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Home » Class 10 » Hindi » Kshitij » छाया मत छूना – पठन सामग्री और भावार्थ Chapter 7 Class 10 Hindi

छाया मत छूना – पठन सामग्री और भावार्थ Chapter 7 Class 10 Hindi

Last Updated on July 3, 2023 By Mrs Shilpi Nagpal

Contents

  • 1 पाठ की रूपरेखा 
  • 2 कवि परिचय 
  • 3 काव्यांशों का भावार्थ 
    • 3.1 काव्यांश 1 
      • 3.1.1 शब्दार्थ 
      • 3.1.2 भावार्थ 
    • 3.2 काव्यांश 2
      • 3.2.1 शब्दार्थ 
      • 3.2.2 भावार्थ 
      • 3.2.3 शब्दार्थ
      • 3.2.4 भावार्थ

पाठ की रूपरेखा 

प्रस्तुत कविता अतीत की स्मृतियाँ को भूलकर वर्तमान का सामना कर भविष्य का वरण करने का संदेश देती है। हमारे जीवन में सुख और दु:ख दोनों की उपस्थिति रहती है। अतीत की दुःखद स्मृतियों में ही खोए रहना ही जीवन जीने का कोई उचित विकल्प नहीं है। वर्तमान  को अपने अनुकूल बनाने की चेष्टा करना ही मनुष्य का परम कर्त्तव्य है। मनुष्य जितना यश, ऐश्वर्य, धन, सम्मान आदि को पाने के विषय में सोचता है, वह उतना ही भ्रमित होता है। अत: जीवन को सुखी बनाने के लिए, यथार्थ को अपने अनुकूल बनाने के लिए मनुष्य को संघर्ष (कर्म) करते रहना चाहिए, नहीं तो वह अतीत की स्मृतियों में ही तैरता रहेगा।

 

☛ NCERT Solutions For Class 10 Chapter 7 छाया मत छूना


कवि परिचय 

नई कविता के प्रसिद्ध कवि गिरिजाकुमार माथुर का जन्म 22 अगस्त, 1918 को मध्य प्रदेश के गुना नगर में हुआ था। झाँसी, उत्तर प्रदेश से प्रारंभिक शिक्षा ग्रहण कर इन्होंने लखनऊ से अंग्रेज़ी में एम.ए. और वकालत की परीक्षा पास की। झाँसी में वकालत करने के पश्चात्‌ ये आकाशवाणी सेवा से जुड़ गए, फिर दूरदर्शन में डिप्टी डायरेक्टर के पद से सेवानिवृत हुए। इनके प्रसिद्ध काव्य संग्रह हैं-नाश और निर्माण, धूप के धान, शिलापंख चमकीले, भीतरी नई की यात्रा। जन्म कैद इनका प्रसिद्ध नाटक और नयी कविता: सीमाएँ और संभावना इनकी आलोचनात्मक कृति है। वर्ष 1994 में इनका देहात हो गया ।

 


काव्यांशों का भावार्थ 

काव्यांश 1 

छाया मत छूना
मन, होगा दुःख दूना। 
जीवन में हैं सुरंग सुधियाँ सुहावनी 
छवियों की चित्र-गंध फैली मनभावनी;
तन-सुगंध शेष रही, बीत गई यामिनी,
कुंतल के फूलों की याद बनी चाँदनी।
भूली-सी एक छुअन बनता हर जीवित क्षण
छाया मत छूना मन, होगा दुःख दूना। 

शब्दार्थ 

छाया-परछाई/अतीत की स्मृतियाँ  दूना-दुगुना सुरंग-रंग-बिरंगी सुधियाँ-यादें
 छवियों की चित्र-गंध-चित्र की स्मृति के साथ उसके आस-पास की गंध का अनुभव तन-शरीर मनभावनी–मन को अच्छी लगने वाली यामिनी-तारों भरी चाँदनी रात
कुंतल-लंबे बाल जीवित क्षण–जीता-जागता अनुभव छुअन-छूना/स्पर्श

भावार्थ 

कवि आशावादिता का संदेश देते हुए कहता है कि जीवन में कभी सुख आते हैं तो कभी दुःख।  जो समय बीत गया उसके सुखों को याद कर वर्तमान के दुखों को और बढ़ाने से कोई लाभ नहीं है, क्योंकि इससे हमारी समस्याएँ काम होने के स्थान पर और अधिक बढ़ती हैं। माना कि जीवन में रंग बिरंगी सुहावनी यादें हैं, बीते दिनों के सुख भरे चित्रों की स्मृति के साथ-साथ उसके आस-पास की सुहावनी गंध चारों और फैली हुई है  लेकिन अब वो तारों भरी सुंदर रात बीत गई है उसकी केवल छवि शेष रह गई है। ठीक इसी प्रकार प्रिया के बालों में लगे हुए फूलों की खुशबू की भी यादें ही शेष रह गई हैं। आज दु:ख के इन क्षणों में वे भूली हुई सुख भरी यादें एक जीवित क्षण बनकर मन को छू जाती हैं, लेकिन तू केवल उन्हीं में मत डूबा रह, जो कुछ वर्तमान में तेरे पास है, उसी से अपने भविष्य का निर्माण कर। इन छायाओं में जीकर मन को दोगुना दुःख मिलता है।अत: इनसे बच।


काव्यांश
2

यश है या न वैभव है, मान है न सरमाया;
जितना ही दौड़ा तू उतना ही भरमाया।
प्प्रभुता का शरण-बिंब केवल मृगतृष्णा है,
हर चंद्रिका में छिपी एक रात कृष्णा है।
जो है यथार्थ कठिन उसका तू कर पूजन
छाया मत छूना मन, होगा दुःख दूना।

शब्दार्थ 

यश-ख्याति वैभव-ऐश्वर्य सरमाया-पूँजी/धन दौलत मृगतृष्णा-भ्रम की स्थिति
 भरमाया- भटका प्रभातु  का शरण-बिंब-बड़प्पन का अहसास चंद्रिका-चाँदनी कृष्णा-काली यथार्थ-सत्य

भावार्थ 

जीवन में आशावादी दृष्टिकोण अपनाने की सीख देता हुआ कवि कहता है कि माना आज जीवन में न यश है और न वैभव, न मान-सम्मान है और न धन-दौलत, किंतु मनुष्य इन चीज़ों को पाने के लिए जितना दौड़ता है, उतना ही भटकता है। बड़प्पन का अहसास भ्रम के समान झूठा है और इसे पाने के लिए मनुष्य रेगिस्तान में भटके हिरन की भाँति इधर-उधर भटकता रहता है। हर सुख भरी चांदनी रात के पीछे दुःख भरी काली रात भी छिपी रहती है। इसलिए तू केवल अपने सुख भरे दिनों को याद करके दुःख में मत डूब। तेरे सामने आज जो दुःख भरी कठिन परिस्थितियाँ आ रही हैं, तू उनका सामना कर, उसी स्थिति में जीने की कोशिश कर। सच्चाई से अपना मुख मत मोड़, क्योंकि केवल अतीत के सुखों को याद करने से दुःख और अधिक बढ़ेगा।

काव्यांश 3

दुविधा हत साहस है, दिखता है पंथ नहीं
देह सुखी हो पर मन के दुःख का अंत नहीं।
दुःख है न चाँद खिला शरद-रात आने पर
क्या हुआ जो खिला फूल रस-बसंत जाने पर?
जो न मिला भूल उसे कर तू भविष्य वरण, –
छाया मत छना
मन, होगा दुःख दूना।

शब्दार्थ

दुविधा हत साहस–साहस होते हुए भी दुविधाग्रस्त रहना पंथ-रास्ता देह-शरीर वरण-अपना लेना

भावार्थ

हमें आशावाद के सहारे जीने का संदेश देते हुए कवि कहता है कि हे मनुष्य! साहस होते हुए भी तेरा मन दुविधाग्रस्त है, तुझे सफलता का रास्ता कहीं दिखाई नहीं दे रहा है, तेरा शरीर पूर्ण रूप से स्वस्थ है, किंतु मन के दु:खों का कोई अंत नहीं दिखाई दे रहा है।माना जीवन में दुःख-ही-दुःख हैं। शरदकालीन सुहावनी रात के आने पर भी सुख रूपी चाँद उदित नहीं हुआ है और वसंत ऋतु के चले जाने पर फूल खिला है, तो भी दुःखी मत हो। जो सुख तुझे जीवन में नहीं मिला, उसे भूल जा। जो कुछ तुझे प्राप्त हो रहा है, उसे खुशी से स्वीकार कर और वर्तमान का सामना करके अपने भविष्य का नवनिर्माण कर।

Filed Under: Class 10, Hindi, Kshitij

About Mrs Shilpi Nagpal

Author of this website, Mrs. Shilpi Nagpal is MSc (Hons, Chemistry) and BSc (Hons, Chemistry) from Delhi University, B.Ed. (I. P. University) and has many years of experience in teaching. She has started this educational website with the mindset of spreading free education to everyone.

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Comments

  1. Aarju says

    October 22, 2022 at 5:48 pm

    This this very helpful

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