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पाठ की रूपरेखा
प्रस्तुत कविता अतीत की स्मृतियाँ को भूलकर वर्तमान का सामना कर भविष्य का वरण करने का संदेश देती है। हमारे जीवन में सुख और दु:ख दोनों की उपस्थिति रहती है। अतीत की दुःखद स्मृतियों में ही खोए रहना ही जीवन जीने का कोई उचित विकल्प नहीं है। वर्तमान को अपने अनुकूल बनाने की चेष्टा करना ही मनुष्य का परम कर्त्तव्य है। मनुष्य जितना यश, ऐश्वर्य, धन, सम्मान आदि को पाने के विषय में सोचता है, वह उतना ही भ्रमित होता है। अत: जीवन को सुखी बनाने के लिए, यथार्थ को अपने अनुकूल बनाने के लिए मनुष्य को संघर्ष (कर्म) करते रहना चाहिए, नहीं तो वह अतीत की स्मृतियों में ही तैरता रहेगा।
कवि परिचय
काव्यांशों का भावार्थ
काव्यांश 1
शब्दार्थ
छाया-परछाई/अतीत की स्मृतियाँ | दूना-दुगुना | सुरंग-रंग-बिरंगी | सुधियाँ-यादें |
छवियों की चित्र-गंध-चित्र की स्मृति के साथ उसके आस-पास की गंध का अनुभव | तन-शरीर | मनभावनी–मन को अच्छी लगने वाली | यामिनी-तारों भरी चाँदनी रात |
कुंतल-लंबे बाल | जीवित क्षण–जीता-जागता अनुभव | छुअन-छूना/स्पर्श |
भावार्थ
काव्यांश 2
शब्दार्थ
यश-ख्याति | वैभव-ऐश्वर्य | सरमाया-पूँजी/धन दौलत | मृगतृष्णा-भ्रम की स्थिति |
भरमाया- भटका प्रभातु का शरण-बिंब-बड़प्पन का अहसास | चंद्रिका-चाँदनी | कृष्णा-काली | यथार्थ-सत्य |
भावार्थ
काव्यांश 3
शब्दार्थ
दुविधा हत साहस–साहस होते हुए भी दुविधाग्रस्त रहना | पंथ-रास्ता | देह-शरीर | वरण-अपना लेना |
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