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Home » Class 10 » Hindi » Kshitij » आत्मकथ्य – पठन सामग्री और भावार्थ Chapter 4 Class 10 Hindi

आत्मकथ्य – पठन सामग्री और भावार्थ Chapter 4 Class 10 Hindi

Last Updated on November 25, 2023 By Mrs Shilpi Nagpal

Contents

  • 1 पाठ की रूपरेखा 
  • 2 कवि-परिचय
  • 3 काव्यांश 1 
    • 3.1 शब्दार्थ 
    • 3.2 भावार्थ
  • 4 काव्यांश 2 
    • 4.1 शब्दार्थ 
    • 4.2 भावार्थ
  • 5 काव्यांश 3 
    • 5.1 शब्दार्थ
    • 5.2 भावार्थ

पाठ की रूपरेखा 

मुंशी प्रेमचंद के संपादन में निकलने वाली तत्कालीन पत्रिका हंस के आत्मकथा विशेषांक हेतु सुप्रसिद्ध छायावादी कवि जयशंकर प्रसाद से भी आत्मकथा लिखने के लिए कहा गया। लोगों के कहने पर भी वे आत्मकथा लिखना नहीं चाहते थे, क्योंकि उन्हें अपने जीवन में ऐसा कुछ विशेष नज़र नहीं आता था, जिसे वे दूसरों के सामने रख सकें। इसी असहमति के तर्क (विचार) से पैदा हुई कविता है ‘आत्मकथ्य’। यह कविता पहली बार वर्ष 1932 में ‘हंस’ के आत्मकथा विशेषांक में प्रकाशित हुई थी। कवि ने इस कविता को छायावादी शैली में लिखा है। कवि ने अपने मनोभावों को व्यक्त करने के लिए खड़ी बोली तथा ललित, सुंदर एवं नवीन शब्दों का प्रयोग किया है। कवि ने इसमें स्वयं को एक साधारण व्यक्ति माना है, जिसमें ऐसा कुछ भी महान्‌ एवं रोचक नहीं है, जिससे लोग प्रेरित हों और सुख प्राप्त कर सकें । यह दृष्टिकोण महान्‌ कवि की विनम्रता को प्रदर्शित करता है।

☛ NCERT Solutions For Class 10 Chapter 4 आत्मकथ्य

कवि-परिचय

हिंदी साहित्य के छायावाद के आधार स्तंभ कवि जयशंकर प्रसाद का जन्म 1889 ई. में वाराणसी में हुआ। इनकी शिक्षा आठवीं कक्षा से आगे नहीं हो पाई थी, जिसके कारण इन्होंने घर पर ही संस्कृत, हिंदी, फ़ारसी आदि भाषाओं का अध्ययन किया। आठ वर्ष की आयु में उनकी आँखों के समक्ष उनके माता-पिता व बड़े भाई का निधन हो गया। इन सभी कष्टों को झेलते हुए वे काव्य-रचना करने लगे।

जयशंकर प्रसाद की प्रमुख रचनाएं हैं :-

चित्राधार, कानन-कुसुम, झरना, आँसू, लहर, कामायनी (काव्य); चंद्रग॒प्त, स्कंदगुप्त, अजातशत्रु, ध्रुवस्वामिनी, राज्यश्री (नाटक); कंकाल, तितली, इरावती (उपन्यास) ; छाया, प्रतिध्वनि, आकाशदीप, आँधी, इंद्रजाल (कहानी-संग्रह)। छायावादी कवि जयशंकर प्रसाद ने हिंदी को एक नई दिशा प्रदान की। उनकी भाषा सरल, सहज है, जो छोटे-छोटे वाक्यों में गंभीर भाव प्रकट करती है। उनकी भाषा-शैली ओज ब माधुर्य गुण से ओत-प्रोत है। प्रकृति-प्रेम, देश-प्रेम उनके काव्य की विशेषता है। उनका निधन वर्ष 1937 में हुआ।

काव्यांश 1 

मधुप गुन-गुनाकर कह जाता कौन कहानी यह अपनी,
मुरझाकर गिर रहीं पत्तियाँ देखो कितनी आज घनी।
इस गंभीर अनंत-नीलिमा में असंख्य जीवन-इतिहास
यह लो, करते ही रहते हैं अपना व्यंग्य-मलिन उपहास
तब भी कहते हो-कह डालूँ दुर्बलता अपनी बीती।
तुम सुनकर सुख पाओगे, देखोगे-यह गागर रीती।
किंतु कहीं ऐसा न हो कि तुम ही खाली करने वाले-
अपने को समझो, मेरा रस ले अपनी भरने वाले।

शब्दार्थ 

मधुप- भौंरा घनी-अधिक अनंत-नीलिमा-विशाल नीला आकाश, जीवन-इतिहास-जीवन की कहानी
 व्यंग्य-मलिन-गंदा  उपहास- मज़ाक दुर्बलता-कमज़ोरी गागर रीती-खाली घड़ा (ऐसा मन जिसमें भाव नही है)

भावार्थ

कवि जयशंकर प्रसाद भौंरे के माध्यम से अपनी कथा का उल्लेख करते कहते हैं कि हे मन रूपी भौंरे गुन-गुनाकर अपनी कौन-सी कहानी कह रहा है? कवि के जीवन की इच्छाएँ उचित वातावरण न पाकर मुरझाकर गिर रही हैं अथांत्‌ उसके जीवन को सुख पहुँचाने वाली खुशियाँ एक-एक करके उसका साथ छोड़कर चली गई हैं।इस विशाल विस्तार वाले आकाश में न जाने कितने महान्‌ पुरुषों ने अपने जीन की कथाएँ लिखी हैं। उन्हें पढ़कर ऐसा प्रतीत होता है कि वह स्वयं अपना उपहास कराते हैं। मेरा यह जीवन अनंत अभावों और बुराइयों से भरा हुआ है। फिर भी मित्रों तुम मुझसे यह कहते हो कि मेरे जीवन में जो कमियाँ हैं, जो मेरे साथ घटित हुआ है उसे मैं सबके सामने कह डालूँ|क्या तुम मेरी कहानी को सुनकर सुख प्राप्त कर सकोगे? मेरा मन तो खाली गागर के समान है, जिसमें कोई भाव नहीं है। कहीं तुम्हारा मन भी तो मेरी तरह भावों से खाली नहीं है और तुम मेरे भावों द्वारा अपने मन के खालीपन को भरना चाहते हो अर्थात्‌ ऐसा तो नहीं है कि मेरे खाली जीवन को देखकर तुम्हें सुख प्राप्त होगा।

काव्यांश 2 

यहं विडंबना! अरी सरलते तेरी हँसी उड़ाऊं मैं।
भूलें अपनी या प्रवंचना औरों की दिखलाऊँ मैं ।
उज्वल गाथा कैसे गाऊँ, मधुर चाँदनी रातों की।
अरे खिल-खिला कर हँसते होने वाली उन बातों की।
मिता कहाँ वह सुख जिसका मैं स्वप्न देखकर जाग गया।
आलिंगन में आते-आते मुसक्या कर जो भाग गया। 

शब्दार्थ 

विडंबना-दुर्भाग्य सरलते-सरल मन वाले प्रवंचना-धोखा उज्ज्वल गाथा- सुखभरी  कहानी
 आलिंगन-बाँहों में भरना मुसक्या- मुसकुराकर

भावार्थ

कवि कहता है कि यह तो दुर्भाग्य की बात होगी कि सरल मन वाले की मैं हँसी उड़ाऊँ। मैं तो अभी तक स्वयं दूसरों के स्वभाव को समझ  नहीं पाया हूँ। मैं तुम्हारे सामने अपनी कमियाँ प्रकट करूँ या लोगों के छलकपटपूर्ण व्यवहार को एवं दुनिया से मुझे जो धोखे मिलें है उन्हें तुम्हें बताऊँ। मैं उन मधुर चाँदनी रातों की उज्ज्वल गाथा को कैसे गाऊँ , जिसमें हँसते -खिलखिलाते हुए प्रिया के साथ बातें होती थीं। उन निजी क्षणों का वर्णन मैं कैसे कर सकता हूँ? उन क्षणों को लोगों को बताने की कोई आवश्यकता नहीं है। कवि अपनी आत्मकथा बताते हुए कहता है कि मुझे जीवन में वह सुख कहाँ मिला, जिसका स्वपन देखकर मैं जाग गया। सुख तो मेरी बाँहों में आने से पहले ही मुसकुराकर भाग गया अर्थात्‌ मेरी अभिलाषाएँ कभी सफल नहीं हुईं, मुझे कभी सुख की प्राप्ति नहीं हुई। 

काव्यांश 3 

जिसके अरुण-कपोलों की मतवाली सुंदर छाया में।
अनुरागिनी उषा लेती थी निज सुहाग मधुमाया में।
उसकी स्मृति पाथेय बनी है थके पथिक की पंथा की।
सीवन को उधेड़ कर देखोगे क्‍यों मेरी कंथा की?
छोटे से जीवन की कैसे बड़ी कथाएँ आज कहूँ?
क्या यह अच्छा नहीं कि औरों की सुनता मैं मौन रहूँ?
सुनकर क्या तुम भला करोगे मेरी भोली आत्म-कथा?
अभी समय भी नहीं, थकी सोई है मेरी मौन व्यथा।’

शब्दार्थ

अरुण-कपोलों-लाल गाल मतवाली-मस्त कर देने वाली, अनुरागिनी उषा-प्रेमभरी सुबह  मधुमाया-प्रेम से भरी हुई
 पाथेय-सहारा पथिक-यात्री पंथा -रास्ता  सीवन-सिलाई
कंथा-गुदड़ी/अंतर्मन (जीवन की कहानी या मन के भाव) मौन-चुप व्यथा-दुःख  

भावार्थ

कवि अपनी प्रिया के सौंदर्य का वर्णन करते हुए कहता है कि उसके लालिमायुक्त गालों को देखकर ऐसा लगता था जैसे प्रेम बिखेरती उषा उदित हो रही हो अर्थात्‌ ऐसा लगता था जैसे उषा भी अपनी लालिमा उसी से लिया करती थी। आज मैं उसकी ही यादों का सहारा लेकर अपने जीवन के रास्ते की थकान दूर करता हूँ अर्थात्‌ उसी की यादें मेरे थके हुए जीवन का सहारा बनीं।मेरे जीवन में सुख के ऐसे पल कभी नहीं आए, जिनसे तुम प्रेरित है सको। इसलिए क्‍यों तुम मेरे जीवन की कहानी को खोलकर, उधेड़कर देखना चाहते हो। मेरे इस छोटे-से जीवन में अभावों से भरी बड़ी-बड़ी कथाएँ हैं। मैं अपने जीवन की उन सामान्य गाथाओं को कैसे कहूँ? मेरे लिए यही अच्छा रहेगा कि मैं दूसरे महान्‌ लोगों की कथाओं को सुनता रहूँ और अपने बारे में चुप रहूँ। भला तुम मेरी भोली-भाली आत्मकथा को सुनकर क्या प्रेरणी प्राप्त कर सकोगे? मेरा दुःख इस समय शांत है। वह अभी थककर सोया है। इसलिए अभी आत्मकथा को लिखने का उचित समय नहीं आया है।

Filed Under: Class 10, Hindi, Kshitij

About Mrs Shilpi Nagpal

Author of this website, Mrs. Shilpi Nagpal is MSc (Hons, Chemistry) and BSc (Hons, Chemistry) from Delhi University, B.Ed. (I. P. University) and has many years of experience in teaching. She has started this educational website with the mindset of spreading free education to everyone.

Reader Interactions

Comments

  1. Vansh says

    October 18, 2022 at 11:47 am

    Thank you so much mam for this wonderful website where i can get explanation of chapters also

  2. Diksha Budhwar says

    May 24, 2024 at 11:57 am

    Wonderful website

  3. Anuj says

    July 20, 2024 at 7:13 am

    Tq mam you teaching so helpful……

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