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पाठ की रूपरेखा
देव द्वारा रचित प्रथम सवैये में श्रीकृष्ण के रूप-सौंदर्य का वर्णन किया गया है, जो सामंती प्रवृत्ति का है तथा ‘कवित्त’ के अंतर्गत प्रथम कवित्त में वसंत ऋतु को बालक के रूप में दर्शाकर प्रकृति के साथ उसका संबंध स्थापित किया गया है। दूसरे कवित्त में शरदकालीन पूर्णिमा की कांति को अनेक उपमानों के माध्यम से वर्णित किया गया है। शब्दों की आवृत्ति के द्वारा नया सौंदर्य पैदा करके उन्होंने सुंदर ध्वनि चित्र प्रस्तुत किए हैं। यहाँ पर कवि ने अलंकारिता एवं श्रृंगारिकता का प्रमुखता से प्रयोग किया है।
कवि-परिचय
हिंदी साहित्य के रीतिकाल के कवि देव का जन्म 1673 ई. में उत्तर प्रदेश के इटावा ज़िले में हुआ। उनका पूरा नाम देवदत्त द्विवेदी था। देव के काव्य ग्रंथों की संख्या कुछ विद्वानों द्वारा 52 मानी गई, कुछ ने 72 तथा कुछ ने 25 स्वीकार की है। इनकी प्रमुख रचनाएँ हैं- भवानीविलास , रसविलास, काव्यरसायन, भावविलास आदि। देव की काव्य रचनाओं में श्रृंगार रस की प्रमुखता है। उन्होंने संयोग श्रृंगार व वियोग श्रृंगार का वर्णन अपनी रचनाओं में किया है। प्रेम के सहज चित्र उन्होंने राधा-कृष्ण के माध्यम से प्रस्तुत किए हैं। दरबारी संस्कृति, प्रकृति व आश्रयदाताओं का चित्रण भी इन्होंने अपनी रचनाओं में किया है। देव ने छंद योजना, अलंकार, तत्सम शब्दावली आदि का प्रयोग भी अपनी रचनाओं में किया है। कवि देव का निधन 1767 ई. में हुआ।
सवैया 1
शब्दार्थ
पाँयनि -पैर | नुपुर-पुँधरू/पायल | मंजु-सुंदर | कटि-कमर |
किंकिनि-करधनी | धुनि-आवाज़ | मधुराई-मधुर/ मीठी | सावरे-सौवले |
लसै-सुंदर | पट पीत-पीले वस्त्र | हिये-हृदय/गले में | दृग-आँखें |
हुलसै-आनंदित हो रहा है | बनमाल-वैजयंती माला | किरीट-मुकुट | मुखंद-घंद्रमा के समान मुख |
जुन्हाई-चाँदनी | जग-मंदिर-दीपक-संसार रूपी मंदिर में दीपक के समान | श्रीब्रजदूल्हा – ब्रज के दूल्हे/ श्रीकृष्ण | सहाई-सहायता करें |
व्याख्या
कवित्त 1
शब्दार्थ
द्रुम-पेड़ | बिछौना-बिस्तर | सुमन झिंगूला-फूलों का झबला/ढीला-ढाला वस्त्र | सोहै-अच्छा |
छबि-सुंदर | पवन-हवा | केकी-मोर | कीर-तोता |
बतरावैं-बात कर रहे हैं
|
हलावै-हुलसाबै-मन बहलाते | कर तारी दै-ताली बजा-बजाकर | पूरित-भरा हुआ |
नोन-नमक | पराग-फूलों के कण | कंजकली-कमल की कली | मदन-प्रेम और सौंदर्य का देवता कामदेव |
पल्लव-पत्ते | ताहि-उसे | महीप-राजा | प्रातहि-सुबह |
जगावत-जगा रहा है | चटकारी-चुटकी |
भावार्थ
कवित्त 2
शब्दार्थ
फटिक सिलानि- स्फटिक नामक चमकदार पत्थर | सुधा मंदिर-अमृत रूपी आकाश मंदिर को | मोतिन की जोति-मोतियों का प्रकाश | फरसबंद-फर्श रूप में बना ऊँचा स्थान |
सुधारयौ-सँवारा हुआ | उदघि-समुद्र | दधि-दही | उमगे-उमड़े |
अधिकाइ -बहुत अधिक | अमंद-कम न होना | तरुनि-युवती | मल्लिका-सफ़ेद रंग का एक फूल |
मकरंद-पराग | आरसी-आइना/शीशा | आभा-ज्योति | उजारी-उजाला |
प्रतिबिंब-परछाई /छाया |
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