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Home » Class 10 » Hindi » Kritika » जॉर्ज पंचम की नाक – पठन सामग्री और भावार्थ Chapter 2 Class 10 Hindi

जॉर्ज पंचम की नाक – पठन सामग्री और भावार्थ Chapter 2 Class 10 Hindi

Last Updated on February 16, 2023 By Mrs Shilpi Nagpal

पाठ की रूपरेखा

नाक जो कि इज़्ज़त का प्रतीक मानी जाती है। इस संदर्भ के माध्यम से लेखक ने व्यंग्य कते हुए सत्ता एवं सत्ता से जुड़े सभी लोगों की मानसिकता को प्रदर्शित किया है, जो अंग्रेज़ी हुकूमत को कायम रखने के लिए भारतीय नेताओं की मार्क काटने को तैयार हो जाते हैं। लेखक ने इस रचना के माध्यम से बताया है कि रानी का भारत आगमन महत्त्वपूर्ण विषय है जिसके लिए जॉर्ज पंचम की नाक मूर्ति पर  होना अनिवार्य है, क्योंकि वह रानी के आत्मसम्मान के लिए अनिवार्य है। इसके साथ यह रचना पत्रकारिता जगत के लोगों पर भी व्यंजन  करती है एवं सफल पत्रकार की सार्थकता को भी उजागर करती है। इसमें सरकारी तंत्र का लोगों द्वारा रानी के सम्मान में की गई तैयारियों का वर्णन किया गया है।

लेखक-परिचय

कमलेश्वर नई कहानी के प्रमुख रचनाकार हैं। उनका जन्म 1932 ई. में उत्तर प्रदेश के मैनपुरी में हुआ था। इलाहाबाद विश्वविद्यालय से ‘ एम .ए. करने के पश्चात्‌ तथा पत्रकारिता से अत्यधिक लगाव होने के कारण इन्होंने सारिका, दैनिक जागरण तथा दैनिक भास्कर जैसी पत्रिकाओं का संपादन कार्य किया।

कमलेश्वर की प्रमुख रचनाएँ हैं – मांस का दरिया, कस्बे का आदमी, तलाश, ज़िंदा मुर्दे (कहानी संग्रह); वही बात, एक सड़क सत्तावन गलियाँ, कितने पाकिस्तान (उपन्यास); अधूरी आवाज़, चारुलता (नाटक)। कमलेश्बर ने अपनी कहानियों में सामान्य ज़न के जीवन की पीड़ाऔ, समस्याओं का चित्रण किया है। इनकी रचनाओं में उर्दू, अंग्रेज़ी तथा आंचलिक शब्दों का प्रयोग मिलता है। कमलेश्वर को साहित्य अकादमी पुरस्कार व भारत सरकार के पद्म भूषण से सम्मानित किया गया। उनका निधन 27 जनवरी, 2007 को दिल का दौरा पड़ने से हुआ।

पाठ का सार

इंग्लैंड की रानी एलिज़ाबेथ द्वितीय अपने पति के साथ हिंदुस्तान आने वाली थीं, जिसकी चर्चा अख़बारों में हो रही थी। उनका सेक्रेटरी और जासूस उनसे पहले इस महाद्वीप का तूफानी दौरा करने वाले थे। इंग्लैंड के अख़बारों की कतरनें हिंदुस्तानी अख़बारों में हर दूसरे दिन चिपकी नज़र आती थीं, जिनमें रानी एलिज़ाबेथ एवं उनसे जुड़े लोगों के समाचार छपते। इस प्रकार की खबरों से भारत की राजधानी में तहलका मचा हुआ था। जिसके बावरची पहले महायुद्ध में जान हथेली पर लेकर लड़ चुके हैं, उसकी शान-शौकत के क्या कहने और वही रानी दिल्‍ली आ रही है। उसका स्वागत भी ज़ोरदार होना चाहिए।

नई दिल्ली में एक बड़ी मुश्किल जो सामने आ रही थी, वह थी जॉर्ज पंचम की नाक। किसी समय इस नाक के लिए बड़े तहलके मचे थे। अख़बारों के पन्ने रंग गए थे। राजनीतिक पार्टियाँ इस बात पर बहस कर रही थीं कि जॉर्ज पंचम की नाक रहने दी जाए या हटा दी जाए। कुछ पक्ष में थे, तो कुछ विरोध कर रहे थे। आंदोलन चल रहा था। जॉर्ज पंचम की नाक के लिए हथियारबंद पहरेदार तैनात कर दिए गए थे, किंतु एक दिन इंडिया गेट के सामने वाली जॉर्ज पंचम की लाट (मूर्ति) की नाक एकाएक गायब हो गई। बावजूद इसके कि हथियारबंद पहरेदार अपनी जगह तैनात थे और गश्त लगती रही फिर भी लाट की नाक चली गई।

रानी के आने की बात सुनकर नाक की समस्या बढ़ गई। देश के शुभचिंतकों की एक बैठक हुई, जिसमें हर व्यक्ति इस बात पर सहमत था कि अगर यह नाक नहीं रही, तो हमारी भी नाक नहीं रह जाएगी। इसलिए एक मूर्तिकार को फौरन दिल्‍ली बुलाकर मूर्ति की नाक लगाने का आदेश दिया गया। मूर्तिकार ने जवाब दिया कि नाक तो लग जाएगी, किंतु मुझे इस लाट के निर्माण का समय और जिस स्थान से यह पत्थर लाया गया, उसका पता चलना चाहिए। एक क्लर्क को इसकी पूरी छानबीन करने का काम सौंपा गया। क्लर्क ने बताया कि फाइलों में कुछ भी नहीं है। नाक लगाने के लिए एक कमेटी बनाई गई और उसे काम सौंपा गया कि किसी भी कीमत पर नाक लगनी चाहिए। मूर्तिकार को फिर बुलाया गया। उसने कहा कि पत्थर की किस्म का पता नहीं चला, तो कोई बात नहीं। में हिंदुस्तान के हर पहाड़ पर जाकर ऐसा ही पत्थर खोजकर लाऊँंगा।

मूर्तिकार ने हिंदुस्तान के पहाड़ी प्रदेशों और पत्थरों की खानों के दौरे किए, किंतु असफल रहा। उसने बताया कि इस किस्म का पत्थर कहीं नहीं मिला। यह पत्थर विदेशी है। सभापति ने कहा कि विदेशों की सारी चीज़ें हम अपना चुके हैं–दिल-दिमाग, तौर-तरीके और रहन-सहन। जब हिंदुस्तान में “बाल डांस” तक मिल जाता है, तो पत्थर क्‍यों नहीं मिल सकता? मूर्तिकार ने इसका हल निकालते हुए कहा कि यदि यह बात अख़बार वालों तक न पहुँचे तो मैं बताना चाहूँगा कि हमारे देश में अपने नेताओं की मूर्तियाँ भी हैं। यदि आप लोग ठीक समझें तो जिस मूर्ति की नाक इस लाट पर ठीक बैठे, उसे लगा दिया जाए। सभी को लगा कि समस्या का असली हल मिल गया।

मूर्तिकार फिर देश-दौरे पर निकल पड़ा। उसने पूरे भारत का भ्रमण करके दादाभाई नौरोजी, गोखले, तिलक, शिवाजी, गांधीजी, सरदार पटेल, गुरुदेव रवींद्रनाथ, सुभाषचंद्र बोस, राजा राममोहन राय, चंद्रशेखर आज़ाद, मोतीलाल नेहरू, मदनमोहन मालवीय, लाला लाजपतराय, भगत सिंह आदि की लाटों को देखा, किंतु वे सब उससे बड़ी थीं। मूर्तिकार ने बिहार सेक्रेटरिएट के सामने सन्‌ बयालीस में शहीद होने वाले बच्चों की मूर्तियों की नाक भी देखी, किंतु वे भी उससे बड़ी थीं।

राजधानी में रानी के लिए सब तैयारियाँ पूरी हो गई थीं। जॉर्ज पंचम की लाट को मल-मलकर नहलाया गया था। रोगन लगाया गया था, किंतु नाक नहीं थी। अचानक मूर्तिकार ने एक हैरतअंगेज (आश्चर्यचकित करने वाला) विचार व्यक्त किया कि चालीस करोड़ लोगों में से कोई एक ज़िंदा नाक काटकर लगा दी जाए। कमेटी ने इसकी ज़िम्मेदारी मूर्तिकार को सौंप दी। अख़बारों में सिर्फ़ इतना छपा कि नाक का मसला हल हो गया है। इंडिया गेट के पास वाली जॉर्ज पंचम की लाट को नाक लग रही है। नाक लगने से पहले फिर हथियारबंद पहरेदारों की तैनाती हुई। मूर्ति के आस-पास का तालाब सुखाकर साफ़ किया गया और ताज़ा पानी डाला गया ताकि मूर्ति को लगने वाली ज़िंदा नाक सूखने न पाए| इस बात की ख़बर जनता को नहीं थी। यह सब तैयारियाँ भीतर-भीतर चल रही थीं। रानी के आने का दिन नज़दीक आता जा रहा था। आखिर एक दिन जॉर्ज पंचम की नाक लग गई।

अगले दिन अख़बारों में ख़बरें छापी गईं कि जॉर्ज पंचम की लाट को जो नाक लगाई गई है, वह बिलकुल असली जैसी लगती है। उस दिन के अख़बारों में एक बात और गौर करने की थी–उस दिन देश में कहीं भी किसी उद्घाटन की ख़बर नहीं थी। किसी ने कोई फीता नहीं काटा था। कोई सार्वजनिक सभा नहीं हुई थी। किसी का अभिनंदन नहीं हुआ था, कोई मानपत्र भेंट नहीं किया गया था। किसी हवाई अड्डे या स्टेशन पर स्वागत-समारोह नहीं हुआ था। किसी का चित्र भी नहीं छपा था।

शब्दार्थ

मय-के साथ पधारना-आना सेक्रेटरी- सचिव दास्तान-कहानी
फ़ौज- फाटे- सेना तथा अन्य शाही कर्मचारी कतरनें-अख़बार में से काठ गया अंश  कायापलट होना-बदलाव हो जाना अजायबघर-पुरानी चीज़ों के संग्रह का स्थान
रहमत-कृपा  बेसाख्ता- स्वाभाविक रूप से तहलका मचना-खलबली मचना नाज़नीनों- कोमल स्त्री
लाट-मूर्ति  तैनात- नियुक्त  खैरख्वाहों- भलाई चाहने वाले मशवरा-सलाह
हुक्म-आदेश बदहवास-घबराए हुए हुक्काम- शासक ताका-देखा
बयान-वचन दारोमदार-कार्यभार  हताश-उदास  तैश-जोश
चप्पा-चप्पा खोजना-हर जगह ढूँढना अचकचाया-चौंक उठना हिदायत-निर्देश कतई- ज़रा भी
 ढाढस बॉधना- तसल्ली देना  खलबली मचना-हलचल मचाना कौंधा-अचानक आया सन्‍नाटा-खामोशी
अभिनंदन-स्वागत बुत-मूर्ति
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Filed Under: Class 10, Hindi, Kritika

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