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पाठ की रूपरेखा
मुंशी प्रेमचंद के संपादन में निकलने वाली तत्कालीन पत्रिका हंस के आत्मकथा विशेषांक हेतु सुप्रसिद्ध छायावादी कवि जयशंकर प्रसाद से भी आत्मकथा लिखने के लिए कहा गया। लोगों के कहने पर भी वे आत्मकथा लिखना नहीं चाहते थे, क्योंकि उन्हें अपने जीवन में ऐसा कुछ विशेष नज़र नहीं आता था, जिसे वे दूसरों के सामने रख सकें। इसी असहमति के तर्क (विचार) से पैदा हुई कविता है ‘आत्मकथ्य’। यह कविता पहली बार वर्ष 1932 में ‘हंस’ के आत्मकथा विशेषांक में प्रकाशित हुई थी। कवि ने इस कविता को छायावादी शैली में लिखा है। कवि ने अपने मनोभावों को व्यक्त करने के लिए खड़ी बोली तथा ललित, सुंदर एवं नवीन शब्दों का प्रयोग किया है। कवि ने इसमें स्वयं को एक साधारण व्यक्ति माना है, जिसमें ऐसा कुछ भी महान् एवं रोचक नहीं है, जिससे लोग प्रेरित हों और सुख प्राप्त कर सकें । यह दृष्टिकोण महान् कवि की विनम्रता को प्रदर्शित करता है।
कवि-परिचय
हिंदी साहित्य के छायावाद के आधार स्तंभ कवि जयशंकर प्रसाद का जन्म 1889 ई. में वाराणसी में हुआ। इनकी शिक्षा आठवीं कक्षा से आगे नहीं हो पाई थी, जिसके कारण इन्होंने घर पर ही संस्कृत, हिंदी, फ़ारसी आदि भाषाओं का अध्ययन किया। आठ वर्ष की आयु में उनकी आँखों के समक्ष उनके माता-पिता व बड़े भाई का निधन हो गया। इन सभी कष्टों को झेलते हुए वे काव्य-रचना करने लगे।
जयशंकर प्रसाद की प्रमुख रचनाएं हैं :-
चित्राधार, कानन-कुसुम, झरना, आँसू, लहर, कामायनी (काव्य); चंद्रग॒प्त, स्कंदगुप्त, अजातशत्रु, ध्रुवस्वामिनी, राज्यश्री (नाटक); कंकाल, तितली, इरावती (उपन्यास) ; छाया, प्रतिध्वनि, आकाशदीप, आँधी, इंद्रजाल (कहानी-संग्रह)। छायावादी कवि जयशंकर प्रसाद ने हिंदी को एक नई दिशा प्रदान की। उनकी भाषा सरल, सहज है, जो छोटे-छोटे वाक्यों में गंभीर भाव प्रकट करती है। उनकी भाषा-शैली ओज ब माधुर्य गुण से ओत-प्रोत है। प्रकृति-प्रेम, देश-प्रेम उनके काव्य की विशेषता है। उनका निधन वर्ष 1937 में हुआ।
काव्यांश 1
शब्दार्थ
मधुप- भौंरा | घनी-अधिक | अनंत-नीलिमा-विशाल नीला आकाश, | जीवन-इतिहास-जीवन की कहानी |
व्यंग्य-मलिन-गंदा | उपहास- मज़ाक | दुर्बलता-कमज़ोरी | गागर रीती-खाली घड़ा (ऐसा मन जिसमें भाव नही है) |
भावार्थ
काव्यांश 2
शब्दार्थ
विडंबना-दुर्भाग्य | सरलते-सरल मन वाले | प्रवंचना-धोखा | उज्ज्वल गाथा- सुखभरी कहानी |
आलिंगन-बाँहों में भरना | मुसक्या- मुसकुराकर |
भावार्थ
काव्यांश 3
शब्दार्थ
अरुण-कपोलों-लाल गाल | मतवाली-मस्त कर देने वाली, अनुरागिनी | उषा-प्रेमभरी सुबह | मधुमाया-प्रेम से भरी हुई |
पाथेय-सहारा | पथिक-यात्री | पंथा -रास्ता | सीवन-सिलाई |
कंथा-गुदड़ी/अंतर्मन (जीवन की कहानी या मन के भाव) | मौन-चुप | व्यथा-दुःख |
Vansh says
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