क्षितिज – काव्य खंड – राम लक्ष्मण परशुराम संवाद
पेज नम्बर : 14 प्रश्न अभ्यास
प्रश्न 1. परशुराम के क्रोध करने पर लक्ष्मण ने धनुष के टूट जाने के लिए कौन-कौन से तर्क दिए?
उत्तर – धनुष टूटने पर जब परशुराम ने क्रोध प्रकट किया, तब लक्ष्मण ने निम्नलिखित तर्क दिए
- हम तो इस धनुष को अन्य धनुषों के समान साधारण धनुष समझ रहे थे।
- मेरी समझ के अनुसार तो सभी धनुष एक समान ही होते हैं।
- यह धनुष तो पुराना होने के कारण श्रीराम के छूने मात्र से ही टूट गया। इसमें उनका कोई दोष नहीं।
- हम धनुष को तोड़ने में लाभ-हानि नहीं देखते। इसमें श्री रामचंद्र जी का कोई दोष नहीं है।
- बचपन में हमसे कितने धनुष टूटे, परंतु आपने उन पर कभी क्रोध नहीं किया। इस विशेष धनुष पर आपकी क्या ममता है?
प्रश्न 2. परशुराम के क्रोध करने पर राम और लक्ष्मण की जो प्रतिक्रियाएँ हुईं, उनके आधार पर दोनों के स्वभाव की विशेषताएँ अपने शब्दों में लिखिए।
प्रश्न 3. लक्ष्मण और परशुराम के संवाद का जो अंश आपको सबसे अच्छा लगा उसे अपने शब्दों में संवाद शैली में लिखिए।
उत्तर – मेरे अनुसार लक्ष्मण और परशुराम के संवाद का सबसे अच्छा अंश निम्नलिखित है:
लक्ष्मणः हे मुनि! धनुष तोड़ने में हम किसी लाभ-हानि की चिंता नहीं करते। और यह धनुष तो छूते ही स्वयं टूट गया अतः आपका हम पर क्रोध करना सर्वथा अनुचित है।
परशुराम: हे दुष्ट बालक! तू मुझसे तथा मेरे स्वभाव से परिचित नहीं है। मैं अत्यंत क्रोधी हूँ। मैं अब तक तूझे बालक मानकर ही तेरा वध नहीं कर रहा हूँ। और तू मुझे सिर्फ एक साधारण मुनि समझता है।
प्रश्न 4. परशुराम ने अपने विषय में सभा में क्या-क्या कहा, निम्न पद्यांश के आधार पर लिखिए –
गर्भन्ह के अर्भक दलन परसु मोर अति घोर।।
उत्तर – परशुराम ने अपने विषय में चौपाई में कहा- मैं, बाल ब्रह्मचारी और स्वभाव से प्रचंड क्रोधी हूँ। मैं क्षत्रिय कुल का विश्व प्रसिद्ध घोर शत्रु हूँ। मैंने अपने भुजबल से अनेक बार पृथ्वी को राजाओं से रहित कर दिया है। मैंने अनेक बार पृथ्वी को जीतकर उसे ब्राह्मणों को दान में दे डाला। मेरा फरसा बड़ा भयानक है। अतः हे राजकुमार (लक्ष्मण)! सहस्र भुजाओं को काटने वाले मेरे इस फरसे को देख। मेरा फरसा बहुत ही भयानक है। हे राजकुमार लक्ष्मण! तू मुझसे भिड़कर अपने माता-पिता को चिंता में मत डाल! अर्थात् अपनी मृत्यु को बुलावा मत दे क्योंकि मेरा यह भयंकर फरसा गर्भों में पल रहेशिशुओं तक का नाश कर चुका है।
प्रश्न 5. लक्ष्मण ने वीर योद्धा की क्या-क्या विशेषताएँ बताई?
उत्तर – लक्ष्मण ने किसी भी वीर योद्धा की विशेषताओं के बारे में कहा था कि – वीर योद्धा व्यर्थ ही अपनी वीरता की डींगे नहीं हाँकते बल्कि युद्ध भूमि में युद्ध करते हैं। अपने अस्त्र-शस्त्रों से वीरता के जौहर दिखाते हैं। शत्रु को सामने पाकर जो अपने प्रताप की बातें करते हैं वो तो कायर होते हैं।
उत्तर – साहस और शक्ति मानव मात्र के लिए सद्गुण हैं जो अत्यंत आवश्यक हैं। अगर इनके साथ विनम्रता का मिलन हो जाए तो क्या कहना। अक्सर साहस और शक्ति के प्रदर्शन में विनम्रता छूट जाती है। इसे साहस और शक्ति का विरोधी मान लिया जाता है परंतु वास्तविकता इसके विपरीत है। साहस और शक्ति विनम्रता के साथ ही प्रशंसनीय हैं।
(क) बिहसि लखनु बोले मृदु बानी। अहो मुनीसु महाभट मानी।।
पुनि पुनि मोहि देखाव कुठारु। चहत उड़ावन पूँकि पहारू।।
देखि कुठारू सरासन बाना। मैं कछु कहा सहित अभिमाना।।
अयमय खाँड़ न ऊखमय अजहुँ न बूझ अबूझ।।
उत्तर
(क) लक्ष्मण हँसकर कोमल वाणी में बड़बोले परशुराम से बोले- अहो मुनिवर! आप तो माने हुए महायोद्धा निकले। आप मुझे बार-बार कुल्हाड़ी इस प्रकार दिखा रहे हैं मानो फूंक मारकर पहाड़ उड़ा देंगे। आशय यह है कि परशुराम का गरज-गरजकर अपनी वीरता का गुणगान करना व्यर्थ है। उनकी वीरता खोखली है। उसमें कोई सच्चाई नहीं।
(ख) कवि ने परशुराम के झूठे अभिमान को काव्य रूढ़ि के माध्यम से स्पष्ट किया है। समाज में पुरानी युक्ति है कि कुम्हड़े के छोटे फल की ओर तर्जनी अंगुली से संकेत करने भर से वह मर जाता है। लक्ष्मण कुम्हड़े के कच्चे फल जैसे कमजोर नहीं थे जो परशुराम की धमकी मात्र से भयभीत हो जाते। लक्ष्मण ने यदि उनसे अभिमानपूर्वक कुछ कहा था तो वह उनके अस्त्र-शस्त्र और फरसे को देखकर कहा था।
प्रश्न 8. पाठ के आधार पर तुलसी के भाषा सौंदर्य पर दस पंक्तियाँ लिखिए।
उत्तर – तुलसीदास के पठित पाठ के आधार पर उनकी भाषागत विशेषताओं पर दस पंक्तियाँ निम्नलिखित हैं-
(8) संवादात्मक शैली होने के कारण प्रस्तुत पठित अंश में नाटकीयता का समावेश है।
(10) भाषा विषयानुरूप, अर्थगांभीर्य युक्त एवं प्रभावशाली है।
प्रश्न 2. इस पूरे प्रसंग में व्यंग्य का अनूठा सौंदर्य है। उदाहरण के साथ स्पष्ट कीजिए।
उत्तर– प्रस्तुत पद के अध्ययन से पता चलता है कि लक्ष्मण के कथन में गहरा व्यंग्य छिपा हआ है। लक्ष्मण परशुराम से कहते हैं। कि बचपन में हमने ऐसे कितने ही धनुष तोड़ डाले तब किसी ने कोई क्रोध नहीं किया। श्रीराम ने तो इस धनुष को छुआ ही था कि यह टूट गया। परशुराम की डींगों को सुनकर लक्ष्मण पुनः कहते हैं कि हे मुनि, आप अपने आपको बड़ा भारी योद्धा समझते हैं और फूंक मारकर पहाड़ उड़ाना चाहते हैं। हम भी कोई कुम्हड़बतिया नहीं कि तर्जनी देखकर मुरझा जाएंगे। आप ये धनुष-बाण व्यर्थ ही धारण किए हुए हैं क्योंकि आपका तो एक-एक शब्द करोड़ों वज्रों के समान है। लक्ष्मण जी व्यंग्य करते हुए कहते हैं कि आपके रहते आपके यश का वर्णन भला कौन कर सकता है? शूरवीर तो युद्ध क्षेत्र में ही अपनी शक्ति का प्रदर्शन करते हैं तथा कायर अपनी शक्ति का बखान किया करते हैं। परशुराम के शील पर पुनः व्यंग्य करते हुए लक्ष्मण जी कहते हैं कि आपके शील को तो पूरा संसार जानता है। आप तो केवल अपने घर में ही शूरवीर बने फिरते हैं, आपका किसी योद्धा से पाला नहीं पड़ा।
(क) बालकु बोलि बधौं नहि तोही।
बार बार मोहि लागि वोलावा।
बढ़त देखि जल सम बचन बोले रघुकुलभानु॥
उत्तर – (क) ‘ब’ और ‘ह’ की आवृत्ति के कारण अनुप्रास अलंकार है – (वज्र के समान वचन।)
(ख) उपमा – कोटि कुलिस
(ग) उत्प्रेक्षा – तुम मानो काल को हाँक कर ला रहे हो।
(घ) उपमा – लखन उत्तर आहुति सरिस
जल सम वचन। (वचन जल के समान)
रचना और अभिव्यक्ति
पक्ष– जीवन में अपने अधिकारों की माँग के लिए क्रोध बहुत ज़रूरी है। इससे अन्याय का मुकाबला किया जा सकता है। क्रोध भी एक भाव है जिसका उचित अवसर पर प्रयोग सकारात्मक होता है। किसी के प्रति अन्याय को रोकना या अपने अधिकार के लिए क्रोध करना क्रोध का सकारात्मक रूप है।
प्रश्न 13. अपने किसी परिचित या मित्र के स्वभाव की विशेषताएँ लिखिए।
उत्तर – मेरे एक परिचित बहुत ही सुशील व विनम्र हैं। वे सदा सबकी सहायता करने के लिए तैयार रहते हैं। वे अपने माता-पिता व बड़ों का सम्मान करते हैं, उनके द्वारा दिए गए निर्देशों का पालन करते हैं। अपने साथियों के साथ मिल-जुलकर रहते हैं। गरीबों तथा अनाथों के लिए उनके मन में दयाभाव है। वे हमेशा उनकी मदद करने के लिए तैयार रहते हैं। उनमें स्वाभिमान कूट-कूटकर भरा हुआ है।
उत्तर – एक बच्ची-विल्मा रुडोल्फ़ का जन्म टेनेसस के एक गरीब परिवार में हुआ। 14 साल की उम्र में वह पोलियों का शिकार हो गई। डॉक्टरों ने उसे यहाँ तक कह दिया कि वह जिंदगी भर चल-फिर नहीं सकेगी, किंतु वह कुशल धाविका बनना चाहती थी। डॉक्टरों के मना करने पर भी उसने ब्रेस को उतारकर पहली दौड़ प्रतियोगिता में भाग लिया, किंतु वह सबसे पीछे रही। उसके बाद दूसरी-तीसरी अन्य दौड़ प्रतियोगिताओं में सबसे पीट रही, लेकिन उसने हिम्मत नहीं हारी। वह अपनी त्रुटियों को दूर करती रही और सन् 1960 के ओलंपिक में वह दुनिया की सबसे तेज़ धाविका बनी।
प्रश्न 15. उन घटनाओं को याद करके लिखिए, जब आपने अन्याय का प्रतिकार किया हो।
उत्तर (i) हमारे पड़ोस में एक परिवार रहता है। पिता तो अपने काम में व्यस्त रहते हैं। माँ बच्चों की देखभाल तथा घर का सारा काम करती हैं। दिनभर की थकी माँ जब रात को आराम करने लगतीं, तो पिता किसी-न-किसी बात पर झगड़ा कर देते। बच्चे सहम जाते। एक दिन उनके बेटे ने मुझसे कहा कि वह ढंग से पढ़ नहीं पाता। पिता जी बिना किसी कारण माँ से झगड़ने लगते हैं। मैंने उसे समझाया कि तुम अपने पिता से अकेले में बात करके देखो। बेटे ने पिता से कहा कि वे माँ पर अत्याचार न करें। इसका उसपर बुरा असर पड़ रहा है। यदि पिता नहीं माने, तो वह घर छोड़कर चला जाएगा। यह सुनकर उसके पिता स्तब्ध रह गए। फिर उन्होंने कभी अपनी पत्नी पर अत्याचार नहीं किया।
(ii) मेरे मित्र के घर जो लड़की काम करती है, उसके साथ बुरा व्यवहार किया जाता था। उसे खाने में रूखा-सूखा तथा बचा हुआ खाना दिया जाता था। उसे आदेश दिया गया था कि वह काम समाप्त कर ज़मीन पर बैठेगी, चाहे सर्दी हो या गरमी। उसके खाने के बरतन भी अलग रखे हुए थे। जब भी मैं उसके घर जाता, मुझे बहुत अजीब लगता था।जो सबके लिए खाना बनाती है, घर का सारा काम करती है; उसके प्रति नफ़रत की भावना क्यों? मैंने अपने मित्र से बात की। उसे समझाया कि हमें गरीबों पर अत्याचार नहीं करना चाहिए। धीरे-धीरे उसने अपने घर के बड़ों को समझाया। कभी-कभी उसे विरोध भी करना पड़ा। आज वह लड़की परिवार के एक सदस्य की तरह सुख से रह रही है।
प्रश्न 16. अवधी भाषा आज किन-किन क्षेत्रों में बोली जाती है?
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