है, उसे रूढ़ि मानकर छोड़ देने की बात कही गई है। यह विवेकपूर्ण दृष्टि संपूर्ण नवजागरण काल की विशेषता है।

 

प्रश्न 8. द्विवेदी जी की भाषा-शैली पर एक अनुच्छेद लिखिए।

उत्तर – महावीरप्रसाद द्विवेदी जी को खड़ी बोली का जनक माना जाता है। उन्होंने गद्य में खड़ी बोली का प्रयोग प्रारंभ किया। धीरे-धीरे खड़ी बोली में काव्य रचा जाने लगा। पहले ब्रजभाषा में साहित्य रचना होती थी। द्विवेदी जी ने भाषा को शुद्ध तथा परिमार्जित किया। भाषा को व्याकरणसम्मत बनाया। व्याकरण और वर्तनी के नियम निर्धारित कर खड़ी बोली को मानकता प्रदान की। उदाहरणों के प्रयोग द्वारा अपने विचारों को प्रकट करना, व्यंग्य शैली द्वारा कथ्य को धाराप्रवाह बनाना, तत्सम तथा तदभव शब्दों तथा सामासिक शब्दों के प्रयोग द्वारा अपने कथ्य को गति देना तथा छोटे छोटे वाक्यों का प्रयोग करके भाषा में सहजता लाना आदि द्विवेदी जी की भाषा शैली की विशेषताएँ हैं।

भाषा-अध्ययन

प्रश्न 9. निम्नलिखित अनेकार्वी शब्दों को ऐसे वाक्यों में प्रयुक्त कीजिए जिनमें उनके एकाधिक अर्थ स्पष्ट हों

चाल, दल, पन्न, हरा, पर, फल, कुल।

उत्तर

1. शकुनि की चाल के आगे पांडव भी हार गए।
2. कवि ने नायिका नागमती की चाल की तुलना गजगामिनी से की।
3. उन्होंने शत्रुओं के दल का सामना वीरता से किया।
4. प्रत्येक दल चुनाव में जीतने के लिए भरपूर प्रयास कर रहा है।
5. पतझड़ ऋतु के आते ही पुराने पत्र झड़ जाते हैं।
6. तुम्हारे पिताजी का पत्र आया है।
7. रानी लक्ष्मीबाई ने अंग्रेजों को संग्राम में हरा दिया।
8. हरा रंग समृद्धि का प्रतीक है।
9. कुर्सी पर पुस्तक पड़ी है।
10. उसने चिड़िया के पर कतर डाले।
11. कर्म करो और फल की इच्छा ईश्वर पर छोड़ दो।
12. फल खाने से शरीर को शक्ति मिलती है।
13. प्रताप अपने कुल का दीपक है।
14. उस विद्यालय में कुल दस हज़ार छात्र पढ़ते हैं।

Filed Under: Class 10, NCERT Solutions, हिन्दी

About Mrs Shilpi Nagpal

Author of this website, Mrs. Shilpi Nagpal is MSc (Hons, Chemistry) and BSc (Hons, Chemistry) from Delhi University, B.Ed. (I. P. University) and has many years of experience in teaching. She has started this educational website with the mindset of spreading free education to everyone.

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