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सवैया और कवित्त – पठन सामग्री और भावार्थ Chapter 3 Class 10 Hindi

Last Updated on July 12, 2022 By Mrs Shilpi Nagpal

Contents

  • 1 पाठ की रूपरेखा 
  • 2 कवि-परिचय 
  • 3 सवैया  1
    • 3.1 शब्दार्थ 
    • 3.2 व्याख्या
  • 4 कवित्त 1 
    • 4.1 शब्दार्थ 
    • 4.2 भावार्थ 
  • 5 कवित्त 2  
    • 5.1 शब्दार्थ
    • 5.2 भावार्थ

पाठ की रूपरेखा 

देव द्वारा रचित प्रथम सवैये में श्रीकृष्ण के रूप-सौंदर्य का वर्णन किया गया है, जो सामंती प्रवृत्ति का है तथा ‘कवित्त’ के अंतर्गत प्रथम कवित्त में वसंत ऋतु को बालक के रूप में दर्शाकर प्रकृति के साथ उसका संबंध स्थापित किया गया है। दूसरे कवित्त में शरदकालीन पूर्णिमा की कांति को अनेक उपमानों के माध्यम से वर्णित किया गया है। शब्दों की आवृत्ति के द्वारा नया सौंदर्य पैदा करके उन्होंने सुंदर ध्वनि चित्र प्रस्तुत किए हैं। यहाँ पर कवि ने अलंकारिता एवं श्रृंगारिकता का प्रमुखता से प्रयोग किया है।

☛ NCERT Solutions For Class 10 Chapter 3 सवैया और कवित्त

 

कवि-परिचय 

हिंदी साहित्य के रीतिकाल के कवि देव का जन्म 1673 ई. में उत्तर प्रदेश के इटावा ज़िले में हुआ। उनका पूरा नाम देवदत्त द्विवेदी  था। देव के काव्य ग्रंथों की संख्या कुछ विद्वानों द्वारा 52 मानी गई, कुछ ने 72 तथा कुछ ने 25 स्वीकार की है। इनकी प्रमुख रचनाएँ हैं- भवानीविलास  , रसविलास , काव्यरसायन , भावविलास आदि। देव की काव्य रचनाओं में श्रृंगार रस की प्रमुखता है। उन्होंने संयोग श्रृंगार व वियोग श्रृंगार का वर्णन अपनी रचनाओं में किया है। प्रेम के सहज चित्र उन्होंने राधा-कृष्ण के माध्यम से प्रस्तुत किए हैं। दरबारी संस्कृति, प्रकृति व आश्रयदाताओं का चित्रण भी इन्होंने अपनी रचनाओं में किया है। देव ने छंद योजना, अलंकार , तत्सम शब्दावली आदि का प्रयोग भी अपनी रचनाओं में किया है। कवि देव का निधन 1767 ई. में हुआ।

 

सवैया  1

पाँयनि नूपुर मंजु बजैं , कटि किंकिनि के धुनि की मधुराई।
सावरे अंग लसे पट पीत, हिये हुलसे बनमाल सुहाई।
माथे किरीट बड़े दृग चंचल, मंद हँसी मुखचंद जुहाई।. 
जौ जग-मंदिर-दीपक सुंदर, श्रीबरजदूलह ‘देव’ सहाई।

शब्दार्थ 

पाँयनि -पैर  नुपुर-पुँधरू/पायल  मंजु-सुंदर  कटि-कमर
किंकिनि-करधनी  धुनि-आवाज़ मधुराई-मधुर/ मीठी  सावरे-सौवले
 लसै-सुंदर पट पीत-पीले वस्त्र   हिये-हृदय/गले में दृग-आँखें 
 हुलसै-आनंदित हो रहा है बनमाल-वैजयंती माला किरीट-मुकुट  मुखंद-घंद्रमा के समान मुख
 जुन्हाई-चाँदनी   जग-मंदिर-दीपक-संसार रूपी मंदिर में दीपक के समान श्रीब्रजदूल्हा – ब्रज के दूल्हे/ श्रीकृष्ण  सहाई-सहायता करें

व्याख्या

कवि कहते हैं कि श्रीकृष्ण के पैरों में सुन्दर पायल है जो उनके चलने पर बज रही हैं। कमर में करधनी सुशोभित है जिसकी मधुर ध्वनि मोहित कर रही है। उनके श्यामल तन पर पीले वस्त्र अत्यन्त सुशोभित हो रहे हैं तथा हृदय पर पड़ी हुई जंगली फूलों की माला उनकी शोभा में चार चाँद लगा रही है। उनके मस्तक पर सुन्दर मुकुट विराजमान है। उनके नेत्र बड़े तथा शरारत से भरे हुए हैं। उनका मुख चन्द्रमा के समान कांतिपूर्ण है। उनके मुख पर चाँदनी के समान सुन्दर मंद-मंद मुस्कान फैल रही है। आज ब्रज के दूल्हा कृष्ण विश्व रूपी मन्दिर के प्रज्वलित दीपक के समान सुन्दर एवं आभायुक्त लग रहे हैं। कवि कहते हैं कि ऐसे शोभायुक्त भगवान श्रीकृष्ण की जय हो। उनका यह रूप अमर रहे तथा वे सभी भक्तों की सहायता करें। 


कवित्त
1 

डार द्रुम पलना बिछौना नव पल्लव के,
सुमन झिंगूला सोहै तन छबि भारी दे।
पवन झूलावै, केकी-कीर बतरावें देव’,
कोकिल हलावै-हुलसावे कर तारी दै।।
पूरित पराग सों उतारों करै राई नोन,
कंजकली नायिका लतान सिर सारी दै।
मदन महीप जू को बालक बसंत ताहि,
प्रातहि जगावत गुलाब चटकारी दै।। 

शब्दार्थ 

द्रुम-पेड़ बिछौना-बिस्तर सुमन झिंगूला-फूलों का झबला/ढीला-ढाला वस्त्र सोहै-अच्छा
छबि-सुंदर  पवन-हवा केकी-मोर कीर-तोता
बतरावैं-बात कर रहे हैं
 हलावै-हुलसाबै-मन बहलाते कर तारी दै-ताली बजा-बजाकर पूरित-भरा हुआ
नोन-नमक  पराग-फूलों के कण  कंजकली-कमल की कली  मदन-प्रेम और सौंदर्य का देवता कामदेव
पल्‍लव-पत्ते ताहि-उसे महीप-राजा  प्रातहि-सुबह
 जगावत-जगा रहा है  चटकारी-चुटकी    

भावार्थ 

कवि देव वसंत ऋतु की कल्पना कामदेव के शिशु के रूप में करते हुए कहते हैं कि पेड़ की डाली उस बालक का पालना है तथा उस पर नए-नए पत्तों का बिस्तर बिछा हुआ है। बालक ने सुंदर फूलों का झबला पहना हुआ है, जो उसके शरीर की शोभा को और भी अधिक बढ़ा रहा है। हवा उसे झूला झुला रही है। मोर और तोता मीठे स्वर में बातें करके उसका मन बहला रहे हैं। कोयल आकर उसे हिलाती है तथा ताली बजा-बजाकर उसे प्रसन्‍न कर रही है अर्थात्‌ उसका मन बहला रहे हैं। कमल की कली रूपी नायिका अपने सिर पर लताओं की साड़ी का पल्‍ला डालकर पराग रूपी राई और नमक से उसकी नज़र उतारने की रस्म पूरी कर रही है ताकि बसंत रूपी शिशु को किसी की नज़र न लगे। राजा कामदेव के वसंत रूपी शिशु को प्रातःकाल गुलाब चुटकी बजा-बजाकर जगा रहा है। भाव यह है कि यहाँ वसंत को बालक रूप में दिखाकर प्रकृति के साथ प्रेम भरा संबंध स्थापित किया गया है। भाव यह है कि चारों ओर वसंत ऋतु का सौंदर्य छाया हुआ है, जिसके कारण पृथ्वी अत्यंत सुंदर लग रही है। 


कवित्त
2  

फटिक सिलानि सौं सुधारयौ सुधा मंदिर, 
उदधि दधि को सो अधिकाइ उमगे अमंद। 
बाहर ते भीतर लौं भीति न दिखैए देव , 
दूध को सो फेन फैल्यो ऑंगन फरसबंद। 
तारा सी तरुनि तामें ठाढ़ी झिलमिली होति, 
मोतिन की जोति मिलयो मल्लिका को मकरंद। 
आरसी से अंबर में आभा सी उजारी लगै, 
प्यारी राधिका को प्रतिबिंब सो लगत चंद।। 

शब्दार्थ

फटिक सिलानि- स्फटिक नामक चमकदार पत्थर सुधा मंदिर-अमृत रूपी आकाश मंदिर को मोतिन की जोति-मोतियों का प्रकाश  फरसबंद-फर्श रूप में बना ऊँचा स्थान
सुधारयौ-सँवारा हुआ उदघि-समुद्र दधि-दही उमगे-उमड़े
अधिकाइ -बहुत अधिक अमंद-कम न होना  तरुनि-युवती  मल्लिका-सफ़ेद रंग का एक फूल
मकरंद-पराग आरसी-आइना/शीशा आभा-ज्योति उजारी-उजाला
 प्रतिबिंब-परछाई /छाया      

भावार्थ

इसमें कवि ने शरदकालीन पूर्णिमा की रात में चाँद-तारों से भरे आकाश की शोभा का वर्णन किया है। पूर्णिमा की रात में आकाश संगमरमर के पत्थर से बने हुए मंदिर के समान लग रहा है। उसकी सुंदरता श्वेत दही के समुद्र के समान उमड़ रही है, वह कम नहीं हो रही है। वह सुंदरता दूध में से निकले झाग के समान आकाश रूपी मंदिर के अंदर और बाहर फैल रही है, जिसके कारण उसका ओर-छोर दिखाई नहीं दे रहा है। मंदिर के आँगन में दूध के झाग के समान चाँदनी आभा का फर्श बना हुआ है। आकाश रूपी मंदिर में तारें युवतियों के समान खड़े झिलमिलाते से प्रतीत हो रहे हैं और उनकी चमक ऐसी लग रही है जैसे मोतियों की चमक मल्लिका के फूलों के रस के साथ मिलकर प्रदीप्त हो उठी है। आकाश रूपी मंदिर का सौंदर्य शीशे के समान पारदर्शी लग रहा है और उसमें अपनी चाँदनी बिखेरता चाँद, प्यारी राधा के प्रतिबिंब के समान प्यारा लग रहा है। भाव यह है कि शरदकालीन पूर्णिमा की रात में चाँद-तारों से भरा आकाश अपनी सुंदरता एवं कांति से सभी को मंत्र-मुग्ध कर रहा है। 

Filed Under: Kshitij, Class 10, Hindi

About Mrs Shilpi Nagpal

Mrs. Shilpi Nagpal is an experienced tutor who has been teaching students since 2007. She specializes in tutoring Science (Chemistry) for students in Class 6-12. Mrs. Nagpal has a proven track record of success, and her students have consistently achieved better grades and improved test scores. She is articulate, knowledgeable, and her passion for teaching shines through in her work with students.

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