पाठ की रूपरेखा
‘एही ठैयाँ झुलनी हेरानी हो रामा|’ नामक कहानी में बनारस मैं गानेवालियों की परंपरा (गौनहारिन परंपरा) का वर्णन किया गया है। दुलारी नामक एक गौनहारिन का परिचय 15 वर्षीय युवक टुन्नू से एक संगीत कार्यक्रम में होता है, जो संगीत में उसका प्रतिद्वंद्वी था। टुन्नू उससे प्रेम करने लगता है और इसी बीच टुन्नू का यह व्यक्तिगत प्रेम देशप्रेम में परिवर्तित हो जाता है तथा एक आंदोलन में भाग लेने के कारण सरकार द्वारा उसकी हत्या कर दी जाती है। इस घटना को एक संवाददाता अपने संपादक से समाचार-पत्र में छापने की अनुमति माँगता है, किंतु संपादक मना कर देता है। इस प्रकार समाज का सच सामने लाने वाले तथाकथित संपादक का दोहरा चरित्र सामने लाने में यह कहानी मदद करती है। साथ ही इस बात पर भी प्रकाश डालती है कि समाज के हर वर्ग ने अपने सामर्थ्य के अनुसार देश की आज़ादी में अपना योगदान दिया था।
लेखक-परिचय
शिवप्रसाद मिश्र ‘रुद्र’ का जन्म वर्ष 1911 में काशी में हुआ। यहीं के हरिश्चंद्र कॉलेज, क्वींस कॉलेज तथा काशी हिंदू विश्वविद्यालय से शिक्षा ग्रहण करने के पश्चात् ये स्कूल-कॉलेजों में शिक्षण कार्य से जुड़ गए। साथ ही कई पत्रिकाओं का संपादन भी किया। ये कई भाषाओं के जानकार थे, इन्होंने उपन्यास, नाटक, गीत, पत्रकारिता जैसी साहित्य की कई विधाओं में लेखन कार्य किया। बहती गंगा, सुचिताय इनके प्रमुख उपन्यास्र हैं तथा ताल तलैया, गजलिका, परीक्षा पचीसी इनके गीत संग्रह हैं। काशी नागरी प्रचारिणी सभा द्वारा इनकी अनेक रचनाएँ प्रकाशित की गईं। 1970 में इनका देहावसान हो गया।
पाठ का सार
दुलारी बनारस की एक विख्यात कजली गायिका थी। पूरे क्षेत्र में उसका मुकाबला करने वाला कोई नहीं था। उसके स्वर और रूप के सभी दीवाने थे। टुन्नू एक ब्राह्मण का पुत्र था, जिसके पिता घाट पर बैठकर और कच्चे महाल के दस-पाँच घरों की सत्यनारायण की कथा से लेकर श्राद्ध और विवाह तक कराकर कठिनाई से गृहस्थी को चला रहे थे। टुन्नू को आवारों की संगति में शायरी का चस्का लग गया और उसने भैरोहेला को अपना गुरु बनाकर सुंदर कजली की रचना शुरू कर दी।
दुलारी ने महाराष्ट्रीय महिलाओं की तरह धोती लपेटकर, कच्छ बाँधकर दंड लगाए और अपने स्वस्थ शरीर को आइने के सामने देखा। उसके बाद प्याज के टुकड़े और हरी मिर्च के साथ कटोरी में भिगोए हुए चने चबाने आरंभ कर दिए। इसी बीच किसी ने बाहर से कुंडी खटखटाई। दुलारी ने दरवाज़ा खोलकर देखा तो बाहर टुन्नू गाँधी आश्रम की बनी एक धोती लेकर खड़ा था। वह इस धोती को दुलारी को होली के अवसर पर देना चाहता था। दुलारी ने झिड़ककर यह कहते हुए धोती फेंक दी कि अभी उसके दूध के दाँत तो टूटे नहीं हैं और वह उससे प्रेम करने चला है। वह तो आयु में उसकी माँ से भी बड़ी है।
टुन्नू यह कहकर चला जाता है कि मन पर किसी का बस नहीं, वह रूप या उम्र का कायल नहीं होता। उस समय टुन्नू की आँखों से गिरे आँसुओं के धब्बे उस धोती पर एक जगह लग गए थे। दुलारी को आज टुन्नू की वेशभूषा में परिवर्तन दिखाई दिया। उसने आबरवाँ की जगह खद्दर का कुर्ता और लखनवी दोपलिया की जगह गांधी टोपी पहनी हुई थी।
छह महीने पहले भादों में तीज के अवसर पर दुलारी का टुन्नू से प्रथम परिचय खोजवाँ बाज़ार में आयोजित एक प्रतियोगिता में हुआ था। इस बार खोजवाँ वालों ने दुलारी को अपनी ओर करके अपनी विजय सुनिश्चित कर ली थी, किंतु उसका सामना सोलह-सत्रह साल के एक युवक से हुआ, जो अपनी मधुर आवाज़ में उससे प्रतियोगिता करना चाहता था। दोनों में बहुत देर तक प्रतियोगिता चलती रही, जिसमें टुन्नू दुलारी को कड़ी टक्कर देता है। वहाँ पर झगड़ा होने की आशंका उत्पन्न होने के कारण दुलारी और टुन्नू गाना गाने से मना कर देते हैं और प्रतियोगिता बिना परिणाम के ही समाप्त हो जाती है।
टुन्नू के चले जाने के बाद दुलारी उसकी लाई हुई धोती को उठाकर उस पर लगे आँसुओं के उन धब्बों को चूमने लगती है और उसे सँभालते हुए अपने संदूक में सभी कपड़ों के नीचे दबाकर रख देती है। वह अनुभव करती है कि टुन्नू उसके शरीर से नहीं उसकी आत्मा से प्रेम करता है। उसे यह भी लगा कि आज तक उसने जितनी बार भी टुन्नू के प्रति उपेक्षा दिखाई है, वह सब दिखावटी थी। अंदर से वह भी उसे चाहने लगी थी, बाहर से वह इस सत्य को स्वीकार नहीं करना चाहती थी।
फेंकू सरदार दुलारी के रूप पर मोहित था और वह समय-समय पर उसे उपहारस्वरूप धोतियाँ भेंट किया करता था। इस बार भी वह धोतियों का एक बंडल लेकर आता है और दुलारी से उसे स्वीकारने का आग्रह करता है। दुलारी उसे याद दिलाती है कि उसने तो इस बार धोती की जगह साड़ी देने का वायदा किया था। फेंकू सरदार उसे आश्वासन देता है कि तीज के अवसर पर वह अपना वायदा अवश्य ही पूरा करेगा। इन दिनों उसे अपने कारोबार को ठीक से चलाने के लिए पुलिस को अधिक पैसा देना पड़ रहा है। इसी बीच “भारत जननि तेरी जय हो’ की आवाज़ के साथ विदेशी वस्त्रों को एकत्र करता हुआ देश के दीवानों का एक जुलूस उधर से गुजरता है। जुलूस के आगे एक बड़ी-सी चादर फैलाकर चार व्यक्तियों ने उसके चारों कोनों को मजबूती से पकड़ रखा था। उस चादर पर लोग विदेशी कपड़े-धोती, साड़ी, कमीज़, कुर्ता, टोपी आदि की वर्षा कर रहे थे।
इसी बीच दुलारी अपनी खिड़की से फेंकू सरदार की लाई हुई मैंचेस्टर तथा लंकाशायर के मिलों की बनी बारीक सूत की मखमली किनारे वाली नई कोरी धोतियों का बंडल नीचे फैली चादर पर फेंक देती है। वस्त्रों का संग्रह करने वाले यह देखकर दंग रह जाते हैं, क्योंकि अब तक जितने भी वस्त्रों का संग्रह हुआ था, वे सब पुराने थे, जबकि पुलारी ने जितने भी वस्त्र फेंके थे, वे सभी बिल्कुल नए थे। वस्त्र संग्रह करने वालों ने बंडल फेंकने वाले को देखना चाहा, किंतु तब तक ‘ खिड़की बंद हो चुकी थी। इस जुलूस में सबसे पीछे खुफ़िया पुलिस का रिपोर्टर अली सगीर चल रहा था। उसने यह दृश्य देखकर मकान का नंबर नोट कर लिया। उसने यह भी देख लिया था कि खुलने वाली खिड़की में दुलारी के साथ दूसरा व्यक्ति फेंकू था।
जब फेंकू सरदार ने उस पर यह आरोप लगाया कि वह टुन्नू को अपने घर क्यों बुलाती है, तो वह उसका नाम लिए जाने पर भड़क उठती है और झाड़ू से पीटकर फेंकू सरदार को घर से बाहर निकाल देती है। फेंक सरदार को घर से बाहर निकालने पर भी जब उसका क्रोध शांत नहीं होता, तो वह घर में जाकर बटलोही में बन रही दाल को पैर की ठोकर से नीचे गिरा देती है, जिससे चूल्हे की आग बुझ जाती है।
दुलारी को दुःखी देखकर उसकी पड़ोसिनें उसे सांत्वना देने के लिए उसके घर पहुँचती हैं। अभी दुलारी अपने साथ की स्त्रियों से टुन्नू और फेंकू सरदार के विषय में बातें कर ही रही थी तभी नौ वर्षीय बालक झींगुर आकर समाचार देता है कि टुन्नू महाराज को गोरे सिपाहियों ने मार डाला और लाश भी उठाकर ले गए। यह समाचार सुनते ही दुलारी की आँखों से आँसू बहने लगते हैं। अचानक ही वह टुन्नू द्वारा दी गई खद्दर की धोती को निकालकर पहन लेती है। वह झींगुर से पूछती है कि टुन्नू को कहाँ मारा गया? झींगुर ने उत्तर दिया-‘टाउन हॉल!” जैसे ही वह टाउन हॉल जाने के लिए निकलती है, उसी समय थाने के मुंशी के साथ फेंकू सरदार आकर उसे थाने जाकर अमन सभा द्वारा आयोजित समारोह में गाना गाने के लिए चलने को कहते हैं।
समाचार-पत्र के एक कार्यालय का प्रधान संवाददाता अपने सहकर्मी को डाँटते हुए कहता है कि शर्मा जी, संवाद-संग्रह तो आपके बूते की बात नहीं है। संपादक के पूछने पर पता चलता है कि शर्मा जी ने जो समाचार-संग्रह किया था, वह गोरे सैनिकों के द्वारा टुन्नू को मारने से संबंधित था। समाचार के अनुसार छह अप्रैल को नेताओं की अपील पर नगर में पूर्ण हड़ताल रही। सवेरे से ही जुलूसों का निकलना शुरू हो गया था, जिसके माध्यम से जलाने के लिए विदेशी वस्त्रों का संग्रह किया जा रहा था। प्रसिद्ध कजली गायक टुन्नू भी इस जुलूस में था। टाउन हॉल में यह जुलूस विघटित हो गया और पुलिस के जमादार अली सगीर ने टुन्नू को जा पकड़ा और उसे गालियाँ दीं। विरोध करने पर जमादार ने उसे बूट की ठोकर मारी। चोट पसली में लगी और टुन्नू के मुँह से एक चुल्लू खून निकल पड़ा। पास ही खड़ी गोरे सैनिकों की गाड़ी में यह कहकर टुननू को लाद दिया गया कि उसे अस्पताल ले जा रहे हैं, किंतु टुन्नू मर गया था। रात आठ बजे टुन्नू का शव वरुणा में प्रवाहित कर दिया गया। टुननू का दुलारी से आत्मीय संबंध था। शाम में अमन सभा द्वारा टाउन हॉल में एक समारोह में दुलारी को नचाया-गवाया गया।
दुलारी को टुन्नू की मृत्यु का समाचार मिल चुका था, इसीलिए वह उदास थी और खद्दर की एक साधारण धोती पहनकर उसने गाया-“’एही ठैयाँ झुलनी हेरानी हो रामा, कासों मैं पूछँँ?” यह समाचार सुनकर संपादक ने कहा-सत्य है, परंतु छप नहीं सकता।
शब्दार्थ
दनादन-तेज़ी से/ लगातार | पुतला-मूर्ति | बदन-तन | अँगोछा-गमछा |
भुजदंड- लंबी बाँह | बाकायदा-नियमानुसार | झेंप-संकोच/ लज्जा | विलोल- चंचल/ अस्थिर। |
खद॒दर-खादी | शीर्ण वदन-उदास मुख | खैरियत-कुशलक्षेम | आर्द्र-नम |
दंड लगाना-हाथों व पैरों के पंजों के बल की जाने वाली एक कसरत | चारखाना- चार खानों वाला कपड़ा | आदमकद- मनुष्य की ऊँचाई के बराबर | कज्जल-मलिन-काजल लगी उदास |
हाड़- हड्ड़ी | पाषाण प्रतिमा -पत्थर की मूर्ति | उमर-उम्र/आयु | कायल-वश |
वक्र-तिरछी | कौतुक-कौतूहल/उत्सुकता | तीज-विवाहिता स्त्रियों का एक पर्व | दुक्कड़-तबले की तरह का एक बाजा जो प्रायः शहनाई के साथ बजाया जाता है |
महती-अत्यधिक | कजली-एक लोकगीत | कोर दबना-लिहाज करना | गौनहार-गाने का पेशा करने वाला |
आविर्भाव – प्रकट होना | चस्का-लत/आदत | मद विहल – नशे में डूबा हुआ |
उलझन-कठिनाई
|
यजमानी-ब्राह्मणों से धार्मिक कृत्य कराने वाला कार्य | कलई खुलना-सच्चाई सामने आना | कृशकाय-पतले- दुबले शरीर वाला | प्रतिनिधि-किसी के स्थान पर कार्य करने वाला व्यक्ति |
हरा होना- प्रसन्न होना | बदमजा- बेमजा/खराब | मजलिस-जलसा | प्रकृतिस्थ-क्षोभ , विकार रहित |
आबरवाँ- बहुत बारीक मलमल | चित्त-मन | दुर्बलता-कमज़ोरी | कामना-चाह/इच्छा |
यौवन-जवानी | अस्ताचल-उतार , ढलान | उन्माद -पागलपन | आसक्त-मोहित |
कच्ची उमर-छोटी आयु | कृत्रिम-बनावटी | निभृत – छिपा हुआ | सँकरी-पतली |
उभय पार्श्व-दोनों ओर पीछे | इमारत-भवन | बारीक-महीन | रिपोर्टर-संवाददाता |
जुलूस-एक विशेष उद्देश्य से तैयार किया गया व्यक्तियों का समूह/प्रदर्शनकारियों की जमात | खुफ़िया पुलिस-छिप कर या गुप्त रूप से जाँच करने वाली पुलिस | दुअन्नी-दो आने यानी साढ़े बारह पैसे के मूल्य का सिक्का | कौड़ी – घोंघे के समान एक कीड़ा जिसके कवच से पहले खेला भी जाता था |
सजल-नम/भीगा हुआ | मुखबिर-जासूस | रोबीला-रोबदार | पुष्ट-बलशाली |
शपाशप – तेजी से | देहरी-द्वार | डाँकना-लाँघना | उत्कट-तीव्र |
अधर-होंठ | ज्वाला-आग | बटलोही-एक देगची | भट्टी-चूल्हा |
प्रतिवाद-विरोध | स्तब्ध-निश्चेष्ट/सुन्न | कातर-भयभीत/व्याकुल | सदैव-सदा |
मेघमाला-आँसुओं की लड़ी | कर्कशा-झगड़ालू स्त्री | वनिता-स्त्री | दिल्लगी -हँसी |
डंके की चोट पर-खुलेआम | सहकर्मी-साथ काम करने वाला | बूते-वश | खीझना-गुस्साना |
वार्ता-बातचीत | सजग-सावधान | झखना- तुच्छ काम करना | विघटित-विभक्त |
तिलमिलाना-बेचैन होना | चुल्लू-अंजलि | प्रवाहित-बहाया हुआ | सिलसिला-श्रृंखला/क्रम |
विवश-लाचार | कुख्यात-बदनाम | फरमाइश-विशेष आग्रह | आमोदित-प्रसन्न |
सन्नाटा- चुप्पी | उद्भ्रांत-हैरान | स्मित-धीमी हँसी |
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